डीएनए हिंदी : भारत में बड़ी आबादी को कोविड वैक्सीन के दोनों डोज़ लग चुके हैं. पंद्रह से अठारह की उम्र के लगभग चालीस लाख बच्चों को भी वैक्सीन का पहला डोज़ लग चुका है. एक बड़ी ख़बर इन दिनों यह बनकर उभरी थी कि कहीं बच्चों को Covaxin की एक्सपायर्ड डोज़ तो नहीं लगी. इस वजह से स्वास्थ्य मंत्रालय को एक क्लैरिफिकेशन भी ज़ारी करना पड़ा.
मंत्रालय ने इन ख़बरों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि बच्चों को वे दवाइयां ही दी गयी हैं जो ठीक हालात में थीं. मंत्रालय ने यह भी कहा कि इन वैक्सीन की शेल्फ लाइफ नौ महीने से बारह महीने तक एक्सटेंड की गयी थी. अब यह किसी भी वैक्सीन की शेल्फ लाइफ क्या होती है? आइये जानते हैं...
WHO की परिभाषा और वैक्सीन (Vaccine) की शेल्फ लाइफ!
WHO के निर्देशों के अनुसार वैक्सीन की शेल्फ लाइफ का सीधा अर्थ वह समय-सीमा है जिसमें सही इस्तेमाल के बाद वैक्सीन अपना सबसे अच्छा असर छोड़े. शेल्फ लाइफ का सरल अर्थ वैक्सीन की एक्सपायरी डेट का कैलक्युलेशन करना भी है.
वैक्सीन के शेल्फ लाइफ (Shelf Life) के पीछे के कारक
ये वैक्सीन प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, लिपिड, सुप्त वायरस और अन्य कई तरह की चीज़ों को मिलाकर बनायी गयी हैं. ये सारे अवयव मानव शरीर का immune system यानि प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं. साथ ही ये वैक्सीन को क्लिनिकली प्रभावी बनाने में भी मदद करते हैं
बाक़ी दवाइयों और औषधियों की तरह वैक्सीन की भी एक एक्सपायरी डेट होती है. यहां शेल्फ लाइफ उत्पादक तय करते हैं और जुड़ी हुई संस्थाएँ इसका ख़याल रखती हैं. एक तय समय के बाद वैक्सीन में शामिल तत्व ख़राब हो सकते हैं और अपना प्रभाव खो सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक वैक्सीन (Vaccine) की स्टेबिलिटी इसके द्वारा इसकी अपनी केमिकल, फिजिकल, माइक्रोबायोलोजिकल गुणों को बचाये रखना है. यह जिस अवधि अपने सबसे अच्छे फॉर्म में होती है, वह वैक्सीन की शेल्फ़ लाइफ होती है.
समय का निर्धारण कैसे होता है
वैक्सीन की शेल्फ लाइफ (Shelf Life) क्या है इसे तय करने के लिए कई तरह के टेस्ट किये जाते हैं. इसमें पैकजिंग और स्टोरेज की भूमिका भी अहम् होती है. कोई भी वैक्सीन नियत शेल्फ लाइफ में भी तब ही ठीक रहती है जब उसे उचित पैकेजिंग और स्टोरेज उपलब्ध हो. हाँ, इस शेल्फ लाइफ के समय के निर्धारण में एक जरुरी रोल एंटीजेन का भी होता है.
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