Ken Betwa Link Project: भारत का वो इलाका जहां पर बुंदेलों और वनाफर वंश का साशन हुआ करता था बुंदेलखंड कहलाता है. इस क्षेत्र पर दिल्ली सल्तनत ने भी हुकुमत की है. इस क्षेत्र में एक समय पर मराठाओं का भी शासन रहा है. यहां के इतिहास की गौरवगाथा और अंग्रेजों-मुगलों से हुई लड़ाइंयों के किस्से हवाओं मे बहते हैं. वैसे तो बुंदेलखंड में पर्याप्त मात्रा में खनिज मौजूद है. यहां से देशभर में पत्थर और रेत का निर्यात किया जाता है. पन्ना को देश की डायमंड कैपिटल के नाम से भी जाना जाता है.
जल संकट बड़ी चुनौती
लेकिन सूखा और जल संकट बुंदेलखंड के निवासियों के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती बना रहा हैं. इसके समाधान के लिए अभी तक विचार तो सभी सरकारों ने किया, या यू कहें की वादे तो सभी ने एक से बढ़कर एक किए लेकिन करिश्मा कोई नहीं कर पाया. अगर यहां की असल समस्या के बारे में बात की जाए कई पंचायत और देहात ऐसी हैं जहां पर गर्मियों के मौसम में पीने तक के लिए पानी नहीं पहुंच पाता, लेकिन अब माना जा रहा है कि केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से वर्षों से पानी की आस देख रहे इस क्षेत्र में हरित क्रांति होने वाली है.
सूखा राहत- कोई गर्व की बात नहीं
बुंदेलखंड क्षेत्र मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों ही प्रदेशों में बटा हुआ है. ये क्षेत्र उत्तर में यमुना दक्षिण में विंध्य की श्रेणियां, उत्तर पश्चिम में चंबल और दक्षिण पूर्व में पन्ना-अजयगढ़ की घाटियों से घिरा हुआ है. इसमें महोबा, टीकमगढ़, छतरपुर और झांसी के कई इलाकें ऐसे है जहां पर बिना पानी के गेहूं खेत में ही दम तोड़ देता है. ये बड़ी हैरानी की बात है इस इलाके पिछले कई सालों से लगातार किसानों सूखा राहत के नाम पर चुटकी भर पैसा देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है.
खजुहाहो में हुआ शिलान्यास
ये किसी भी सरकार के लिए गर्व की बात नहीं हो सकती कि देश के एक इलाके में सूखा राहत की राशि बांटी जा रही है. इस समस्या के निवारण की आस लगाए किसानों को उम्मीद की किरण तब नजर आई जब 25 दिसंबर 2024 को खजुराहो में पीएम मोदी ने केन-बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास किया. इस खबर से मानों किसानों के मन खुशी की लहर दौड़ गई. लोगों के अब सच में लग रहा है कि कुछ दिनों बाद वाकई ये वीरभूमि सोना उगलने लगेगी.
क्या है ये परियोजना
इस परियोजना के तहत महोबा, छतरपुर, ओरछा और हमीरपुर सहित बुंदेलखंड के बाकी जिलों को नदियों के जरिए जोड़कर जल संकट से उबारने की योजना बनाई गई है. लेकिन ये दो नदियों को आपस में जोड़ने का काम है तो आप समझ ही गए होंगे कि इसमें समय-मेहनत और लागत कितनी होगी. केन-बेतवा लिंक परियोजना भारत की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है. इसके पूरे हो जाने से सूखे पड़े तालाबों, नहरों में फिर से जल बहने लगेगा. ऐसा माना जा रहा है कि ये योजना आने वाले समय में बुंदेलखंड के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है.
कितना समय और कितनी लागत
इस योजना के प्रति बुंदेलखंड के लोगों में उत्साह है और वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पहल की सराहना कर रहे हैं. फिलहाल तो सरकार ने इस परियोजना को पूर्ण करने के लिए 8 साल का समय निर्धारित किया है. इससे न केवल किसानों को फायदा होने वाला है बल्कि आने वाले 8 सालों में पूरे बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने वाली है. इससे न केवल सिंचाई बल्कि पीने के पानी का पूरा इंतजाम हो जाएगा. लागत की बात करें तो देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना में करीब 45 हाजर करोड़ रुपये की लागात लगने वाली है.
221 किलोमीटर लंबी होगी नहर
इसके संपन्न होने से यूपी के 4 और एमपी के 10 जिलों की तस्वीर बदलने वाली है. इसे पूरा करने की जिम्मेदारी केंद्र, यूपी और एमी सरकार की है. इसमें लगभग 90 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार का और 10 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार का होगा. इस परियोजना से 1-3 मेगावाट बिजली उत्पादन भी होगा और रोजगार की तमाम रास्ते नजर आएंगे. 27 मेमावाट सौर उर्जा उत्पादन का है. इन दोनों नदियों को जोड़ने वाली नहर 221 किलोमीटर लंबी होगी. इसके दूसरे चरण में 7 बांधों का भी निर्माण किया जाएंगा.
65 लाख लोगों को पीने का पानी
इस परियोजना का लाभ मध्य प्रदेश के पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी,सागर, रायसेन, विदिशा, शिवपुरी, दतिया समेत 10 जिलों को मिलेगा. इन जिलों के लगभग दो हजार गावों की 8.11 लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई हो सकेगी. इन जमीनों से जुड़े 7 लाख किसान परिवारों को सीधा फायदा होगा. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के 1.92 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में भी सिंचाई की सुविधा मिलेगी. साथ ही यूपी एम पी 65 लाख आबादी को पेयजल की सुविधा भी मिलेगी.
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क्या है केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट जिससे बुंदेलखंड में होगी हरित क्रांति, जानें लागत-समयसीमा और किसे होगा फायदा