डीएनए हिंदी: कर्ज में डूबे किसानों के आत्महत्या (Farmers Suicide) करने की खबरें आए दिन सामने आती हैं. कर्ज (Loan) का दलदल उन्हें मौत को मुहाने पर खड़ा कर देता है. फसलें खराब होती हैं और किसानों की आस टूट जाती है. 29 अगस्त पंजाब (Punjab) में एक किसान की खुदकुशी ने फिर साबित कर दिया है कि कर्ज का बोझ उनके जीवन की डोर पर भारी पड़ रहा है. कर्ज में डूबे किसान रकम चुका नहीं पाते और उनकी जमीनें कुर्क होने लगती हैं. कुछ न बचता देख किसान खुदकुशी कर बैठते हैं.
बीते साल बर्बाद हुई फसल के मुआवजे की मांग को लेकर डीसी दफ्तर के सामने चल रहे धरने के दौरान बलविंदर सिंह ने खुदकुशी कर ली थी. वह रायके कलां गांव के रहने वाले थे. यह गांव बठिंडा जिले के अंतर्गत आता है. बलविंदर सिंह अपने खिलाफ दायर एक अदालती मामले के आधार पर कुर्की के आदेश के खिलाफ प्रशासनिक परिसर के बाहर धरने पर बैठे थे. स्थानीय साहूकार लोन न दे पाने की वजह से लगातार दबाव बना रहे थे और संपत्ति की कुर्की करना चाहते थे. आइए जानते हैं कि कुर्की क्या है और पंजाब में यह एक बड़ा मुद्दा क्यों बना हुआ है?
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क्या होती है कुर्की?
किसी भी व्यक्ति या संस्था से लोन के बदले व्यक्ति को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ती है. इसे गारंटी के तौर पर देखा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर कोई व्यक्ति लोन की रकम चुकाने में फेल होता है तो उसकी जमीन ली जा सके. बैंक के अलावा, वैध-अवैध रूप से साहूकार, कमीशन एजेंट और प्राइवेट कंपनियां भी लोन देती हैं. चूंकी उनके पास किसान की लिखित मंजूरी होती है इसलिए कर्ज न चुका पाने की स्थिति में वे जमीनों की कुर्की करने लगते हैं.
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कैसे होती है कुर्की?
कुर्की की प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया संहिता (CPc) 1908 की धारा 60 के तहत पूरी की जाती है. किसान द्वारा बैंक या साहूकार को जो जमीन गिरवी रखी जाती है, वह उनके नाम पर रजिस्टर्ड हो जाती है. कुछ मामलों में जमीन की नीलामी भी हो जाती है. प्रक्रिया तब शुरू होती है जब किसान लोन नहीं चुका पाता है और साहूकार कुर्की का ऑर्डर लेने के लिए अदालत का रुख करता है. कुर्की में किसान की जमीन के साथ-साथ उसके कृषि उपकरणों की भी कुर्की धारा 60 के तहत की जा सकती है.
पंजाब में कुर्की बैन करने का दावा करती रही हैं राजनीतिक पार्टियां
अकाली दल और कांग्रेस दोनों ने दावा किया है कि उन्होंने अपने-अपने कार्यकाल में कुर्की पर प्रतिबंध लगाया है. कांग्रेस ने 2017 का विधानसभा चुनाव 'करजा कुर्की खातम, फसल दी पूरी रकम' के नारे पर लड़ा था.
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2017 में चुनाव जीतने के तुरंत बाद तत्कालीन अमरिंदर सिंह सरकार ने पंजाब सहकारी समिति अधिनियम की धारा 67-ए को समाप्त कर दिया था. यही वही धारा थी जिसके जरिए सहकारी समितियां किसानों की जमीनों की नीलामी करती थीं. लोन वसूली के लिए इस प्रक्रिया का सहारा लिया जाता था. भारतीय किसान यूनियन (डकौंडा) वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनजीत सिंह धनेर के मुताबिक जमीन की कुर्की को रोकने के लिए अधिनियम की धारा 63-बी, 63-सी को हटाया नहीं गया है.
पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने भी दावा किया है कि उनकी सरकार ने कुर्की को खत्म कर दिया था. किसान संगठनों का आरोप है कि सरकारें नीलामी और कुर्की पर स्पष्ट आदेश नहीं जारी करती हैं, यही वजह है कि किसानों के गले में फांस पड़ी रहती है. यही वजह है कि किसानों को कुर्की के ऑर्डर मिलते रहते हैं.
जानलेवा है कुर्की कानून फिर भी क्यों नहीं लगता है प्रतिबंध?
कुर्की को बैन कराने की मांग अक्सर उठती रहती है. किसानों के लिए यह मौत का फंदा बनती जा रही है. 2018 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में कुर्की पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी.
पंजाब सरकार एक हलफनामें में कह चुकी है कि कुर्की पर प्रतिबंध लगाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि किसानों को कर्ज माफी और मुआवजे जैसे कदमों के जरिए राहत दी जा रही है. सीपीसी 1908 की धारा 60 के तहत कुर्की की प्रकिया पूरी की जाती है. 110 साल से ज्यादा पुराने इस कानून में संशोधन के लिए मांग हो रही है. किसानों के गले की यह फांस बन चुका है. इसमें बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है.
क्यों साहूकारों के चंगुल में फंस जाते हैं किसान?
किसान बताते हैं कि उन्हें लोन के लिए पोस्ट-डेटेड चेक देने के लिए कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल चेक बाउंस के मामलों में गिरफ्तारी आदेश जारी करने के लिए किया जाता है. किसानों का आरोप है कि साहूकार कुर्की के लिए पहले ही दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लेते हैं. उनके पास सारे लिखित दस्तावेज होते हैं. लोन लेते वक्त साहूकार बेहद चालाकी से किसानों पर दबाव बनकर कागजात ले लेते हैं. अप्रैल 2022 में, सहकारी समितियों और पंजाब कृषि विकास बैंकों को लोन का भुगतान न करने के लिए किसानों के खिलाफ 2,000 से अधिक गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए थे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सहकारी समितियों और पंजाब कृषि विकास बैंकों में किसानों के नाम पर 3,200 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. 60 फीसदी से ज्यादा किसानों ने पिछले तीन सालों से एक पैसा भी नहीं दिया है. ऐसे में कुर्की प्रक्रिया को खत्म करने से सरकारें भी कतरा रही हैं.
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क्या होती है कुर्की, पंजाब में किसानों के लिए क्यों काल बनी यह व्यवस्था?