डीएनए हिंदी: मछुआरों को कभी मछली पकड़ते देखा है? कभी जाल तो कभी फिशिंग रॉड (Fishing Rod) के सहारे शिकार के लिए उतरने वाले मछुआरे मछलियों को पकड़ने के लिए क्या-क्या नहीं करते. फिशिंग रॉड में कभी मांस बांधते हैं तो कभी केंचुआ, जिससे मछलियां फंस जाएं. कुछ ऐसा ही काम साइबर ठग (Cyber Criminals) फिशिंग मेल (Phishing Emails) के सहारे लोगों को लूटने के लिए करते हैं. लिंक पर एक बार मासूम शिकार अपनी डीटेल्स भर दे को कुछ सेकेंड्स के भीतर पूरी तरह कंगाल.
साइबर वर्ल्ड (Cyber World) के ठग इन्हीं मछुआरों (Fisherman) की तरह लोगों पर घात लगाए रहते हैं कि कब एक गलती हो और शिकार पूरा हो जाए. साइबर फिशिंग के लिए ठग ऐसे ही मेल भेजते हैं जिनके भ्रम में उलझकर आदमी अपनी सारी कमाई, प्राइवेसी गंवा बैठता है.
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क्या होती है फिशिंग?
फिशिंग एक ऑनलाइन स्कैम है. यहां अपराधी संवेदनशील जानकारियां चुराने के लिए लुभावने ईमेल, मैसेज, विज्ञापन या दूसरे संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं. हर मैसेज में एक ऐसा लिंक होता है जिसमें आपसे कुछ गोपनीय जानकारियां मांगी जाती हैं. अक्सर मैसेज भेजने वाले ठग लोक-लुभावने ऑफर्स का हवाला देते हैं. ईमेल में साइबर ठग किसी बड़ी वेबसाइट या प्लेटफॉर्म की रिप्लिका तैयार करते हैं. देखने में यह किसी बड़े संस्थान की असली वेबसाइट जैसी दिखती है. कई बार दूसरे माध्यमों से ठगी की जाती है. आपसे कुछ जरूरी डीटेल्स फिल कराए जाते हैं. जैसे आपका आधार कार्ड नंबर, पैन कार्ड नंबर, मोबाइल, बैंकिंग डीटेल्स, डेबिट-क्रेडिट कार्ड की जानकारी और अंत में आपका ओटीपी.
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साइबर ठग इसी फॉर्म में आपसे एक अमाउंट फिल कराते हैं. जैसे ही आप सारे विवरण भर देते हैं और ओटीपी एंटर करते हैं, आपके बैंक अकाउंट से उतना ही अमाउंट डिडक्ट हो जाता है. मतलब आपके जमा-पूंजी ठग मिनटों में उड़ा ले जाते हैं.
कोई भी हो सकता है फिशिंग का शिकार?
साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाले एडवोकेट अनुराग कहते हैं कि फिशिंग मेल का शिकार बड़े-बड़े फर्म हो जा रहे हैं. देश के बड़े पत्रकारों में शुमार निधि राजदान भी बड़े फिशिंग मेल का शिकार हो चुकी हैं. वह एक बड़े मीडिया चैनल से जुड़ी थीं. उन्हें हावर्ड यूनिवर्सिटी से एक फेक ऑफर लेटर जारी हुआ. उन्होंने यकीन कर लिया था कि सच में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से उन्हें ऑफर मिला है. उन्होंने अपने 21 साल पुरानी नौकरी को अलविदा कह दिया था और कहा था अब वह पढ़ाने जा रही हैं. बाद में जब उन्होंने यूनिवर्सिटी प्रशासन को फोन किया तो पता चला कि वह एक फिशिंग मेल का शिकार हुई हैं. यह सिर्फ उनके साथ नहीं हुआ है. ऐसे हाल के दिनों में कई मामले सामने आते रहते हैं.
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एक केस का जिक्र करते हुए एडवोकेट अनुराग ने बताया कि साइबर ठगी का शिकार होने वाला शख्स एक ठेले की दुकान चलाता है. एक दिन उसके पास किसी कंपनी का फोन आया कि आपकी लॉटरी निकली है और आप मनचाही रकम ऑनलाइन हासिल कर सकते हैं. शख्स झांसे में आया और ऑनलाइन पूरे फॉर्म को फिल कर दिया. कुछ देर बार शख्स के खाते से 89 हजार रुपये कट गए. पुलिस और साइबर सेल में शिकायत दर्ज की लेकिन पैसे केस के 6 महीने बीत जाने के बाद भी नहीं आए हैं.
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कैसे ऑनलाइन फिशिंग से बचें?
एडवोकेट अनुराग कहते हैं कि फिशिंग से बचने के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. किसी भी अनवेरिफाइड लिंक पर क्लिक न करें. अगर क्लिक कर दिया है तो डीटेल्स न भरें. कोई भी कंपनी आपको बेवजह फायदा नहीं पहुंचाती है. मनचाही रकम कोई भी कंपनी नहीं देती है. ऐसे फोन, कॉल या ईमेल के झांसे में कभी न आए, जिसमें आपको धमाकेदार ऑफर दिया जा रहा हो. अपने बैंकिंग डीटेल्स किसी के साथ शेयर न करें. किसी वेबसाइट पर इसे फिल न करें. अगर इन बातों का ध्यान रखते हैं तो आप फिशिंग का शिकार होने से बच सकते हैं.
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वहीं साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर पैनी नजर रखने वाले एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र कहते हैं, 'साइबर अपराधी आपको तरह-तरह के झांसे देते हैं. किसी भी झांसे में फंसने से पहले उस ऑफर की विस्तृत पड़ताल करें. किसी जागरूक व्यक्ति के साथ बातचीत करें. अपने बैंकिंग कस्टरमर केयर अधिकारी से भी बात कर सकते हैं. ऑनलाइन भी सर्च कर सकते हैं. ऐसे मामलों में जानकारी ही आपको लुटने से बचा सकती है.'
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फिशिंग मेल क्या है, कैसे एक लिंक पर क्लिक करते ही कंगाल हो जाते हैं लोग?