डीएनए हिंदी: कांग्रेस ने महाराष्ट्र के नागपुर में बड़ी रैली कर 2024 लिए बिगुल फूंक दिया. पार्टी के 139वें स्थापना दिवस के मौके पर गुरुवार को नागपुर में विशाल रैली की और संदेश दिया ‘हैं तैयार हम’. इस दौरान राहुल गांधी ने बीजेपी और आरएसएस पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई विचारधारा की है, लोगों को भले ही लगता है कि यह राजनैतिक लड़ाई है. अब सवाल ये उठ रहा है कि दिल्ली से करीब 1100 किलोमीटर दूर कांग्रेस ने नागपुर को ही इस कार्यक्रम के लिए क्यों चुना? दरअसल इसके पीछे क्या कई कारण हैं.
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपने दो राज्यों में सरकार गंवानी पड़ी. कांग्रेस इस समय इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. पार्टी के तमाम बड़े नेता भी पार्टी का साथ छोड़कर जा चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस अपनी पुरानी जमीन को तलाशने में जुटी है. यही वजह है कि कांग्रेस ने 2024 लोकसभा चुनाव का शंख ऐसी जगह से बजाया, जहां से उसका पुराना नाता रहा है.
नागपुर से कांग्रेस का पुराना कनेक्शन
दरअसल, दिसंबर 1920 में कांग्रेस ने नागपुर अधिवेशन में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था. इस दौरान कांग्रेस ने अहम संगठनात्मक सुधार किए थे. अधिवेशन में AICC और CWC का गठन हुआ था. जिसमें 350 सदस्यों के साथ एआईसीसी को मजबूत करने के लिए 15 सदस्यीय CWC बनाने का निर्णय लिया गया था. सीडब्ल्यूसी को पार्टी में सर्वोच्च निर्णय लेने के मकसद से बनाया गया था. कांग्रेस ने नागपुर से कई बड़े राजनीतिक फैसले लिए हैं और कामयाबी हासिल की.
आपातकाल के दौरान कांग्रेस को मिली थी कामयाबी
आपातकाल के दौरान जब समाजवादी आइकन जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ' आंदोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस बुरी हालत में आ गई थी. लेकिन उस दौरान के चुनाव में भी कांग्रेस ने नागपुर से अपनी जीत बरकरार रखी थी. आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने नागपुर में रैली की थी, जिससे पार्टी के लिए विदर्भ की सभी सीटें जीतने का रास्ता साफ हो गया था.
RSS को चुनौती देना चाहती है कांग्रेस
लंबे समय से नागपुर को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का गढ़ माना जाता है. यहां पर आरएसएस का मुख्यालय है, जिसकी स्थापना 1925 में शहर के डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी. मौजूदा समय में नागपुर को बीजेपी का पावर हाउस माना जाता है. यहां से पूरे देश में आरएसएस अपनी विचारधारा को चलाती आई है. ऐसे में कांग्रेस इसी विचारधारा को चुनौती देने के लिए यहां से मैदान में उतरी है.
अम्बेडकर की दीक्षाभूमि
नागपुर में ही भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को दशहरा के दिन अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था. इस ऐतिहासिक स्थल पर दीक्षाभूमि नामक एक स्मारक है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो काग्रेंस आगे की राजनीतिक चुनौतियों को देखते हुए नागपुर से बदलाव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आशान्वित है. उनका कहना है कि कांग्रेस ने इस शहर को इसलिए चुना क्योंकि नागपुर आरएसएस और संविधान के प्रमुख वास्तुकार दोनों की विचारधाराओं को प्रतिबिंबित करता है.
दक्षिण में एकजुटता का संदेश
2024 के लोकसभा चुनाव को उत्तर बनाम दक्षिण के रूप में देखा जा रहा है. देश का भौगोलिक केंद्र माने जाने वाले नागपुर महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें आती हैं. यूपी में 80 तो महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें हैं. नागपुर में रैली कर कांग्रेस ने दक्षिण के उन राज्यों को भी संदेश देने की कोशिश की है जहां बीजेपी कमजोर है. तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र समेत छह राज्यों में कुल 177 सीटें हैं. महाराष्ट्र छोड़कर इन सभी राज्यों में गैर बीजेपी दलों की सरकार है.
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