'जैसे ही ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम पंक्ति आई वैसे ही भीड़ उग्र हो गई. ऑडियंस में से किसी ने कहा ईश्वर के साथ अल्लाह कैसे हो सकता है. भीड़ इतनी उग्र थी कि मुझे लगा कहीं तोड़फोड़ न हो जाए. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि देश किस तरफ जा रहा है. मैं आहत हूं और दुखी हूं.'
बीते दिनों बिहार की राजधानी पटना के बापू सभागार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर भोजपुरी गायिका देवी द्वारा बापू का प्रिय भजन 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' गाने पर मचे बवाल के बाद देवी ने DNA हिंदी को एक्सक्लुसिव बातचीत में बताया कि उस दिन क्या हुआ था. उन्होंने कहा कि उस दिन जो हुआ उससे मैं बहुत आहत, हैरान, परेशान और दुखी हूं. देवी ने कहा कि पहले कार्यक्रम में हंगामा किया गया और अब सोशल मीडिया के जरिए धमकी मिल रही है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि फेसबुक पर लिखा गया है कि 'सुधर जाओ वरना जहां गांधी जी गए हैं, वहीं पहुंचा देंगे.' हालांकि, जिन लोगों ने उन्हें धमकी है उसके बारे में अभी जानकारी नहीं.
पटना में हुए हंगामे के बारे में बातचीत में देवी ने कहा मैं वहां गाने नहीं बल्कि एक सम्मान समारोह में शामिल होने गई थी. आयोजकों को मुझे सम्मानित करना था, लेकिन चूंकि मैं एक गायिका हूं तो लोगों कि डिमांड थी कि मैं कुछ गाऊं. ऐसे में मुझे लगा कि बापू के प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम गाना चाहिए. इस गीत में जैसे ही ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम शब्द आए तो सामने बैठे लोगों का विरोध शुरू हो गया. मैं डर गई और समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ. सब इतना हंगामा क्यों कर रहे हैं. आयोजकों ने मुझे माफी मांगने को कहा. और मैंने सभी को सॉरी कहा.
बापू के प्रिय भजन पर हंगामा क्यों बरपा?
ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम एक ऐसा भजन है जिसे कई फिल्मों में इस्तेमाल किया गया है. करीब 10 से अधिक फिल्मी गाने भी इस भजन पर बन चुके हैं. विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि इस भजन के मूल स्वरूप में ईश्वर और अल्लाह का कहीं जिक्र नहीं था, लेकिन महात्मा गांधी ने धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने के लिए इस भजन में बदलाव किए और ईश्वर-अल्लाह को एक साथ जोड़ दिया. इस कार्यक्रम का आयोजन पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के नेता अश्विनी चौबे ने किया था. उन्होंने भी मंच से इस भजन के लिए माफी मांगी. 1930 में दांडी मार्च के दौरान इसे गांधी गाया करते थे, लेकिन इतने सालों बाद इस भजन पर हंगामा हो रहा है.
मूल भजन : जागरूकता बनाम असहनशीलता
वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार प्रेम प्रकाश का कहना है कि आजकल जागरूकता बनाम असहनशीलता का कॉन्सेप्ट बहुत तेजी से उभर रहा है. जागरूकता इसलिए कि अगर रघुपति राघव राजा राम भजन पर हंगामा नहीं होता तो शायद लोग इसके सही स्वरूप को नहीं पहचान पाते और असहनशीलता इसलिए कि लोगों ने हंगामा कर दिया. उन्होंने कहा कि अपनी पहचान को लेकर जागरूक होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन जागरूकता असहनशीलता नहीं होनी चाहिए. प्रेम प्रकाश के मुताबिक, इस बात के भी प्रमाण हमारे पास नहीं हैं कि रघुपति राघव राजा राम भजन में बदलाव गांधी जी ने ही किये थे. गांधी इसे गाते थे इसके प्रमाण तो हैं लेकिन इसमें बदलाव के प्रमाण नहीं हैं.
क्या है भजन का मूल स्वरूप
इस भजन के मूल स्वरूप को लेकर कई दावे किए जाते हैं, जिनमें से एक दावा है कि 17वीं सदी में प्रतिष्ठित कवि और संत स्वामी रामदास ने इस भजन को लिखा था और इस भजन में अल्लाह शब्द कहीं नहीं था. यह भी कहा जाता है कि भक्ति साहित्य को बढ़ावा देने वाले पंडित लक्ष्मणाचार्य ने लिखा था और गांधी जी ने उन्हीं के भजन को संशोधित करके बदलाव कर दिया था. इस भजन का मूल स्वरूप 'रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम/सुंदर विग्रह मेघश्याम, गंगा तुलसी शालग्राम/रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम.' था. इस भजन में मेघश्याम और गंगा तुलसी शालग्राम जैसे शब्दों को ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम से बदल दिया गया. आज यही बदला हुआ स्वरूप प्रसिद्ध है.
'देश किस तरफ जा रहा है'
लोगों के विरोध से आहत लोक गायिका देवी का कहना है कि अगर लोगों को विरोध ही करना था तो कोई और तरीका अपनाते, लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि इतना सुंदर सहिष्णु भजन पर कोई हंगामा कैसे कर सकता है. हंगामा इतना हो गया कि मुझे बीच में गाना रोकना पड़ा. देश गलत दिशा में जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि मैं बीजेपी के नेताओं से यही कहना चाहती हूं कि ऐसे लोगों का उन्हें बहिष्कार करना चाहिए. ऐसे लोगों को पार्टी के सामने फटकने भी नहीं दिया जाना चाहिए. ये घटना मेरे लिए चिंता का विषय हो गई कि कोई भजन पर कैसे आपत्ति कर सकता है. देश हमारा कहां जा रहा है. मोदी जी खुद इस भजन को सुनते हैं और लोग इसका विरोध कर रहे हैं. हम वसुधैव कुटुम्बकम को मानने वाले लोग हैं, इधर, मुसलमानों पर विरोध हो रहा है, लोगों में ये नफरत क्यों बढ़ रही है मुझे समझ नहीं आ रहा.
'देश आत्ममंथन के दौर में'
साहित्यकार और पत्रकार प्रेम प्रकाश का कहना है कि जब भी ऐसी कोई घटना देश में घटती है तो हमें सन 1947 याद रखना चाहिए. गांधी, नेहरू सब जीवित थे, तब भी देश का बंटवारा हो गया, लेकिन आज तमाम बातें होते हुए भी देश बंटने को तैयार नहीं है. भारत आज आत्ममंथन के दौर में है. जैसे ही मंथन समाप्त होगा, तब पता चलेगा कि हम कहां पहुंचे हैं. वैसे भी मनोविज्ञान कहता है कि कोई भी इंसान 24 घंटे विरोध या तनाव में नहीं रह सकता. पर मेडिटेशन में रह सकता है. शांति में रह सकता है.
यह भी पढ़ें - लोकगीतों की 'देवी' थीं शारदा सिन्हा, जानें उनके संघर्ष के अनसुने किस्से, देखें PHOTOS
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.
- Log in to post comments
DNA Exclusive: 'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम' पर हंगामा जागरूकता बनाम असहनशीलता! गायिका ने बताई आपबीती, बोलीं-'देश किधर...'