डीएनए हिंदीः एशिया ही नहीं यूरोप के भी कई देश इस समय राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के युद्ध के बाद से यूरोप के कई देशों को कई तरह के संकट का सामना करना पड़ा. अब फ्रांस (France) में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है. यहां फ्रांस की प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न (Elisabeth Borne) के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. भले ही यह प्रस्ताव संसद में टिक ना पाया हो लेकिन विपक्षी दलों ने इसके बहाने सरकार के प्रति अपना विरोध जताया. फ्रांस की संसद में इस अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ 146 सांसदों ने मतदान किया जबकि इस प्रस्ताव को पास कराने के लिए 289 मतों की जरूरत थी.
क्यों लाया गया अविश्वास प्रस्ताव
बता दें कि अप्रैल महीने में हुए चुनाव में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) ने दोबारा जीत हासिल की. इस चुनाव को काफी टक्कर का माना जा रहा था लेकिन आखिरकार मैक्रों चुनाव जीतने में सफल रहे. मैक्रों चुनाव तो जीत गए लेकिन उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला. चुनाव में 577 सीटों वाली एसेंबली में मैक्रों के गठबंधन एनसेंबल को सिर्फ 245 सीटें ही मिली जबकि यहां बहुमत का आंकड़ा 289 है. इसी के बाद से मैक्रों की परेशानी शुरू हो गई.
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क्या महंगाई से बढ़ रहा असंतोष
फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों की लोकप्रियता किसी समय उसी तरह से रही है जैसी भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता है. युवा वर्ग का उन्हें समर्थन मिलता रहा है. हालांकि अब परिस्थिति धीरे-धीरे बदलने लगी है. 2017 में मैक्रों की लोकप्रियता चरम पर भी. युवाओं से लेकर हर वर्ग के चहेते बने हुए थे. अब महंगाई के कारण लोगों को असंतोष बढ़ रहा है. माना जा रहा है कि इसी कारण असेंबली में भी उन्हें कम सीटें मिली थी. महंगाई के विपक्षी दल लगातार मुद्दा बनाए हुए हैं. इसी कारण फ्रांस में नेशनल रैली लगातार अपनी बढ़त बना रही है. राष्ट्रपति चुनाव में भी मैक्रों को धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली की नेता मैरिन ले पेन ने टक्कर दी थी. यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि मैक्रों इंवेस्टमेंट बैंकर रहे हैं. उद्योग और व्यापार को लेकर उनकी अलग सोच रही है. इसे लेकर उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स कम करने जैसे कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं लेकिन बढ़ती महंगाई लगातार मुद्दा बनती जा रही है.
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फ्रांस में किसके पास होती हैं ज्यादा शक्तियां
फ्रांस में राष्ट्रपति के काफी शक्तियां होती हैं. यहां राष्ट्रपति ही कार्यकारी राष्ट्र प्रमुख होता है. इन्हें राष्ट्र चलाने के लिए उन्हें काफी शक्तियां होती हैं. यहां संसद को चलाने के लिए बहुमत की जरूरत होती है. भारत की तरह यहां भी प्रधानमंत्री होता है. यहां संसद में तो प्रधानमंत्री को बहुमत लाना होता है लेकिन वह राष्ट्रपति के साथ ही काम करता है. राष्ट्रपति को संसद में बहुमत मिलने पर ही वह अपनी शक्तियों की सही इस्तेमाल कर सकते हैं. किसी भी बिल को पास कराना हो या बड़े फैसले लेने हो उसके लिए सदन में बहुमत जरूरी होता है.
फ्रांस में विपक्ष हो रहा लगातार मजबूत
फ्रांस में विपक्षी दल लगातार मजबूत हो रहे हैं. 2017 के चुनाव में जहां मैक्रों गठबंधन को 350 सीटों पर जीत मिली थी वहीं इस बात आंकड़ा काफी कम हो गया. यहां विपक्षी दल लगातार मजबूत हो रहे हैं. लेफ्ट की बात करें तो उसने अपनी सीटों में करीब तीन गुना तक बढ़ोतरी की है. 2017 में लेफ्ट के साथ सिर्फ 45 सीटें थी. अब यह बढ़कर 131 हो चुकी हैं. दूसरी तरफ दक्षिणपंथी दल नेशनल रैली की सीटें बढ़कर 89 तक पहुंच चुकी हैं.
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फ्रांस के राजनीतिक संकट की वजह क्या है? क्यों Emmanuel Macron सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव