इन दिनों सोशल मीडिया पर अचानक ट्रेंड होने लगा कि भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन चुका है, और उसे वीटो पावर भी प्राप्त हो गया है. हालांकि यें दावे फेक थे, लेकिन तथ्य ये है कि भारत लंबे अरसे से सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए प्रयासरत है. यूएन की बात करें तो भारत उसका मेंबर उसके स्थापना दिवस (1945) से ही है. दरअसल सुरक्षा परिषद यूनाइटेड नेशन की एक ताकतवर बॉडी है. सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होना सामरिक नजरिए से बेहद अहम है. आइए समझते हैं कि इसका स्थायी सदस्य होना क्यों है इतना खास.
सुरक्षा परिषद क्यों है इतना ताकतवर
सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों के पास वीटो पावर होता है. जिसका इस्तेमाल वो अक्सर अपने पक्ष में करते हैं. अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन इसके स्थायी सदस्य हैं. वहीं लंबे समय से भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका इसका स्थायी सदस्य बनने की कोशिश कर रहे हैं. सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों की एक कॉमन बात ये है कि ये सभी देश दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्र का हिस्सा हैं. भारत अगर सुरक्षा परिषद का हिस्सा बन जाता है तो वो वीटो पावर का इस्तेमाल करके पाकिस्तान और चीन को कई मोर्चों पर घेर सकता है. साथ ही उसे दुनियाभर में एक लीडर देश के तौर पर आधिकारिक मान्यता हासिल हो जाएगी.
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क्या है सुरक्षा परिषद?
शिरू में सुरक्षा परिषद में मूल रूप से 11 सदस्य होते थे. इनमें पांच स्थायी सदस्य हैं. शुरू में चीन इसका स्थायी सदस्य नहीं था, उससे पहले फ्रांस , सोवियत संघ , यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ताइवान इसका स्थायी सदस्य हुआ करता था. इसके अलावा छह अस्थायी सदस्य होते थे, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता था. 1965 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन ने परिषद की सदस्यता को बढ़ाकर 15 कर दिया गया. अब इसमें 5 स्थायी सदस्य और 10 अस्थायी सदस्य शामिल हैं.
स्थायी सदस्यों में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने 1971 में ताइवान का स्थान लिया और रूसी संघ ने 1991 में सोवियत संघ का स्थान लिया. अस्थायी सदस्यों को आम तौर पर भौगोलिक क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए चुना जाता है, जिसमें पांच सदस्य अफ्रीका या एशिया से, एक पूर्वी यूरोप से, दो लैटिन अमेरिका से और दो पश्चिमी यूरोप या अन्य इलाकों से आते हैं.
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UN: भारत क्यों बनना चाहता है ‘सुरक्षा परिषद’ का सदस्य, इससे देश बन जाएगा अमेरिका, रूस और चीन के समकक्ष?