डीएनए हिंदी: भारत में जानवरों के शिकार की संस्कृति रही है. राजा-महाराजा जंगल में शिकार पर जाते थे. भारत का राष्ट्रीय पशु कहे जाने वाले बाघ भी इसी 'परंपरा' की बलि चढ़ने लगे थे. दुनियाभर में बाघों की 70 फीसदी आबादी भारत में रहती है लेकिन 60 से 70 के दशक में ये आंकड़े डगमगाने लगे थे. साल 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाघों की कम होती जनसंख्या के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की. इस योजना के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं. 

5 दशक में भारत ने बाघ संरक्षण की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल की है. कुछ राज्यों तक सिमटे बाघ अब 20 राज्यों में पहुंच गए हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा टाइगर रिजर्व अब भारत में हैं. दुनिया के 70 फीसदी बाघ भार में पाए जाते हैं. भारत की ओर दुनियाभर के पर्यावरणविद् उम्मीद की नजर से देखते हैं.

क्यों भारत से कम होने लगे थे बाघ?

20वीं शताब्दी तक भार में बाघ करीब 20,000 से 40,000 के बीच में थे लेकिन 70 के दशक में बाघ महज 1,820 के आंकड़े पर सिमट गए थे. अंधाधुंध शिकार हो रहा था. उनकी तस्करी की जा रही थी. 1973 के टाइगर प्रोजेक्ट के बाद बाघों की आबादी बढ़ने लगी और भारत के जंगलों में एक बार फिर बाघ दहाड़ने लगे.

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कितना सफल है टाइगर प्रोजेक्ट?

भारत का टाइगर प्रोजेक्ट बेहद सफल रहा है. कम ऐसे मिशन होते हैं जिनमें 100 फीसदी सफलता मिलती है. टाइगर प्रोजेक्ट में भारत को बड़ी सफलता मिली है. टाइगर प्रोजेक्ट अपना स्वर्ण जयंती मना रहा है. प्रोजेक्ट टाइगर की सीमा 75,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया है. देश में 54 टाइगर रिजर्व हैं. यहां बाघ दहाड़ते हैं. देश में बाघों की आबादी 3,000 से ज्यादा हो गई है.

कैसे मिलती गई कामयाबी?

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) परियोजना हर टाइगर रिजर्व पर रही. बाघों की संख्या को ट्रेस करना, उनके शिकार को रोकना, सही वक्त पर उन तक इलाज पहुंचाने की कोशिश और संरक्षित इलाकों में इंसानों की कम एंट्री ने बाघों की आबादी को बचाने में अहम भूमिका निभाई है.

1973 में इंदिरा गांधी ने करण सिंह की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया. पैनल ने मानस, पलामू, सिमलीपाल, कॉर्बेट, रणथंभौर, कान्हा, मेलघाट, बांदीपुर और सुंदरबन  समेत 9 टाइगर रिजर्व का खाका तैयार किया. इन इलाकों में ध्यान दिया गया. शिकारियों पर कड़ी नजर रखी गई. बाघों के खाने के लिए जानवरों को छोड़ा गया. वहां की पारिस्थितिकि तंत्र को सुधारने की कोशिश की गई. 

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1980 के दशक की शुरुआत में, देश में 15 टाइगर रिजर्व थे. 2005-06 के आसपास  यह संख्या बढ़कर 28 हो गई. एनटीसीए ने वैज्ञानिक पद्धति के इस्तेमाल से बाघों की गणना शुरू की. 2006 में यह जानकारी मिली कि देश में 1,411 बाघ हैं. 2010 में 1,706, 2014 में 2,226 और 2018 में 2,967 बाघ हो गए. 2023 तक बाघों की आबादी 3,000 से कहीं ज्यादा पहुंच गई है.

क्या हैं चुनौतियां?

पलामू और सिमलीपाल पहले नौ बाघ अभयारण्यों में से एक थे लेकिन अब पलामू में 1 बाघ हैं, वहीं सिलीपाल में 8 बाघ हैं. सतकोसिया, बक्सा और इंद्रावती टाइगर रिजर्व में भी संख्या तेजी से घटी है. पश्चिमी घाट, कुमाऊं, तराई क्षेत्र और मध्य भारत में बाघों की आबादी बढ़ी है. असम को छोड़कर पूर्व, मध्य और पूर्वोत्तर के अधिकांश हिस्सों में उनकी संख्या कम हो गई है. पहले ये जंगल भारत की कुल बाघ आबादी का लगभग आधा हिस्सा हुआ करते थे. इन इलाकों में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.

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Project Tiger 50 years Wildlife species conservation initiative success concerns key details
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Project Tiger: वो मुहिम जिसने टाइगर को बचाया और दुनिया में भारत का परचम लहराया
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प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत साल 1973 में हुई थी.
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प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत साल 1973 में हुई थी.

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Project Tiger: वो मुहिम जिसने टाइगर को बचाया और दुनिया में भारत का परचम लहराया