डीएनए हिंदी: Election Results 2023- पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनावी नतीजों से देश की राजनीति पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है. तीनों छोटे-छोटे राज्य हैं, जिनमें लोकसभा की सीटें भी बहुत ज्यादा नहीं है. इसके बावजूद बृहस्पतिवार को इन चुनाव परिणामों पर पूरे देश की नजर लगी हुई थी. इसका कारण इन चुनावों में वैचारिक तौर पर एक-दूसरे की धुर विरोधी कांग्रेस और वामपंथी दलों का आपस में गठबंधन बनाना, हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा का ईसाई बहुल मेघालय में अकेले दम पर उतरना और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का त्रिपुरा और मेघालय के जरिये पूर्वोत्तर की राजनीति में दस्तक देने का प्रयास था. चुनावी नतीजे अब घोषित हो चुके हैं. भाजपा ने त्रिपुरा और नगालैंड में अपनी सरकार बरकरार रखना तय कर लिया है तो मेघालय में भी वह फिर से NPP के साथ गठबंधन की सरकार बनाने की तैयारी में है. 

आइए 6 पॉइंट्स में जानते हैं इन चुनाव परिणामों का सियासी लिहाज से क्या मायने हैं और भाजपा को इनसे क्या मिला है या उसने क्या खोया है. 

1. पहले जान लेते हैं तीनों राज्यों के रिजल्ट

रात 8 बजे तक सामने आए चुनाव परिणामों के लिहाज से भाजपा और उसकी गठबंधन सहयोगी IPFT ने 60 सीट की विधानसभा में 33 सीट जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है. यहां कांग्रेस-वामपंथी दलों को 14 और पहली बार चुनाव लड़ रही टिपरा मोथा पार्टी को 13 सीट हासिल हुई हैं. नगालैंड में भाजपा और NDPP के गठबंधन ने 59 सीटों में से 37 पर जीत हासिल कर ली है, जबकि उसके बाद सबसे ज्यादा 21 सीट पर निर्दलीय व अन्य छोटे दल जीते हैं. यहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है. मेघालय में भाजपा के साथ पिछली बार सरकार बनाने वाली NPP ने 59 सीट में से 26 जीती हैं, जबकि अकेले दम पर उतरे भगवा दल को 2 सीट मिली हैं. पहली बार चुनाव लड़ रही टीएमसी ने सभी को चौंकाते हुए 5 सीट जीत ली हैं, जबकि कांग्रेस को भी 5 सीट मिली हैं. एक अन्य पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश की लुकमा सीट पर उपचुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध जीत गई है.

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2. पूर्वोत्तर में भाजपा की स्थिति और मजबूत, कांग्रेस सफाए की तरफ

इन चुनावी नतीजों को पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की मजबूत होती स्थिति के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि एकसमय इस इलाके में बेहद मजबूत रही कांग्रेस का सफाया होता दिख रहा है. नगालैंड में भाजपा पहली बार दहाई के आंकड़ें में सीट जीती है. यहां भाजपा+NDPP गठबंधन को मिली 37 सीट में भाजपा का हिस्सा 12 का है, जो उसके आगे बढ़ने के संकेत हैं. त्रिपुरा में भी भाजपा ने भले ही पिछली बार की 36 सीट के मुकाबले अपने दम पर इस बार 32 सीट (1 सीट IPFT की) ही मिली हैं, लेकिन इस लगातार 30 साल वामपंथी सत्ता का केंद्र रहे राज्य में लगातार दूसरी बार भाजपा की बहुमत के साथ सरकार बरकरार रखना ही बेहद अहम है.

खास बात ये है कि यहां कांग्रेस और वामपंथी दल आपसी गठबंधन में उतरकर भी महज 14 सीट ही जीत पाए हैं. इनसे ज्यादा बेहतर प्रदर्शन त्रिपुरा के शाही घराने के वंशज प्रद्योत माणिक देबबवर्मा की टिपरा मोथा पार्टी ने किया, जो पहली बार उतरकर भी 13 सीट जीतने में सफल रही है. मेघालय में भले ही भाजपा को 2 ही सीट मिली हैं, लेकिन हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी के लिए अकेले दम पर इसे बढ़िया शुरुआत माना जा सकता है.

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3. साल के बाकी विधानसभा चुनावों के लिए बढ़िया संकेत

साल 2023 में अभी 5 और राज्यों में चुनाव होने बाकी हैं. इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल हैं. इनमें तेलंगाना को छोड़कर अन्य में भाजपा की सरकार है या पहले भगवा सरकार रह चुकी है. ऐसे में साल की शुरुआत में पहले तीन राज्यों के चुनाव में भाजपा का सत्ता बरकरार रखना बाकी चुनावों के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है. 

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4. कामयाब हो रहा पूर्वोत्तर को जोड़ने का मंत्र, अलगाववादी मुद्दे पिछड़े

राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से भाजपा पूर्वोत्तर को अपने 'रिजल्ट कार्ड' के तौर पर पेश करना चाहती है. केंद्र में कांग्रेस या संयु्क्त मोर्चे की सरकारों के दौरान देश का यह अहम हिस्सा ज्यादातर स्थानीय अलगाववादी आंदोलनों और हिंसक विद्रोहों की चपेट में ही रहा है. विधानसभा चुनावों के दौरान भी इसी से जुड़े मुद्दे हावी रहे हैं. भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान इन मुद्दों का हल तलाशना शुरू किया था, जिसे बाद में कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी धीमी गति से आगे बढ़ाया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद देश के इस पूर्वोत्तर हिस्से की सामरिक अहमियत को चीन के खतरे की नजर से समझा और साल 2015 में पूरे पूर्वोत्तर को एकजुट करने की मुहिम चलाई. इस मुहिम की कमान नॉर्थ-ईस्ट डेवलपमेंट अलायंस (NEDA) का गठन कर असम के मुख्यमंत्री हिमांत बिस्वा सरमा को सौंपी गई. इसमें क्षेत्रीय दलों को एकसाथ लाने की कवायद शुरू की गई. बृहस्पतिवार को आए रिजल्ट दिखाते हैं कि भाजपा इस मुहिम में सफल रही है. मेघालय में भाजपा को महज 2 सीट मिली हैं, जबकि कांग्रेस और टीएमसी ने 5-5 सीट जीती हैं. इसके बावजूद मुख्यमंत्री कोनराड संगमा (Conrad Sangma) ने सरकार गठन में राहुल गांधी या ममता बनर्जी के बजाय अमित शाह (Amit Shah) से मदद मांगी है.

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5. दक्षिण का नुकसान पूर्वोत्तर से पूरा करने की जुगत

दक्षिण भारत में भाजपा अपना पूरा जोर लगाने के बावजूद कर्नाटक से आगे नहीं बढ़ पाई है. तेलंगाना में पार्टी ने अलग इमेज बनाई है, लेकिन वह अभी अपने दम पर बहुत ज्यादा लोकसभा सीट वहां जीतने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में भाजपा के साल 2024 लोकसभा चुनावों के लिए अतिरिक्त सीटें जुटाने के लक्ष्य में पूर्वोत्तर राज्य बेहद अहम हिस्सा हैं. पूर्वोत्तर राज्यों में 25 सीटें हैं, जिनमें 14 अकेले असम में है. इसी कारण भाजपा असम में लगातार ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा दे रही है. इसके अलावा त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में 2-2 सीट, जबकि मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम में 1-1 लोकसभा सीट है. यदि भाजपा इन 25 में से 20 सीट भी जीतने में सफल रहती है तो उसे दक्षिण भारत में ज्यादा सफलता नहीं मिलने का कुछ नुकसान पूरा हो सकता है. साल 2019 में भाजपा यहां 25 में से 14 सीट जीतने में सफल रही थी, जबकि साल 2014 में यह संख्या 8 ही थी. 

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6. पूर्वोत्तर में जीत से अल्पसंख्यक विरोधी छवि तोड़ने में मदद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार भाजपा को खालिस हिंदुओं की पार्टी वाली छवि से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए बार-बार हिंदुत्ववादी मुद्दों को हवा देने के बाद कदम पीछने का काम हो रहा है. इसके बावजूद भाजपा पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगता रहा है. पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई अल्पसंख्यकों की बहुत बड़ी तादाद है. ऐसे में यहां जीत मिलने पर भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अल्पसंख्यक विरोधी छवि को खारिज करने का मौका मिलेगा.

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पूर्वोत्तर के चुनावी रिजल्ट दे रहा क्या संकेत, क्या हैं भाजपा के सियासी मायने
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Assembly election Results 2023 में भाजपा की जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देते पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा.
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Assembly election Results 2023 में भाजपा की जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देते पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा.

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पूर्वोत्तर के चुनावी रिजल्ट दे रहे क्या संकेत, क्या हैं भाजपा के लिए सियासी मायने, 6 पॉइंट्स में जानिए