डीएनए हिंदी: शनिवार को देर शाम चुनाव आयोग ने शिवसेना का चुनाव चिह्न फ्रीज कर दिया है. इसी के साथ शिवसेना पर एकाधिकार की जंग एक नए मोड़ पर पहुंच गई है. अब पार्टी किसकी होगी से बड़ा सवाल बन गया है कि पार्टी का नाम किसे मिलेगा और कौन किस चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेगा. इस बीच खबर यह भी है कि उद्धव ठाकरे गुट अपनी पसंद से जुड़े चुनाव चिह्न के तीन ने विकल्प चुनाव आयोग को भेज चुका है. सोमवार 1 बजे तक दोनों गुटों को ये विकल्प चुनाव आयोग को भेजने हैं. इसी के साथ जान लेते हैं इस मामले से जुड़े हर सवाल का जवाब-
क्यों फ्रीज किया गया शिवसेना का चुनाव चिह्न
जब भी कोई पार्टी विभाजित होती है या उसमें फूट पड़ती है तो उसके चुनाव चिह्न को लेकर दावेदारी शुरू हो जाती है. दोनों ही हिस्से पार्टी की पहचान रहे चुनाव चिह्न को अपने-अपने साथ रखना चाहते हैं. ऐसे में चुनाव आयोग को बीच में दखल देना पड़ता है और पार्टी का चुनाव चिह्न फ्रीज कर दिया जाता है. बीते ही साल ऐसी ही फूट लोक जनशक्ति पार्टी में भी पड़ी थी. तब चुनाव आयोग ने LJP के चुनाव चिह्न को बंगले को फ्रीज कर दिया था. शिवसेना के मामले की ही तरह तब भी इस फैसले के जरिए चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करना चाहता था कि होने वाले उपचुनावों में पार्टी के दोनों में से कोई भी गुट उस चुनाव चिह्न को इस्तेमाल ना करें.
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अब क्या करेंगे उद्धव (Uddhav Thackeray) और शिंदे (Eknath Shinde)
अब जब चुनाव आयोग ने शिवसेना का चुनाव चिन्ह 'धनुष-बाण' फ्रीज कर दिया है तो सवाल ये है कि आगे एकनाथ शिंदे और ठाकरे गुट क्या करेंगे? कौन सा होगा नया चुनाव चिह्न? क्या होगा नया नाम? अब इलेक्शन कमीशन यानी चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे को मौजूदा उपलब्ध चिह्नों में से अपनी-अपनी पसंद चुनने के लिए कहा है. आयोग ने पार्टी के नाम को लेकर यहां तक कहा कि दोनों ही गुट नए नाम के साथ सेन शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं. अब यह तो साफ है भविष्य में शिवसेना को नए चुनाव चिह्न और नाम के साथ ही चुनाव में उतरना होगा. अब उद्धव और शिंदे को अपनी किस्मत को आजमाते हुए नए चुनाव चिह्न ढूंढने होंगे जिन पर चुनाव आयोग अपनी मुहर लगाएगा.
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धनुष-बाण कब बना था शिवसेना का चुनाव चिह्न?
बाला साहेब ठाकरे ने सन् 1966 में शिवसेना का गठन किया था. दो साल बाद सन् 1968 में इसका एक राजनीतिक दल के रूप में रजिस्ट्रेशन हुआ. तब पार्टी का चुनाव चिह्न ढाल और तलवार था. 1971 में शिवसेना ने पहला चुनाव लड़ा, मगर तब जीत नसीब नहीं हुई. सन् 1978 में पार्टी ने रेल इंजन को चुनाव चिह्न बनाया. साल 1985 के विधानसभा चुनाव में जब धनुष-बाण चुनाव चिह्न के साथ चुनाव लड़ा गया तब पार्टी को जीत हासिल हुई.
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क्यों फ्रीज किया गया शिवसेना का चुनाव चिह्न? अब क्या चुनेंगे उद्धव और शिंदे? जानें पूरा मामला