बीते दिनों लेबनान की राजधानी बेरूत पर हुए इज़रायली हमलों में हसन नसरल्लाह की मौत ने पूरे मध्य पूर्व में तनाव को गहरा कर दिया है. नसरल्लाह का शुमार शिया राजनीतिक और सैन्य गुट हिजबुल्लाह के उन नेताओं में था जिन्होंने इस संगठन की नींव रखी. नसरल्लाह को लेबनान में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति इसलिए भी माना जाता रहा है क्योंकि इनके पास 100,000 से ज़्यादा लड़ाके तो थे ही. समूह से जुड़े कई लोग ऐसे भी हैं जो देश की संसद में राजनेता हैं.
पश्चिमी देशों में बुद्धिजीवियों, राजनेताओं के साथ साथ वहां की आम आवाम तक हिजबुल्लाह को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं. पूर्व में ऐसे तमाम मौके आ चुके हैं जब वेस्ट द्वारा हिजबुल्लाह और उसकी कार्यप्रणाली की व्यापक रूप से निंदा की गई है.
नसरल्लाह पर वेस्ट का क्या रुख रहा? इसका अंदाजा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के उस बयान से लगाया जा सकता है जो उन्होंने हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत के बाद दिया. बाइडेन ने कहा कि नसरल्लाह की हत्या 'न्याय' है.
नसरल्लाह का जन्म 1960 में बेरूत में हुआ था, जहां उन्हें इस्लाम के लिए समर्पित और प्रेरित छात्र के रूप में वर्णित किया गया था. बताया जाता है कि 1982 में नसरल्लाह, हिजबुल्लाह में शामिल हुआ. ध्यान रहे कि अस्सी का दशक ही वो समय था जब एक संगठन के रूप में हिजबुल्लाह का गठन हुआ.
64 वर्षीय नसरल्लाह ने इज़राइल के खिलाफ युद्ध में हिजबुल्लाह का नेतृत्व किया. इसके अलावा उसी समय नसरल्लाह ने पड़ोसी मुल्क सीरिया में चल रहे संघर्ष में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने अपना विस्तार किया और ये संगठन एक ऐसा संगठन बना, जो सिर्फ लड़ाकों या ये कहें कि सैन्य बल तक सीमित नहीं था. इसने लेबनान की राजनीति में भी अपनी पैठ जमाई. इसके तमाम कार्यकर्ता लेबनान की संसद में गए और धीरे धीरे ये संगठन एक प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी में परिवर्तित हुआ.
बात अगर नसरल्लाह की उपलब्धियों की हो तो उसने हिजबुल्लाह को इजरायल के कट्टर दुश्मन के रूप में स्थापित किया, ईरान में शिया धार्मिक नेताओं और हमास जैसे फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों के साथ गहरे गठबंधन की कोशिश की.
अपनी मृत्यु तक, उन्होंने सैय्यद की उपाधि धारण की, जो पैगंबर मुहम्मद से जुड़े शिया मौलवी के वंश को दर्शाने के लिए एक सम्मानजनक उपाधि थी. भले ही नसरल्लाह के अरब और इस्लामी दुनिया में अनगिनत अनुयायी हों , लेकिन पश्चिम के अधिकांश हिस्से आज भी नसरल्लाह को एक चरमपंथी के रूप में देखते हैं.
ज्ञात हो कि वर्तमान समय में, नसरल्लाह की प्रासंगिकता लेबनान तक ही सीमित नहीं थी. उसे ईरान के प्रतिरोध की धुरी के भीतर सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक माना गया था. माना जा रहा है कि नसरल्लाह की मौत सभी संबंधित समूहों के लिए एक बड़ा झटका है.
गौरतलब है कि 2006 में नसरल्लाह की हत्या के प्रयास किये गए. जिसके बाद, नसरल्लाह ने कई वर्षों तक छिपकर समय बिताया. बीते दिनों लेबनान पर हमलों के बीच, इज़राइल ने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों को निशाना बनाया, हमलों के पूर्व दावा किया गया था कि यहां हिजबुल्लाह के वरिष्ठ नेतृत्व की बैठक को अंजाम दिया जा रहा था.
इस घटना के बाद नसरल्लाह के 'सुरक्षित' होने के बारे में तेजी से बयान दिए जाने के बावजूद, इज़राइल ने दावा किया कि उन्होंने नसरल्लाह को सफलतापूर्वक मार दिया है. हमलों के बाद आईडीएफ ने एक बयान जारी किया और कहा कि, 'हसन नसरल्लाह द्वारा अब दुनिया को आतंकित नहीं किया जाएगा. '
इसके कुछ घंटों बाद हिजबुल्लाह ने खुद नसरल्लाह की मृत्यु की पुष्टि की, लेकिन जैसे स्वर हिजबुल्लाह के थे उससे इतना तो साफ़ है कि ये लड़ाई अभी इतनी जल्दी खत्म नहीं होगी.
हिजबुल्लाह की तरफ से कहा गया कि वह गाजा और फिलिस्तीन का समर्थन करने तथा लेबनान और उसके दृढ़ और सम्माननीय लोगों की रक्षा करने के लिए अपना जिहाद जारी रखेगा.
कैसे सत्ता में आया नसरल्लाह
बेरूत के शारशाबूक में एक गरीब शिया परिवार में जन्मे नसरल्लाह को बाद में दक्षिणी लेबनान में विस्थापित कर दिया गया. धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के बाद, वह अमल आंदोलन, जो एक राजनीतिक और अर्धसैनिक संगठन था,. उसमें शामिल हुआ और इसके बाद ही नसरल्लाह, हिजबुल्लाह से जुड़ा.
बताया जाता है कि हिजबुल्लाह का गठन ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के सदस्यों द्वारा किया गया था, जो 1982 में इजरायली सेना पर हमला करने के लिए लेबनान गए थे.
उन्होंने वर्षों बाद दक्षिणी लेबनान के कब्जे को समाप्त करने का अपना लक्ष्य प्राप्त किया, लेकिन अपनी लड़ाई जारी रखी और अभी भी इजरायल के विनाश की मांग कर रहे हैं. हिजबुल्लाह पहला समूह था जिसे ईरान ने समर्थन दिया और अपनी राजनीति के ब्रांड को निर्यात करने के लिए उन्होंने जिसका इस्तेमाल किया.
अपने तत्कालीन नेता, 39 वर्षीय अब्बास अल मुसावी के दक्षिण लेबनान में एक इजरायली हेलीकॉप्टर गनशिप हमले में मारे जाने के दो दिन बाद, हिजबुल्लाह ने फरवरी 1992 में नसरल्लाह को अपना महासचिव नियुक्त किया.
चाहे वो उत्तरी इज़राइल में रॉकेट हमलों का आदेश देना हो या फिर कार बॉम्ब अटैक या फिर अर्जेंटीना में इज़राइली दूतावास पर आत्मघाती बम हमला जिसमें 29 लोगों की मौत हुई, ये वो तमाम एक्शंस थे जो नसरल्लाह ने पावर में आने के बाद लिए और दुनिया को बताया कि वो इजरायल को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए तैयार है.
नसरल्लाह को उस युद्ध का नेतृत्व करने का श्रेय दिया जाता है जिसके कारण 2000 में दक्षिणी लेबनान से इज़राइली सैनिकों की वापसी हुई थी. इस जीत के बाद, नसरल्लाह का कद बढ़ा और 2006 में ये कद तब और मजबूत हुआ जब हिज़्बुल्लाह ने 34-दिवसीय युद्ध के दौरान इज़राइल के साथ गतिरोध की स्थिति पैदा कर दी.
2007 में, नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह को अमेरिका द्वारा एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था। ध्यान रहे कि इसके बाद ही अन्य देशों ने भी संगठन के सभी या कुछ हिस्सों पर प्रतिबंध लगा दिया है.
नसरल्लाह की लोकप्रियता तब कम हुई जब 2011 में सीरिया का गृहयुद्ध छिड़ा और हिजबुल्लाह के लड़ाके बशर अल असद की सेना के साथ आए. ये वो समय था जब अरब वर्ल्ड ने एक संगठन के रूप में हिजबुल्लाह के बहिष्कार की घोषणा की थी.
नसरल्लाह, इजरायल के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध था. उसने घोषणा की थी कि, 'अमेरिका दुश्मन बना रहेगा.' इजरायल के बारे में बाद करते हुए नसरल्लाह ने कहा था कि इजरायल एक कैंसर की तरह बढ़ता हुआ क्षेत्र है जिसे उखाड़ फेंकना चाहिए.
इजरायल-हमास युद्ध में भूमिका
7 अक्टूबर को इजरायल में हुए हमलों के एक दिन बाद, हिजबुल्लाह ने सीमा पर इजरायली सैन्य चौकियों पर हमला करना शुरू कर दिया और इसे गाजा के लिए "बैकअप फ्रंट" कहा. तब से लगभग हर दिन एक दूसरे पर हमला किया जा रहा है और जैसे-जैसे तनाव बढ़ता गया, नसरल्लाह ने विद्रोही स्वर अपनाया और इजरायल के सामने कई चुनौतियां पेश कीं.
बहरहाल अब जबकि इजरायल की तरफ से नसरल्लाह खात्मा कर दिया गया है देखना दिलचस्प रहेगा कि हिजबुल्लाह पर नकेल कसने के लिए इजरायल कौन से कड़े कदम उठाता है?
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