Role of women in Indian politics and governance: भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर रेखा गुप्ता को चुना और आम आदमी पार्टी ने कालकाजी से विधायक आतिशी को दिल्ली विधानसभा के लिए नेता विपक्ष चुना. इसी के साथ दिल्ली को पहली महिला नेता विपक्ष मिल गई. ऐसा नहीं है कि दिल्ली में पहली बार किसी महिला के हाथ में कमान आई है. आपको याद होगा 1998 से 2013 तक कांग्रेस की शिला दीक्षित दिल्ली की मख्यमंत्री रहीं. 1998 में कुछ महीनों के लिए सुषमा स्वराज के हाथ में कमान आई और अब 2025 में रेखा गुप्ता के हाथ में कमान है. इस बार दिल्ली में खास ये है कि सत्ता और विपक्ष दोनों में महिलाएं शीर्ष पोजिशन पर हैं.
महिलाओं के हाथ में जब सत्ता आती है तो क्या बदलता है?
महिला नेता आमतौर पर अधिक पारदर्शी और जवाबदेह शासन की ओर अग्रसर होती हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के नेतृत्व वाले देशों में भ्रष्टाचार की दर कम होती है. वहीं, महिलाएं आमतौर पर सहानुभूति और सहकारिता से भरे नेतृत्व को बढ़ावा देती हैं. वे सामाजिक कल्याण, पर्यावरण संरक्षण और शांति वार्ता में अधिक योगदान देती हैं.
इसी तरह दिल्ली की कमान जिस वक्त शीला दीक्षित के हाथ में थी तब दिल्ली के बुनियादी ढांचे, मेट्रो विस्तार, और शहरी विकास में महत्वपूर्ण काम किये गए. यही वह समय था जब दिल्ली मेट्रो का पहला फेज 2002 में शीला दीक्षित सरकार के दौरान शुरू हुआ. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, शीला दीक्षित सरकार ने दिल्ली की पब्लिक ट्रांसपोर्ट को पूरी तरह से CNG में बदल दिया. 'ग्रीन दिल्ली, क्लीन दिल्ली' अभियान के तहत दिल्ली में वृक्षारोपण और सफाई अभियान चलाए गए. दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने में शीला दीक्षित की दूरदृष्टि ने अहम योगदान दिया. वहीं, सुषमा स्वराज बहुत कम समय के लिए दिल्ली की सत्ता में रहीं. अब कमान रेखा गुप्ता के हाथों में हैं. रेखा गुप्ता ने भी कुर्सी संभालने के बाद सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया है. दिल्ली काया पलटने के लिए रेखा गुप्ता भी एक्शन मोड में काम कर रही हैं.
भारत में किन-किन राज्यों में महिलाओं ने संभाली कमान?
पश्चिम बंगाल: ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में मजबूत पकड़ बनाई है. उन्होंने कन्याश्री योजना जैसी नीतियां लागू कीं, जिससे लाखों लड़कियों को शिक्षा और वित्तीय सहायता मिली. साथ ही, उन्होंने किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाईं, जिससे वे लगातार सत्ता में बनी रहीं.
तमिलनाडु: जयललिता ने लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में शासन किया और महिला नेतृत्व की मिसाल पेश की. उनकी अम्मा कैंटीन, अम्मा वाटर, और अम्मा फार्मेसी जैसी योजनाएं गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुईं.
उत्तर प्रदेश: मायावती ने दलित राजनीति को एक नई दिशा दी और बहुजन समाज पार्टी (BSP) को मजबूत किया. उनके कार्यकाल में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू हुईं, जिनमें आंबेडकर पार्क और एक्सप्रेसवे परियोजनाएं शामिल हैं.
राजस्थान: वसुंधरा राजे ने भी दो बार मुख्यमंत्री पद संभालकर महिला सशक्तिकरण की दिशा में योगदान दिया. उन्होंने भामाशाह योजना की शुरुआत की, जिससे महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता मिली और सरकारी लाभ सीधे उनके खातों में जाने लगे.
आगे की राह आसान नहीं....
हालांकि, ये दुखद है कि महिलाएं राजनीतिक पदों को संभालने में सक्षम हैं लेकिन उन्हें उतने मौके नहीं मिलते, जितने की वो हकदार हैं. भारत की पहली लोकसभा में 5 प्रतिशत महिलाएं जो अब बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई हैं लेकिन वैश्विक दृष्टि से यह अभी भी कम है. दुनिया की तरफ देखें तो रवांडा, जहां निचले सदन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 61.3% है, वैश्विक स्तर पर शीर्ष पर है. इसके बाद क्यूबा (53.4%), निकारागुआ (51.7%), और मेक्सिको (50%) का स्थान है. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि कुछ देशों ने महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन विकासशील भारत में ये आंकड़ा अभी निचले पायदान पर है. ऐसे में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ाना और भी जरूरी हो गया है.
यह भी देखा गया है कि भारत में जब-जब महिलाएं राजनीति में आई हैं तब-तब किसी पुरुष के हाथ की कठपुतली या नाममात्र की नेता बनकर रह गई हैं. राजनीति में महिलाएं अक्सर पितृसत्तात्मक सोच का शिकार होती हैं और उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने में कठिनाइयां आती हैं. कई बार महिला नेताओं को केवल प्रतीकात्मक रूप से आगे लाया जाता है, जबकि असली शक्ति पुरुष नेताओं के पास रहती है. महिला नेतृत्व को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे पार्टी के भीतर असहमति और बाहरी राजनीतिक दबाव. हालांकि, अब की सशक्त नारी खुद के लिए राजनीति में जगह बना रही है.
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दिल्ली में सत्ता और विपक्ष दोनों की कमान महिलाओं के हाथों में आना एक क्रांतिकारी बदलाव है. यह महिला सशक्तिकरण के लिए न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है. यदि यह नेतृत्व सफल रहता है, तो यह देशभर में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को और अधिक बढ़ावा दे सकता है.
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दिल्ली में CM रेखा गुप्ता, नेता विपक्ष आतिशी : क्या यह नया राजनीतिक दौर? महिलाओं के कमान संभालने से क्या बदलेगा?