आखिरकार चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. इसके अलावा यूपी की 10 में से 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखों की भी घोषणा चुनाव आयोग द्वारा की गई है. चुनावी घोषणा की इन ख़बरों के बीच जिस खबर ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया, वो है बसपा सुप्रीमो मायावती का वो निर्णय, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के साथ ही यूपी उपचुनाव भी अकेले दम पर लड़ने की बात की है.
चुनाव आयोग द्वारा तारीखों की घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मायावती ने एक्स पर लिखा कि भारत निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों की आज घोषणा कर दी है, उसका स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव जितना कम समय में और जितना पाक-साफ अर्थात् धनबल व बाहुबल आदि के अभिशाप से मुक्त हो उतना ही बेहतर है. जिसका पूरा दारोमदार चुनाव आयोग पर ही निर्भर है.
X पर किये गए अपने ट्वीट में मायावती ने ये भी कहा कि बीएसपी इन दोनों राज्यों में अकेले ही चुनाव लड़ेगी और यह प्रयास करेगी कि उसके लोग इधर-उधर न भटकें, बल्कि पूरी तरह बीएसपी से जुड़कर परमपूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के आत्म-सम्मान और स्वाभिमान कारवां के सारथी बनकर शासक वर्ग बनने का अपना मिशनरी प्रयास जारी रखें.
इसके अलावा मायावती ने यूपी उपचुनाव लड़ने का ऐलान भी किया है. मायावती ने कहा कि यूपी में 9 विधानसभा की सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी बीएसपी अपने उम्मीदवार उतारेगी और यह चुनाव भी अकेले ही अपने बलबूते पर पूरी तैयारी एवं दमदारी के साथ लड़ेगी.
बसपा सुप्रीमो द्वारा लिया गया ये निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में 'लोन वेरिएबल' की राह पर चलते हुए बीएसपी ने अपना सबकुछ खो दिया था. जैसे परिणाम आए 2024 में बीएसपी की हालत 2014 से भी ज्यादा खराब थी. पार्टी न सिर्फ जीरो सीटों पर सिमटी बल्कि उसका वोट शेयर भी 10 फीसदी से नीचे चला गया है.
ऐसे में अब जबकि मायावती ने महाराष्ट्र और झारखंड के अलावा यूपी के उप चुनाव में अकेले आने की बात की. उससे इतना साफ़ हो गया है कि मायावती एक बार फिर पार्टी संगठन को पुनर्गठित करने पर विचार कर रही हैं. सवाल ये है कि क्या मायावती के जरिये बसपा उत्तर प्रदेश में अपनी गिरती चुनावी किस्मत को पुनर्जीवित कर पाएगी?
ध्यान रहे तमाम राजनीतिक विश्लेषकों के लिए बीएसपी हमेशा से ही एक पहेली रही है. बसपा का शुमार देश की उन पार्टियों में है जिसके वजूद को लेकर तमाम मौकों पर भविष्यवाणियां हुईं. लेकिन बावजूद इसके जिस तरह पार्टी टिकी रही है और संकट के समय में और भी मजबूती से उभरी उसने बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों तक को हैरान किया.
मायावती ने जो फैसला आज लिया, निस्संदेह उनकी मंशा ऑल इंडिया लेवल पर आने की है लेकिन अभी तक या ये कहें कि पिछले लोकसभा चुनावों में जैसी उसकी परफॉरमेंस रही उससे इतना तो साफ़ है कि अखिल भारतीय पार्टी बनने की बीएसपी की महत्वाकांक्षा अभी इतनी जल्दी नहीं पूरी होने वाली. बसपा किंगमेकर की भूमिका में आए अभी इसकी संभावनाएं उज्ज्वल नहीं दिखती हैं.
गौरतलब है कि 1980 के दशक में अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत करने वाली बीएसपी ने 1993 तक अपनी नीतियों के चलते कमाल किया. ये वो वक़्त था जब दलितों ने मायावती को अपना रहनुमा मान लिया फिर जैसे जैसे समय आगे बढ़ा बसपा और उसके कोर वोटर्स के बीच की खाई बढ़ती गयी और 2024 का चुनाव आते आते दलितों को इस बात का एहसास हो गया कि बसपा भी देश की अन्य पार्टियों जैसी है.
इन तमाम बातों का नतीजा क्या हुआ वो हमने 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों और 2017 और 2022 के उत्तर प्रदेष विधानसभा चुनावों में देखा. कह सकते हैं कि आज मायावती और बसपा जहां हैं, वो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में महाराष्ट्र और झारखंड / उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में अकेले चुनाव लड़ने का उसका फैसला स्वतः इस बात की पुष्टि कर देता है कि भविष्य की बड़ी लड़ाई के लिए मायावती ने अपने को तैयार कर लिया है.
बताते चलें कि महाराष्ट्र में सभी 288 विधानसभा सीट के लिए एक चरण में 20 नवंबर को मतदान होगा और मतगणना 23 नवंबर को होगी. झारखंड में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे. जिसके तहत 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा और 23 नवंबर को मतों की गड़ना की जाएगी. यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर उप चुनाव पर बात करते हुए चुनाव आयोग ने बताया कि यहां 13 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को मतगणना होगी.
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Maharashtra - Jharkhand विधानसभा के साथ यूपी उपचुनाव अकेले लड़ने वाली Mayawati ने सही समय पर सही फैसला लिया है!