डीएनए हिंदी: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. इसे रोकने के लिए GRAP-4 समेत कई तरह के प्रयास किए गए हैं लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली है. इस चुनौती से निपटने के लिए अब केजरीवाल सरकार ने नया प्लान तैयार किया है. सरकार राजधानी में आर्टिफिशियल बारिश करवाने का तैयारी कर रही है. माना जा रहा है कि इस एक्सपेरिमेंट से दिल्ली में पॉल्यूशन खत्म हो जाएगा. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को IIT कानपुर की टीम के साथ बैठक की. बैठक के बाद राय ने कहा कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो 21 और 22 नबंर को आर्टिफिशियल बारिश करवाई जाएगी.

दिल्ली वालों के लिए यह अनुभव भले ही नया लग रहा हो लेकिन इस तकनीक का इस्तेमाल अमेरिका, चीन, इजरायल और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देश इसका इस्तेमाल कर चुके हैं. वहां आर्टिफिशियल बारिश से प्रदूषण हटाने, खेती करने समेत कई चीजों में फायदे मिले हैं. अब सवाल यह उठता है कि आर्टिफिशियल बारिश होती कैसे है? इसे करवाने के लिए कौनसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. आइये तो फिर समझते हैं.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में दोबारा 999 पर प्रदूषण, नोएडा में भी 600 के पार, कृत्रिम बारिश से राहत की कोशिश में

कैसे होती है कृत्रिम बारिश
आर्टिफिशियल बारिश करवाने के लिए सबसे पहले क्लाउड सीडिंग करवाना पड़ता है. आसान भाषा में समझें तो नकली बादल तैयार करना होता है. वो नकली बादल तब बनता है जब सिल्वर आयोडाइड नाम के केमिकल को हल्के बादलों के बीच स्प्रे किया जाता है. इस प्रक्रिया के लिए छोटे-छोटे विमानों को बादलों के बीच भेजा जाता है. ये विमान बादलों में जाकर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड का छिड़काव करते हैं. इससे बादल में पानी की बूंदें जम जाती हैं. यही पानी की बूंदें फिर बारिश बनकर जमीन पर बरसती हैं.

सामान्य से तेज होती है आर्टिफिशियल बारिश
आईआईटी कानपुर के एक्सपर्ट की मानें तो आर्टिफिशियल बारिश सामान्य बारिश की तुलना में ज्यादा तेज होती है. हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि बादलों में छिड़काव दौरान कितने केमिकल्स का इस्तेमाल किया गया. IIT कानपुर के एक्स्पर्ट 2017 से क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश करवाने की तकनीक पर काम कर रहे थे. इसी साल जून में उन्हें कामयाबी मिली थी. 

टेस्टिंग के दौरान सेसना एयरक्राफ्ट (छोटे विमान) से 5,000 फीट की ऊंचाई पर बादलों में केमिकल्स छिड़का गया, जिससे पानी की बूंदें बनने लगीं और कुछ देर बाद आसमान के इलाकों में बारिश शुरू हो गई थी. 

आर्टिफिशियल बारिश में कितना खर्च आता है?
कृत्रिम बारिश (Artificial Rain Cost) करवाने में मोटा खर्चा आता है. एक्सपर्ट के मुताबिक, इस एक्सपेरिमेंट के लिए राज्य सरकारों को कई तरह की परमीशन लेनी पड़ती है, इसमें केंद्र सरकार भी शामिल होती है. छोटे प्लेन को किराए पर लेना पड़ता है. जिसमें केमिकल स्प्रे के लिए खास इंस्ट्रूमेंट फिट किए जाते हैं. इन कामों में काफी धनराशि खर्च करनी पड़ती है. इसके बाद बादलों में केमिकल्स छिड़काव पर लगभग 3 से 5 लाख रुपये प्रति घंटे के हिसाब से खर्च आता है. इसके बाद अगल हवा का रुख बदल जाए तो पूरा प्लान फेल हो जाता है.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Url Title
How does artificial rain happen and cost delhi pollution level dangerous arvind kejriwal government
Short Title
कैसे होती है आर्टिफिशियल बारिश, इसके पीछे क्या है विज्ञान?
Article Type
Language
Hindi
Created by
Updated by
Published by
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
artificial rain
Caption

artificial rain

Date updated
Date published
Home Title

आर्टिफिशियल बारिश से दिल्ली का प्रदूषण होगा खत्म! समझें तकनीक

Word Count
545