डीएनए हिंदी: भारत का महत्वाकांक्षी मून मिशन अपने आखिरी चरण में पहुंच गया है. चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3 Landing) 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव (South Pole) पर लैंडिंग करेगा. इस लैंडिंग पर पूरी दुनिया की नजर टिकी हुई है. क्योंकि चंद्रयान-3 पहला यान होगा जो चांद के साउथ पोल पर उतरेगा. भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो बुधवार को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान को चांद की सतह पर लैंड कराएगी.
इसरो के अधिकारी ने बताया कि 23 अगस्त को चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने से 2 घंटे पहले हम लैंडर मॉड्यूल की स्थिति और चंद्रमा पर स्थितियों के बारे में जानेंगे और उसके बाद तय करेंगे की उस समय यान का उतारना उचित होगा या नहीं. कोई समस्या नहीं होती तो हम 23 अगस्त तय समय पर ही चंद्रयान की लैंडिंग कराएंगे. उन्होंने कहा कि भारत का चंद्रयान-3 का मिशन सक्सेसफुल हो जाता है तो वह चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा.
साउथ पोल क्यों है खास?
विशेषज्ञों की मानें तो चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग करना चुनौतियों से भरा है. यहां अंधेरा ज्यादा होने की वजह से किसी भी देश ने अपना यान नहीं उतारा है. दक्षिणी ध्रुव के सबसे नजदीक अगर किसी देश ने अपना यान उतारा तो वह अमेरिका है. 10 जनवरी 1968 में अमेरिका ने सर्वेयर-7 स्पेसक्राफ्ट को साउथ पोल के पास उतारा था, लेकिन ये जगह चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्पॉट से काफी दूर है.
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ISRO के प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ ने बताया कि दक्षिणी ध्रुव के नजदीक स्थित मैंजिनिस-यू (Manzinus-U) क्रेटर के पास चंद्रयान को उतारा जाएगा. चांद की इस दिशा में चंद्रयान-3 के लिए अंधेरा ही चुनौती नहीं है, बल्कि वहां का तापमान भी है. दक्षिणी ध्रुव पर तापमान माइनस 200 डिग्री सेल्यियस या उससे भी कम हो जाता है. इस वजह से रोशनी पर्याप्त नहीं रहती. इसरो से पहले साउथ पोल पर रूस का लूना-25 लैंड करने वाला था, लेकिन 20 अगस्त को वह चंद्रमा पर हादसे का शिकार हो गया और मिशन फेल हो गया.
शाम को ही क्यों जा रही Chandrayaan-3 लैंडिंग
दरअसल, चंद्रयान-3 की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग कराई जाएगी. यह समय धरती पर शाम का होगा लेकिन चांद पर उस समय सूरज उग रहा होगा. इसरो के चीफ ने बताया कि यह समय इसलिए चुना गया है कि ताकी लैंडर को 14 से 15 दिन सूरज की रोशनी मिल सके. इससे लैंडर के जरिए सारे साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स करने में आसानी होगी. तस्वीरें भी साफ आ सकेंगी.
उन्होंने बताया कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वो सूरज की रोशनी से ऊर्जा लेकर चांद पर 1 दिन बिता सके. बता दें कि चंद्रमा पर एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है. भारत 2026 से पहले चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्रों का पता लगाने के लिए जापान के साथ एक ज्वाइंट लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (Lupex) मिशन की योजना भी बना रहा है. चंद्रमा पर दुनिया भर का जो फोकस हो रहा है उसका कारण पानी बताया जा रहा है.
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चंद्रमा के साउथ पोल पर ऐसा क्या है, जहां भारत चंद्रयान-3 की करा रहा लैंडिंग