जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद बीते दिनों एग्जिट पोल के नतीजे भी आ गए. विभिन्न पोल एजेंसियों की तरफ एग्जिट पोल दिया गया. एग्जिट पोल बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलते नहीं दिख रहा है. हालांकि, कांग्रेस-एनसी गठबंधन को यूटी में बढ़त मिली है. ऐसे में जोड़-तोड़ की राजनीति की तरफ इशारा किया जा रहा है लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है. क्यों? आइए समझते हैं.
क्या कहते हैं एग्जिट पोल?
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं. अंतिम बार विधानसभा चुनाव साल 2014 में हुए थे. अब इन विधानसभा चुनावों के नतीजे मंगलवार को आ जाएंगे. सी-वोटर के एग्जिट पोल के मुताबिक, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन को 40-48 सीटें, बीजेपी को 27-32, पीडीपी को 6-12 और अन्य को 6-11 सीटों पर जीत मिलने के आसार हैं. जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए 45 सीटों पर जीत जरूरी है. पर जम्मू-कश्मीर में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है तो ऐसे में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा यूटी की सत्ता की चाबी किसी की झोली में फेंक सकते हैं. कैसे?
क्या है 5 सदस्यों को नामित करने का नियम
दरअसल, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास विधानसभा में पांच विधायकों को नामित करने का अधिकार है. अगर पांच विधायकों को नामित किया जाता है तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या 95 हो जाएगी और बहुमत का आंकड़ा 45 से 48 हो जाएगा. जम्मू-कश्मीर में रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 में 2023 में संशोधन किया गया जिसके तहत एलजी को दो सदस्यों के बजाए पांच सदस्यों को नामित कनरे का अधिकार मिल गया. इन पांच सदस्यों में दो महिलाएं, दो कश्मीर प्रवासी और पीओके से विस्थापित किसी एक सदस्य को नामित करने का अधिकार है.
राजनीतिक पार्टियों की चिंताएं बढ़ीं
अब राजनीतिक पार्टियों में इस नए नियम को लेकर चिंता बनती दिख रही है. पार्टियों को डर है कि एलजी अगर अपनी पावर का इस्तेमाल करते हैं तो केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता पलट सकती है. जम्मू-कश्मीर में पूर्व लॉ सचिव मोहम्मद अशरफ मीर ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि जम्मू-कश्मीर में रिऑर्गनाइजेशन एक्ट में प्रावधान है कि कानून से जुड़े मामलों में उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करेंगे. लेकिन इसमें सदस्यों को नामित करने के लिए किसी की सलाह की जरूरत नहीं है.
उपराज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदस्यों को नामित कर सकते हैं. हालांकि, मोहम्मद अशरफ मीर से उलट वकील शरीक रियाज का कुछ अलग मत है. वे बताते हैं कि एलजी विधानसभा में सदस्यों को एकतरफा नामित नहीं कर सकते. ये संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य की सूची में आता है और राज्यों में उपराज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह पर काम करते हैं.
शरीफ रियाज ने आगे कहा कि पुड्डुजेरी विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश था और वहां के कानून के मुताबिक, विधानसभा में सदस्यों को केंद्र सरकार नामित करती है, जबकि जम्मू-कश्मीर जो पहले राज्य था और अब केंद्र शासित प्रदेश यहां यही अधिकार उपराज्यपाल को दिया गया है.
क्या है पॉलिटिकल पार्टियों का मत
आज तक पर छपी खबर के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के प्रवक्ता सुनील सेठी ने कहा कि जो लोग मनोनीत सदस्यों की शक्तियों पर आपत्ति जता रहे हैं उन्होंने संविधान नहीं पढ़ा और न ही जम्मू-कश्मीर का रिऑर्गनाइजेशन एक्ट. ये कानून 2019 से ही बहुत स्पष्ट है. अगर उन्हें इससे इतनी ही दिक्कत है तो उन्हें चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेना चाहिए था. तो वहीं, कांग्रेस महासचिव गुलाम अहम मीर ने कहा कि किसी पार्टी का पक्ष लेने के इरादे से विधायकों को नामित करना असंवैधानिक है.
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नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता रतन लाल गुप्ता ने इस कदम को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया. पीडीपी के एक नेता ने कहा कि हमें नहीं पता कि बहुमत हासिल करने के लिए 46 या 48 कितने का आंकड़ा चाहिए. ऐसा लगता है कि चुनाव नतीजों के आधार पर इसका इस्तेमाल करने की जानबूझकर चाल चली जा रही है.
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