DNA Explainer: दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. इस आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने अभी से कमर कस ली है. आए दिन आम आदमी पार्टी की तरफ से कुछ न कुछ नए ऐलान तो बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं. बीते दिन आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की जिसमें पार्टी का राइट हैंड कहे जाने वाले मनीष सिसोदिया को पटपड़गंज विधानसभा से टिकट नहीं दिया गया. इस सीट से अब अवध ओझा चुनाव लड़ेंगे. वहीं बीते, कई दिनों से अरविंद केजरीवाल लगातार दिल्ली की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं. अब दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी के इस पैटर्न को समझना चाहती है कि आखिर वह पार्टी जो भ्रष्टाचार के मुद्दे से जन्मी अब अचानक दिल्ली की कानून व्यवस्था पर सवाल करने लगी. कैसे?
हमेशा आप संयोजक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते थे अब अमित शाह को टारगेट करने लगे. बीते कई सालों से पटपड़गंज में अपना परचम लहरा चुके सिसोदिया को जंगपुरा से टिकट दिया गया. इन सभी सवालों पर क्या कहते हैं दिल्ली की राजनीति पर पैनी पकड़ रखने वाले एक्सपर्ट्स, आइए जानते हैं.
करप्शन से कानून व्यवस्था पर केजरीवाल का शिफ्ट
लंबे समय से दिल्ली की राजनीति पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र कहते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी का बीज करप्शन के मुद्दे के खिलाफ जंग को लेकर हुआ था, लेकिन अब उस मुद्दे पर वे खुद कुछ नहीं कह रहे हैं. इसकी वजह हो सकता है कि वे खुद दिल्ली शराब घोटाले में फंस चुके हैं. ऐसे में दिल्ली की जनता के सामने करप्शन की बात कैसे कर सकते हैं? केजरीवाल इन दिनों दिल्ली की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं और इसको लेकर अब वे अमित शाह पर लगातार हमलावर हैं, जबकि बीते दिनों में देखा गया है कि वे मोदी पर निशाना साधते थे.
दिल्ली की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले पत्रकार अजय पांडेय कहते हैं कि केजरीवाल को बीते 10 सालों की राजनीति में ये समझ आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करके कुछ हासिल होने वाला नहीं है. मोदी की आलचोना करके भी केजरीवाल को कुछ नया हासिल नहीं हुआ. दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अमित कुमार कहते हैं कि दिल्ली का वोटर खुले मन से यह बोलता रहा है की दिल्ली में अरविंद और देश में मोदी चाहिए. यह बात 3 लोकसभा चुनाव देख चुके अरविंद केजरीवाल अच्छी तरह से समझ चुके हैं और अब वे अपना राजनीतिक मुख्य प्रतिद्वंद्वी प्रधानमंत्री मोदी के स्थान पर गृहमंत्री अमित शाह को बनाने का प्रयास कर रहें है. हालांकि, अमित शाह सिर्फ बीजेपी में ही नहीं बल्कि देश में भी प्रमुख नेता हैं, ऐसे में कहीं अरविंद केजरीवाल को अमित शाह पर निशाना साधना उल्टा न पड़ जाए?
सिसोदिया का जंगपुरा ट्विस्ट
वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र कहते हैं कि आम आदमी पार्टी को लगता है कि मनीष सिसोदिया को किसी भी सीट से खड़ा कर दो वे जीत ही जाएंगे. सिसोदिया केजरीवाल के लिए तुरुप का इक्का हैं. वहीं, पत्रकार अजय पांडेय कहते हैं कि दिल्ली सरकार इस बात को समझ गई है कि अगर पार्टी का राइट हैंड कहे जाने वाले सिसोदिया पटपड़गंज से हार जाते तो फजीहत होती और पटपड़गंज सीट पर अब अवध ओझा को खड़ा करके आप को कोई नुकसान नहीं होगा. अवध ओझा हारें या जातें इससे पार्टी की छवि पर बड़ा असर नहीं पड़ेगा. दूसरा, अवध ओझा ब्राह्मण हैं, और पटपड़गंज में यूथ की संख्या ज्यादा और तीसरा अवध ओझा पूर्वांचल से संबंध रखते हैं. तो इन सभी फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए आम आदमी पार्टी ने उन्हें यहां से टिकट दिया होगा. पत्रकार मनोज मिश्र कहते हैं कि हो सकता है कि अवध ओझा ने खुद पटपड़गंज से टिकट मांगा हो. वहीं, न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में अवध ओझा ने बताया था कि उनका परिवार पटपड़गंज में रहता है और ये एरिया यूथ की फैक्ट्री है, इसलिए वे पटपड़गंज से चुनाव लड़ना चाहते थे.
पटपड़गंज में पूर्वांचल और जंगपुरा में सिख-पंजाबी, मुस्लिम फैक्टर कितना कारगर?
प्रोफेसर अमित कुमार कहते हैं कि दिल्ली में 30 से 35 प्रतिशत लोग बिहार और उत्तरप्रदेश (पूर्वी उत्तरप्रदेश) के हैं. अवध ओझा, मनीष सिसोदिया के स्थान पर क्षेत्रीय वोटरों को साधने में शायद ज्यादा कामयाब दिख रहें है. सिसोदिया शराब कांड में जेल से जमानत पर आए हैं. यह उनकी दिल्ली में 'शिक्षामैन' की छवी को धूमिल करने में एक बड़ा कारण रहा है. पत्रकार मनोज मिश्र के मुताबिक, जंगपुरा में मुस्लिम, सिख और पंजाबी वोटर ज्यादा है. आप को लगता है कि सिसोदिया जंगपुरा से जीत सकते हैं. हालांकि, कांग्रेस और बीजेपी यहां से कौन से उम्मीदवार उतारती है इस पर भी सिसोदिया की जीत निर्भर करेगी. बता दें, आम आदमी पार्टी ने 2013 के पहले चुनाव में मनिंदर सिंह धीर को यहां से उतारा था. उन्होंने जीत हासिल की और दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष बने. हालांकि, उन्होंने 2015 के चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम लिया. धीर के पार्टी छोड़ने के बाद यहां से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बने प्रवीण कुमार ने जीत का प्रतिशत 48% तक बढ़ा दिया और 2020 में इसे 50% तक पहुंचा दिया. ऐसे में सिसोदिया के लिए जंगपुरा सेफ सीट मानी जा रही है.
चेहरे बदले के पीछे कांग्रेस से सीख
आम आदमी पार्टी अब तक 31 प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुकी है. इन सूचियों में कई चेहरे बदले भी गए हैं. इस पर पत्रकार मनोज मिश्र मानते हैं कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी पूर्व की शीला दीक्षित सरकार से सीख ले रही है. जब शीला दीक्षित को साल 2013 के विधानसभा चुनावों में हार मिली तो राजनीतिक रणनीतिकारों ने कयास लगाया कि अगर शीला दीक्षित एंटी-इनकमबेंसी का रास्ता अपनातीं तो उन्हें हार नहीं मिलती. यही वजह है कि केजरीवाल पूर्व की कांग्रेस सरकार से सीख लेते हुए पार्टी में प्रत्याशियों की सीट बदलकर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं. वहीं, पार्टी समय-समय पर आंतरिक सर्वे कराती रहती है जिसमें जो परिणाम सामने आए होंगे, उन्हें देखते हुए ये बदलाव किए गए हैं.
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केजरीवाल की चुनावी पहल कितनी सफल?
कुलमिलाकर कहा जाए तो केजरीवाल अग्रेसिव चुनावी प्रचार के साथ-साथ बीती सरकारों से भी सीख लेकर खुद की जीत सुनिश्चित करने में लगे हैं. विधानसभा चुनाव अगले साल होना है पर केजरीवाल ने सबसे पहले प्रचार शुरू कर दिया है. यही तत्परता दिखाती है कि वे अपनी जीत को लेकर कितने सजग हैं. दिल्ली में मंगलवार को केजरीवाल ने पांच बड़े ऐलान किए, जिसमें उन्होंने ऑटो ड्राइवरों को 10 लाख तक का बीमा, बेटियों की शादी में 1 लाख रुपये की मदद से लेकर बच्चों को फ्री कोचिंग देने का वादा किया है. अब देखना होगा कि केजरीवाल की ये तत्परता और तेजी आने वाले विधानसभा चुनाव में कितना कारगर साबित होगी?
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