लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पास होने के बाद गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया गया. यहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. बीजेपी ने इसे सभी नागरिकों के लिए संपत्ति के अधिकार को कायम रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया. खासतौर पर केरल के एर्नाकुलम जिले के मुनंबम गांव का जिक्र करते हुए. यह मुनंबम गांव वही है, जहां 400 एकड़ जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है.
इस जमीन पर 600 ज्यादा परिवार रहते हैं. लेकिन केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने दावा है कि यह जमीन उसकी है. इसके खिलाफ पिछले 173 दिनों से गांव में लोग भूख हड़ताल पर बैठे थे. जब लोगों को पता चला है कि लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पास हो गया है, तो वह खुशी से झूम उठे. केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने भी बिल पर चर्चा के दौरान इस गांव का जिक्र किया था.
क्या है 400 एकड़ जमीन का विवाद
दरअसल, केरल के एर्नाकुलम जिले में स्थित वाइपि द्वीप पर मुनंबम तटीय इलाके में सैंकड़ों एकड़ जमीन पर कई गांव बसे हैं. जिनमें ज्यादातर मछली पकड़ने वाले समुदाय के लोग रहते हैं. इनमें 400 से करीब परिवार ईसाई हैं, जो पिछड़े लैटिन कैथोलिक समुदाय ताल्लुक रखते हैं. बाकि परिवार हिंदू और मुस्लिम हैं. मुनंबम गांव की इस जमीन को अब्दुल सत्तार मूसा सैत ने 1990 के दशक में इस जमीन को त्रावणकोर के शाही परिवार लीज पर लिया था.
अब्दुल सत्तार बाद कोच्चि शिफ्ट हो गए. साल 1948 में अब्दुल सत्तार के दामाद मोहम्मद सिद्दीक सैत ने इस जमीन को अपने नाम पर पंजीकृत करवा लिया और दो साल बाद कोझिकोड के फारूख कॉलेज को दान कर दी. साल 1950 में कोच्चि के एडापल्ली के सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में एक वक्फ डीड रजिस्टर किया गया. जिसे मोहम्मद सिद्दीक ने फारूख कॉलेज के अध्यक्ष के नाम यह जमीन रजिस्टर की. वक्फ डीज वह दस्तावेज होता है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी खुशी से अपनी संपत्ति को वक्फ के नाम आधिकारिक रूप से घोषित करता है.
मालिकाना हक को लेकर विवाद
मुनंबम की इस तटीय भूमि पर बड़ी संख्या में मछुआरे रहते थे. जिनके परिवार लंबे समय से वहां बसे हुए थे. इन परिवारों का दावा है कि 1987 से 1993 के बीच फारूख कॉलेज प्रबंधन ने उनसे पैसे लेकर जमीन का मालिकाना हक उन्हें दे दिया. लेकिन 1995 में वक्फ अधिनियम लागू होने के बाद मामला जटिल हो गया. वक्फ ने दावा किया कि वह जमीन उसकी है और मालिकाना हक को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई.
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साल 2008 में केरल सरकार ने एख जांच कमेटी गठित की . 2009 में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें इस 400 एकड़ जमीन को वक्फ की संपत्ति बताया गया. साल 2019 में केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दिया. 2022 में यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां सुनवाई जारी है.
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