डीएनए हिंदी: अमेरिका का मिशन मून आर्टिमिस फेल हो गया है. चांद पर लैंडिंग करने से पहले नासा (NASA) का पेरेग्रीन अंतरिक्ष यान में खराबी आ गई. इस मिशन को डिजाइन करने वाली कंपनी एस्ट्रोबोटिक ने इसकी जानकारी दी है. एस्ट्रोबोटिक ने कहा कि पेरेग्रीन चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाएगा. नासा ने पेरेग्रीन को माउंट एवरेस्ट का टुकड़ा, वैज्ञानिक प्रयोग, पृथ्वी से संदेश और मानव अवशेष लेकर चांद पर भेजा था.
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने 8 जनवरी 2024 को फ्लोरिडा से इस अंतरिक्ष यान को लॉन्च किया था. लेकिन 24 घंटे से कम समय में ही यह मिशन फेल हो गया. 50 साल के बाद यह अमेरिका का पहला चंद्रमा लैंडर था. एस्ट्रोबोटिक टेक्नोलॉजी के पेरेग्रीन लूनर एल में एक परेशानी का सामना करना पड़ा है. मिशन टीम ने लैंडर की बैटरी को पूरी तरह चार्ज किया था, लैंडर के थ्रस्टर्स अधिकतम 40 घंटे तक ही काम कर सका. गौरलतल है कि पिछले साल रूस के लूना-25 का भी ऐसा ही हाल हुआ था.
NASA ने 2026 तक टाला मिशन
इस मिशन के फेल होने की वजह से नासा ने चंद्रमा पर उतारने के अपने मानवयुक्त आर्टेमिस मिशन को 2026 तक के लिए टाल दिया है, जो चंद्रमा की सतह पर पहली महिला और पहले अश्वेत व्यक्ति को भेजेगा. NASA ने कहा कि उसने आर्टेमिस मिशन की समय सीमाओं में बदलाव किया है. अब आर्टेमिस 2 के लिए सितंबर 2025 को का लक्ष्य तय किया है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की कक्ष में चक्कर लगाएंगे. आर्टेमिस 3 के लिए सितंबर 2026 का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने की योजना है.
चंद्रमा पर गेटवे अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मिशन आर्टेमिस 4 के लिए 2028 के समय लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है. पहले आर्टेमिस 2 इस साल के अंत में होने वाला था. नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने एक बयान में कहा कि उन्होंने आर्टेमिस 1 के बाद से बहुत कुछ सीखा है और इन शुरुआती मिशनों की सफलता हमारे सौर मंडल में मानवता के स्थान के बारे में हमारी पहुंच और समझ को आगे बढ़ाने के लिए हमारी वाणिज्यिक और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी पर निर्भर करती है. अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि आर्टेमिस 2 के समय में बदलाव का कारण चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करना है.
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चांद पर कितनी बार लैंडिंग करा चुका अमेरिका?
सबसे खास बात तो ये है कि चांद पर इस बार सॉफ्ट लैंडिंग कराने में असफल रहने वाला अमेरिका चांद पर सबसे ज्यादा पहुंचने वाला देश है. 1969 से लेकर 1972 तक अमेरिका छह बार इंसानों को चांद पर उतार चुका है. लेकिन हर बार उसे लोहे के चने चबाने पड़े थे. उस दौरान मिशनों की कंप्यूटिंग तकनीक आज की तुलना में नाममात्र थी.
चांद पर उतरने में क्या होती है चुनौती?
चांद पर 1.4 लाख से ज्यादा गड्ढे (Crater) हैं, जिनकी चौड़ाई 8 किलोमीटर तक है. कुछ क्रेटर का आकार तो बहुत ज्यादा है. इसके अलावा चट्टानें भी हैं. नीदरलैंड के अंतरिक्ष वैज्ञानिक लीड मार्कस लैंडग्राफ ने बताया था कि चांद पर इंसानों का उतरना इसलिए सबसे ज्यादा मुश्किल हैं कि वहां के सही वातावरण के बारे में नहीं जानते. भले चांद ही हम लोगों को चांद पर क्रेटर के बारे में पता हो लेकिन उनका सही आंकलन नहीं पता. इसका पता तभी लगाना जाना चाहिए जब लैंडिंग का प्रयास किया जा रहा हो.
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रूस के बाद अब अमेरिका भी फेल, आखिर चांद पर उतरने में क्यों आती है मुश्किल?