डीएनए हिंदी: राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार मुश्किल में हैं. भतीजे अजित पवार के बगावत के बाद शरद पवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के वर्चस्व को बचाए रखना है. फिलहाल उनकी पार्टी और परिवार दोनों पर टूट का खतरा मंडरा रहा है. अजित पवार एनसीपी के कुछ बड़े नेताओं के साथ महाराष्ट्र की एकानाथ शिंदे-बीजेपी सरकार में शामिल हो चुके हैं. अजित पवार अब एनसीपी और पार्टी के सिंबल पर भी दावा ठोक रहे हैं. उनका कहना है कि पार्टी के 40 से ज्यादा विधायक उनके समर्थन में हैं. हालांकि, अब देखना ये होगा कि कौन किस पर भारी पड़ेगा. लेकिन चाचा-भतीजे की ये राजनीतिक लड़ाई पहली नहीं है. इससे पहले भी हम देश में अलग-अलग पार्टियों में कई बार देख चुके हैं.

राजनीति में समय-समय पर परिवार के मतभेद सामने आते रहे हैं. सत्ता की महत्वाकांक्षा ने एक बार नहीं बल्कि कई बार चाचा-भतीजे को आमने सामने किया है. फिर चाहे वो यूपी में अखिलेश-शिवपाल का हो या बिहार में पशुपति कुमार पारस- चिराग पासवान हो पार्टी पर कब्जे के लिए चाचा-भतीजे के बीच तकरार होती रही है. आइये ऐसी सियासी घटनाओं के बारे में आज हम आपको बताते हैं.

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अजित पवार और शरद पवार
अजित पवार रविवार को अचानक चाचा शरद पवार से बगावत करके एनसीपी के कुछ नेताओं के साथ महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे-बीजेपी सरकार में शामिल हो गए. अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपत ली. साथ एनसीपी के 9 विधायकों को भी मंत्रीमंडल में शामिल कर लिया. अजित 5वीं बार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बने. अजित ने इतनी सफाई से दांव चला किया एनसीपी के दिग्गज नेताओं को तोड़ने की भनक अपने चाचा को नहीं लगने दी. इतना ही नहीं डिप्टी सीएम बनने के बाद पवार की बनाई NCP पर भी अपना दावा ठोक दिया. जानकारों की माने तो लंबे समय से अपने बागी तेवर दिखा रहे थे. दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलने की वजह से वह शरद पवार से खफा थे. जब शरद पवार ने सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने से बगावत करने की ठान ली थी.

अखिलेश यादव और शिवपाल यादव 
चाचा-भतीजे का ऐसा ही विवाद 2016 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी देखने को मिला था. मुलायम सिंह यादव 3 बार के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन 2012 में जब सपा चुनाव जीती तो उन्होंने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया. 2015 तक तो सब ठीक चलता रहा. लेकिन जब पार्टी की कमान सौंपने की बारी आई तो यादव परिवार की कड़िया टूटने लगी. अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी माने जाने वाले शिवपाल यादव पर अपना दावा ठोकने लगे. लेकिन अखिलेश के बढ़ते रुतबे के सामने चाचा ज्यादा समय तक नहीं टिक सके. आखिर में मुलायम सिंह ने पार्टी की पूरी कमान अखिलेश यादव के हाथ में सौंप दी. इससे नाराज होकर शिवपाल ने अलग पार्टी 'समाजवादी सेक्युलर मोर्चा' बना ली. लेकिन बाद में मुलायम सिंह ने चाचा-भतीजे के बीच सुलह करा दिया.फिलहाल दोनों साथ में हैं और 2022 का विधानसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ा था.

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चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस 
बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) अध्यक्ष राम विलास पासवान के निधन के बाद पार्टी पर उत्तराधिकारी को लेकर चाचा-भतीजे में विवाद देखने को मिला था. राम विलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस और बेटे चिराग पासवान आमने सामने आ गए थे. पशुपति खुद को पार्टी का उत्तराधिकारी बता रहे थे. जबकि चिराग अपना दावा ठोक रहे थे. विवाद इतना आगे बढ़ा कि चुनाव आयोग तक पहुंच गया. चुनाव आयोग ने 5 अक्टूबर 2021 को एलजेपी के दो टुकड़े कर दिए. इसके बाद चिराग पासवान की पार्टी अब लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) है. 

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राजनीति में 'चाचा भतीजों' के बीच रही है रार
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'चाचा भतीजा' की राजनीति में पहले भी रही है तकरार, पढ़ें महाराष्ट्र से लेकर यूपी-बिहार तक कहां क्यों बिगड़ी बात