डीएनए हिंदी: उपहार अग्नि कांड के बाद से बंद सिनेमा हॉल को फिर से खोलने का आदेश कोर्ट ने दे दिया है. 26 साल बाद अब एक बार फिर यह सिनेमा हॉल खुलेगा लेकिन 59 परिवारों ने जिन अपनों को खोया था उनके जाने का गम कभी कम नहीं हो सकेगा. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मामला अब अपने अंतिम पड़ाव पर है और इसलिए थिएटर को बंद रखने का कोई औचित्य नहीं बचता है. सिनेमाघर में 13 जून 1997 को बॉलीवुड फिल्म ‘बॉर्डर’ की स्क्रीनिंग के दौरान आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी. इस हादसे के 26 साल बीतने के बाद भी पीड़ित परिवार अब तक न्याय की उम्मीद लगाए ही बैठे हैं. जानें 26 साल पहले क्या हुआ था उस रोज जिससे दहल गया था पूरा देश.
पटियाला हाउस कोर्ट ने दी अनुमति
पटियाला हाउस कोर्ट के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजय गर्ग ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) दिल्ली पुलिस और उपहार त्रासदी पीड़ितों के संघ (एवीयूटी) की अध्यक्ष नीलम कृष्णमूर्ति भी हॉल को दोबारा खोलने के लिए अपनी अनापत्ति दे चुके हैं. इसके अलावा, मामला अब अपने अंतिम पड़ाव पर है और बिल्डिंग को सील रखकर कोई उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है. ऐसे में इसे फिर से खोलने की हम अनुमति दे रहे हैं. सिनेमा हाल से सीलिंग हटाने की अर्जी अंसल थिएटर्स एंड क्लब होटल्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दायर की गई थी.
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क्या हुआ था 26 साल पहले सिनेमा हॉल में
13 जून 1997 को उपहार सिनेमा हॉल के मॉर्निंग शो में बॉर्डर फिल्म चल रही थी. बॉर्डर उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से थी और हॉल लगभग पूरा भरा हुआ था. सिनेमा हॉल के दो ट्रांसफॉर्मर में से एक में आग लग गई जिसके बाद पूरे हॉल में धुआं और आग की लपटें दिख रही थीं. चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल बन गया और आसपास के दुकानदारों ने अपने स्तर पर लोगों को बचाने की कोशिश भी की थी. हालांकि इसके बाद भी 59 लोगों की जान चली गई.
सिनेमा हॉल में नहीं थे सुरक्षा उपाय
उपहार सिनेमा हॉल की यह ट्रेजडी मालिकों की लापरवाही और सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करने की वजह से हुई थी. दर्शकों को आग के बारे में सतर्क करने के लिए कोई पब्लिक लाउडस्पीकर नहीं था. एग्जिट गेट बंद थे और यहां तक कि ट्रांसफॉर्मर में ऑयल सोक भी नहीं था जो कि नियम के मुताबिक जरूरी है. इसके अलावा फायर एग्जिट और आग बुझाने के लिए जरूरी उपकरण भी नहीं थे. फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को भी घटनास्थल तक उस रोज पहुंचने में भारी ट्रैफिक की वजह से बहुत वक्त लगा था.
दोषी अंसल बंधुओं को नहीं मिली कोई सख्त सजा
उपहार अग्नि कांड को भारत की न्याय व्यवस्था के एक क्लासिक केस के तौर पर भी देखा जा सकता है. 24 जुलाई 1997 को इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआई को सौंपी गई थी और 15 नवंबर 1997 को सीबीआई ने सिनेमा हॉल के मालिक सुशील अंसल, गोपाल अंसल सहित 16 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की. अप्रैल 2003 में हाई कोर्ट ने पीड़ित परिवारों को 18 करोड़ रुपये का मुआवजा बांटने का निर्देश दिया था. 2007 में अदालत ने सुशील व गोपाल अंसल सहित 12 आरोपियों को दोषी करार दिया और 2 साल की सजा सुनाई थी.
हालांकि 2008 में अंसल बंधुओं को जमानत मिल गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 11 सितंबर 2008 को जमानत रद्द करते हुए दोनों को तिहाड़ जेल भेज दिया था. हाई कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा दो साल से घटाकर 1 साल कर दी जिसके खिलाफ पीड़ित परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा बरकरार रखी. 2021 में पटियाला हाउस कोर्ट ने इस मामले में अंसल बंधुओं को 7 साल की सजा सुनाई थी जिसके बाद दोनों भाई फिर से जेल पहुंचे लेकिन दोनों को कोर्ट ने यह कहकर रिहा कर दिया कि सजा की यह अवधि वह पहले ही पूरी कर चुके हैं.
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कृष्णमूर्ति दंपती ने लड़ी न्याय की लंबी लड़ाई
इस हादसे में नीलम कृष्णमूर्ति और शेखर कृष्णमूर्ति ने अपने दोनों बच्चे हमेशा के लिए खो दिए. इस हादसे के बाद दंपती ने न सिर्फ अपने बच्चों के इंसाफ बल्कि 59 लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी. दोनों की जिंदगी पर नेटफ्लिक्स ने एक सीरीज भी बनाई है. कृष्णमूर्ति दंपती ने सिनेमा हॉल में सुरक्षा उपायों और ऐसी दुर्घटनाएं रोकने के लिए देश के सर्वोच्च अदालत तक गुहार लगाई. उनकी लड़ाई की जीत का एक पक्ष यह भी है कि कोर्ट ने सिनेमा हॉल और ऐसी दूसरी जगहों की सुरक्षा को लेकर सख्त निर्देश जारी किए थे.
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26 साल बाद खुलेगा उपहार सिनेमा, ऐसा अग्निकांड जिसकी टीस आज भी जिंदा