डीएनए हिंदी: सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं. अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में उन पर चाकू से हुए हमले के बाद एक बार फिर उनकी किताब द सैटैनिक वर्सेज (The Satanic Verses) चर्चा में है. यह पहली किताब थी जिसने सलमान रुश्दी को दुनियाभर में प्रसिद्ध कर दिया. यह वही किताब थी जिसकी वदह से सलमान रुश्दी कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए थे. भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में उनके कार्यक्रम एक के बाद एक बैन होने लगे थे. उनके खिलाफ हत्या के फतवे जारी होने लगे थे. आइए समझते हैं कि कैसे एक किताब ने उनकी पूरी ज़िन्दगी बदलकर रख दी.
सलमान रुश्दी की किताब द सैटैनिक वर्सेज सितंबर 1988 में प्रकाशित हुई थी. ब्रिटिश-भारतीय लेखक सलमान रुश्दी की ज़िन्दगी इसी किताब के बाद पूरी तरह से बदल गई. 1981 में प्रकाशित हुई मिड नाइट चिल्ड्रेन के लिए उन्हें बुक प्राइज़ भी मिल चुका है. ठीक 7 साल बाद प्रकाशित एक किताब ने लेकिन उनकी ज़िन्दगी बदल दी. उन्हें द सैटेनिक वर्सेज के बाद लगातार मौत की धमकियां मिलने लगीं. उनका घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था.
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अयातुल्लाह खोमेनी सलमान रुश्दी के लिए बन गया था काल
14 फरवरी 1989 को ईरान के इस्लामिक नेता अयातुल्लाह खोमेनी (Ayatollah Khomeini) ने सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) के खिलाफ एक फतवा जारी किया. अयातुल्लाह खोमेनी ने कहा था कि सलमान रुश्दी ने अपनी किताब में इस्लाम की निंदा की है. उसने कहा था कि सलमान रुश्दी को इस जुर्म की ऐसी सजा मिलेगी कि दुनिया जिसे दशकों तक याद रखेगी. सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत के फतवे भी जारी हुए थे. इस्लामिक कट्टरपंथी सलमान रुश्दी का सिर कलम करना चाहते थे.
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सलमान रुश्दी इसके बाद से ही खतरनाक धमकियों का सामना कर रहे हैं. उनके कार्यक्रमों के दौरान आगजनी होने लगी. कई जगहों पर उनकी किताबें बैन हुईं तो कुछ जगहों पर दंगे भड़के. उनकी किताबों की प्रतियां जलाई जाने लगीं.
धमकियों का सिलसिला इस हद तक बढ़ गया कि सलमान रुश्दी को डरकर छिपना पड़ा. सलमान रुश्दी पर लगातार हो रहे हमलों की वजह से सवाल उठा कि क्या दुनियाभर में कलाकारों के लिए अभिव्यक्ति का खतरा हद से ज्यादा क्यों हैं.
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क्यों सैटेनिक वर्जेस क्यों है इतनी विवादित किताब?
अपनी किताब पर भड़के विवाद को लेकर खुद सलमान रुश्दी पशोपेश में रहते हैं. उनका मानना है कि लोग बेवजह इस किताब को लेकर आहत होते हैं. सलमान रुश्दी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि अगर आप किताब को नहीं पढ़ना चाहते हैं तो आप न पढ़ें. सैटेनिक वर्सेज पढ़कर आहत होना बहुत कठिन है. यह बहुत आसान नहीं है और इसके लिए लगातार पढ़ना होगा. इसमें लाखों शब्द हैं.
क्या है द सैटेनिक वर्सेज की असली कहानी?
हिंदी में अगर द सैटेनिक वर्सेज का अनुवाद करें तो इसका अर्थ होगा शैतानी आयतें. किताब के नाम पर मुस्लिम समुदाय पहले ही आक्रोशित हो गया था. यह किताब इंग्लैंड में रहने वाले दो भारतीय मुस्लिमों की कहानी है.
किताब की कहानी दो अभिनेताओं के इर्द-गिर्द घूमती है. दोनों कलाकात फ्लाइट से मुंबई से लंदन जा रहे होते हैं. एक का नाम जिबरील है जो सुपरस्टार है. दूसरा एक वायस ओवर आर्टिस्ट है, जिसका नाम सलादीन है.
इस प्लेन को एक सिख आतंकी हाइजैक कर लेता है. आतंकी और पैसेंजर के बीच बहस के दौरान आतंकी प्लेन में ही बम फोड़ देता है. दोनों कलाकार समुद्र में गिर जाते हैं और बच जाते हैं. यहीं से इसकी कहानी बदल जाती है. धर्म संस्थापक के जीवन से जुड़े किस्से जिबरील के सपने में आने लगते हैं. यहीं से वह धर्म को दोबारा स्थापित करने की कोशिश करता है. इसे ही ईशनिंदा के तौर पर मुस्लिम समाज देखता है.
भारत में बैन थी यह किताब
किताब के प्रकाशित होने के ठीक 9 दिन बात यह किताब भारत में बंद हो गई थी. किताब पर बैन तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने लगाया था. किताब पर आरोप था कि इसकी वजह से धार्मिक सौहार्द बिगड़ रहा है. अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, सूडान, केन्या और दूसरे देशों में भी यह किताब बैन होने लगी.
पहले ईरान में इस किताब को लेकर विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ था. जैसे-जैसे किताब पर विवाद बढ़ता गया, ईरान के मौलवियों को इस किताब के बारे में पता चला. अयातुल्लाह को इसी समूह ने किताब के बारे में जानकारी दी. उन्होंने दरअसल किताब के उस हिस्से को दिखाया था जिसमें इमाम के बारे में कुछ लिखा गया था. उनके निर्वसन को लेकर कुछ लिखा गया था. तथ्य के सामने आने के बाद ही किताब पर विवाद भड़क गया.
सलमान रुश्दी की हत्या के लिए 3 मिलियन डॉलर की इनामी रकम!
सलमान रुश्दी की हत्या के लिए 3 मिलियन डॉलर की रकम इनाम के लिए रखी गई. सलमान रुश्दी इस ऐलान के बाद छिप गए थे. उन्हें छिपकर ज़िन्दगी बितानी पड़ी. उन्हें हमेशा बॉडीगार्ड के घेरे में रहना पड़ रहा था. हर तरफ उनकी सिक्योरिटी का ख्याल रखा जाता था. उन्होंने जोसेफ एंटोन नाम के एक छद्म नाम से अपनी कहानी लिखी है.
1998 तक आज़ाद आवाज़ की पहचान बन चुके थे सलमान रुश्दी
1998 तक दुनिया तेजी से बदल रही थी. दुनियाभर में अलग-अलग मूवमेंट सामने आ रहे थे. सलमान रुश्दी को सही वक्त का इंतजार था. उन्होंने इसी दौरान खुद को एक बार फिर से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय किया. वह देखते ही देखते अभिव्यक्ति, कला और स्वतंत्रता की आवाज बन गए. उन्होंने इस दौरान कई किताबें भी लिखीं. साल 2000 में वह अपने बेटे जफर के साथ भारत भी आए. सलमान रुश्दी के जल्द ठीक होने की उम्मीद में उनके लाखों चाहने वाले हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि उन्हें हमले में एक आंख गंवानी पड़ सकती है. लीवर में भी काफी चोटें आई हैं.
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फतवा, मौत की धमकी और निर्वासन, एक किताब ने कैसे बदल दी सलमान रुश्दी की ज़िन्दगी?