डीएनए हिंदी: भारत स्वदेशी 5G सेवाएं (5G Services) शुरू करने वाला पहला देश बनने के लिए तैयार है. कोरोना के समय से ही 5G नेटवर्क की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं. विशेषज्ञों ने शुक्रवार को 5G तकनीक (5G Technology) को संभावित स्वास्थ्य खतरों से जोड़ने वाली चिंताओं पर बहस छेड़ दी है. कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि 5G नेटवर्क की रेडियो मैग्नेटिक तरंगें (Radio Magnetic Waves) शरीर के टिशूज को नुकसान पहुंचा सकती हैं. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों की राय इससे उलट है और उनका तर्क है कि अगर ऐसा कुछ होता तो जिन देशों में 5G नेटवर्क पहले से काम कर रहा है वहां इसका असर दिखाई दे रहा होता.
5G या पांचवीं पीढ़ी, नवीनतम वायरलेस मोबाइल फोन तकनीक है, जिसे पहली बार 2019 में व्यापक रूप से तैनात किया गया था. यह 4जी की क्षमताओं में सुधार करेगा. तेज कनेक्टिविटी वाली स्पीड के अलावा, यह अपने हाई बैंडविड्थ और कम लोड टाइम के कारण गेमिंग, मनोरंजन में नए उपयोग के रास्ते भी खोलेगा. यह ई-हेल्थ (टेलीमेडिसिन, रिमोट सर्विलांस, टेलीसर्जरी) को मजबूत करने सहित कई और क्षेत्रों में बेहतर सुधार कर सकेगा.
5G नेटवर्क से पैदा होता है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन
रिपोर्ट के मुताबिक, 5G नेटवर्क एक प्रकार की ऊर्जा पैदा करके काम करता है, जिसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन कहा जाता है. यह पिछले वायरलेस नेटवर्क की तुलना में ज्यादा फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है, जिससे इसकी तेज स्पीड ज्यादा होती है और इसकी क्षमता भी ज्यादा होती है. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ्ऱीक्वेंसी, जैसे कि 5G नेटवर्क से पैदा होने वाली एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड (ईएमएफ) नामक एक क्षेत्र बनाएगा, जो कुछ लोगों के अनुसार मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है.
यह भी पढ़ें- 5G: प्रीमियम 700 मेगाहर्ट्ज बैंड की वजह से कैसे सबसे आगे रहेगा रिलायंस जियो, समझिए पूरा प्लान
एक स्टडी के मुताबिक, पूरे स्पेक्ट्रम में विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों के स्वास्थ्य प्रभाव दिखाते हैं. हालांकि, परिणाम असंगत हैं. इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के इंटरनल मेडिसिन एंड पल्मोनोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. कर्नल विजय दत्ता ने बताया, 'हालांकि 4G-5G से जुड़े जोखिम का कोई दस्तावेज नहीं है, सैद्धांतिक रूप से रेडियो चुंबकीय तरंगों के संपर्क में आने से शरीर के विभिन्न हिस्सों में कैंसर की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है. लोग बात करते समय स्मार्टफोन को अपने दिमाग के करीब रखते हैं, इसलिए इसकी संभावना अधिक होती है.'
पेसमेकर वाले लोगों को हो सकती है दिक्कत
डॉ. विजय दत्ता आगे बताते हैं, 'रेडियो चुंबकीय तरंगें संभावित रूप से हृदय की लय को बिगाड़ सकती हैं और जो पेसमेकर पर हैं उन्हें अधिक जोखिम होता है. जो टावरों के जितना करीब रहता है, उसे जोखिम उतना ही अधिक होता है. यह तकनीक संचार के लिए वरदान है लेकिन मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.' हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 'आज तक और बहुत शोध के बाद, वायरलेस तकनीकों के संपर्क में स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव आकस्मिक रूप से नहीं जोड़ा गया है.'
यह भी पढ़ें- लॉन्च हुआ ISRO का रॉकेट SSLV, लेकिन टूट गया संपर्क, जानें पूरी डिटेल
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि टिशू, हीटिंग रेडियो फ्रीक्वेंसी क्षेत्रों और मानव शरीर के बीच बातचीत का मुख्य तंत्र है. वर्तमान प्रौद्योगिकियों से रेडियो फ्रीक्वेंसी एक्सपोजर स्तर के परिणामस्वरूप मानव शरीर में तापमान में वृद्धि होती है. वैश्विक स्वास्थ्य निकाय ने कहा, जैसे-जैसे आवृत्ति बढ़ती है, शरीर के टिशूज में कम प्रवेश होता है और ऊर्जा का अवशोषण शरीर की सतह (त्वचा और आंख) तक सीमित हो जाता है.
कई देशों में पहले से काम कर रहा है 5G
काउंटरपॉइंट रिसर्च के रिसर्च एनालिस्ट चारु पालीवाल ने बताया, 'भारत 5G लॉन्च करने वाला पहला देश नहीं है. लगभग 50 देशों ने हमारे सामने तकनीक को लॉन्च किया है. इसके अलावा, इनमें से अधिकांश देशों जैसे अमेरिका, कोरिया, जापान, यूके ने 5G सालभर पहले लॉन्च किया था. यदि लोगों के लिए कुछ चिंताएं या कुछ वास्तविक स्वास्थ्य खतरे होते हैं, तो हम उन मामलों को अब तक सामने आते देख चुके होते. मुझे नहीं लगता कि इस स्तर पर हमें किसी भी स्वास्थ्य खतरों के बारे में चिंतित होने की जरूरत है. ऐसा कोई अध्ययन भी नहीं है जो इन दावों को सत्यापित कर सके.'
यह भी पढ़ें- SSLV-D1 से भेजे गए सैटलाइट का क्या हुआ? इसरो ने बताया कहां हुई गड़बड़
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएअई) के अनुसार, भारत में डिजिटलीकरण की होड़ में, 5जी कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोबोट जैसे क्षेत्रों में विकास को गति देगा. उद्योग निकाय ने इस साल की शुरुआत में यह भी कहा था कि स्वास्थ्य पर 5G के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में कोई भी चिंता पूरी तरह से गलत है. उपलब्ध साक्ष्य इस बात का समर्थन करते हैं कि अगली पीढ़ी की तकनीक सुरक्षित है.
1 अगस्त को समाप्त हुई मेगा 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी के सात दिनों में 40 राउंड में 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रिकॉर्ड बोलियां मिलीं. मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली जियो भारत की 5G स्पेक्ट्रम नीलामी में शीर्ष बोलीदाता के रूप में उभरी, जिसने 88,078 करोड़ रुपये के 24,740 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का अधिग्रहण किया. जियो के बाद सुनील मित्तल की भारती एयरटेल है, जिसके पास 43,084 करोड़ रुपये के विभिन्न बैंड में 19,867 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम है. तीसरे स्थान पर वोडाफोन आइडिया को 18,784 करोड़ रुपये के 2,668 Mhz प्राप्त हुए, जबकि अदाणी समूह की एक इकाई ने 212 करोड़ रुपये के 26 Ghz बैंड में 400 Ghz स्पेक्ट्रम हासिल किया.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
5G Network: इंसानों की सेहत पर बुरा असर डालेगा 5जी नेटवर्क? जानिए क्या है सच्चाई