अमेरिकी विदेश नीति के तहत डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी ने न केवल अमेरिका बल्कि, पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है. घरेलू मुद्दों पर कार्यकारी आदेशों की एक श्रृंखला के बाद, अब ट्रंप का पूरा फोकस मिडिल ईस्ट की तरफ चला गया है? ऐसा क्यों हुआ? इसकी एक बड़ी वजह ईरान के परमाणु कार्यक्रम को माना जा रहा है. जिसे अमेरिका बहुत ही बारीकी से देख रहा है. कहा यह भी जा रहा है कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल अमेरिका-ईरान संबंधों को फिर से परिभाषित करने का अवसर प्रदान करता है, खासकर जब ईरान की बढ़ती परमाणु क्षमताओं को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने किस हद तक चर्चाओं का बाजार गर्म कर तनाव को बढ़ाया? इसका अंदाजा ईरान के उस बयान से समझा जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि इजरायल और अमेरिका यदि उसके परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला करते हैं तो ये 'पागलपन" ही होगा. साथ ही ईरान ने यह भी साफ़ किया है कि यदि ऐसा होता है तो यह क्षेत्र के लिए 'बहुत बुरी आपदा' होगी.

यह चेतावनी ईरान के विदेश मंत्री द्वारा अपने कट्टर दुश्मन डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण के बाद दिए गए पहले साक्षात्कार में दी गई. ईरानी राजधानी में एक विदेशी मीडिया आउटलेरट को दिए गए इंटरव्यू में ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने गाजा से फिलिस्तीनियों को 'साफ करने' के प्रस्ताव के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति का मजाक भी उड़ाया है.

ईरान के शीर्ष राजनयिक ने सुझाव दिया कि इसके बजाय इजरायलियों को ग्रीनलैंड भेजा जाना चाहिए.  अपने इंटरव्यू में अराघची ने अमेरिका के समर्थन से ईरान के कथित परमाणु हथियार कार्यक्रम पर इजरायल द्वारा हमला करने की चर्चा पर खुलकर बात की.

उन्होंने कहा, 'हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारे परमाणु प्रतिष्ठानों पर किसी भी हमले का तत्काल और निर्णायक जवाब दिया जाएगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे ऐसा पागलपन करेंगे. यह वास्तव में पागलपन है. और इससे पूरा क्षेत्र एक बहुत बड़ी आपदा में बदल जाएगा.'

अपने पहले कार्यकाल में, ट्रंप ने ईरान के कथित परमाणु हथियार कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातचीत के लिए अमेरिका के समर्थन से इनकार कर दिया, जिसके तहत प्रतिबंधों को हटाने के बदले में यूरेनियम संवर्धन को सीमित किया गया था.

ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम नागरिक और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है. हालांकि, पश्चिमी सरकारों का कहना है कि जब से ट्रंप ने इस समझौते से पीछे हटना शुरू किया है, ईरान यूरेनियम को उस स्तर तक समृद्ध करने में लग गया, जिसका परमाणु हथियार बनाने के अलावा कोई उद्देश्य नहीं है.

ट्रंप ने संकेत दिया है कि वह कूटनीतिक समाधान पसंद करेंगे, उन्होंने कहा कि ईरान के साथ एक नया समझौता 'अच्छा' होगा. अराघची ने कहा कि हालांकि वह राष्ट्रपति ट्रंप की बात सुनने के लिए तैयार हैं, लेकिन ईरान को यह समझाने के लिए इससे कहीं अधिक की आवश्यकता होगी कि उसे पहले समझौते के साथ जो हुआ उसे देखते हुए अमेरिका के साथ दूसरे समझौते के लिए बातचीत शुरू करनी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'स्थिति अलग है और पिछली बार की तुलना में बहुत अधिक कठिन है.' 'हमारा विश्वास जीतने के लिए दूसरे पक्ष को बहुत कुछ करना चाहिए... हमने 'अच्छा' शब्द के अलावा कुछ नहीं सुना है, और यह स्पष्ट रूप से पर्याप्त नहीं है.'

विदेश मंत्री ने मध्य पूर्व के बारे में ट्रंप की नवीनतम टिप्पणियों को भी खारिज कर दिया. फिर से निर्वाचित राष्ट्रपति के प्रस्ताव कि गाजा को फिलिस्तीनियों से मुक्त कर दिया जाए, ने पूरे क्षेत्र में आक्रोश पैदा कर दिया है.

अराघची ने ट्रंप का मजाक उड़ाते हुए कहा कि, 'मेरा सुझाव कुछ और है. फ़िलिस्तीनियों के बजाय, इज़रायलियों को बाहर निकालने की कोशिश करें, उन्हें ग्रीनलैंड ले जाएं ताकि इससे उन्हें दोहरा फायदा मिल सके. 

'खुद का पुनर्निर्माण कर रहे हैं' ईरान के सहयोगी

ध्यान रहे कि अपने कार्यकाल के दौरान, अराघची ने सहयोगियों और मित्रों की हत्या और सत्ता से बेदखल होते देखा है.

उन्होंने स्वीकार किया कि ईरान के सहयोगी कमज़ोर हो गए हैं, उन्होंने कहान कि,'हमास और हिज़्बुल्लाह को नुकसान पहुंचा है. लेकिन साथ ही, वे खुद का पुनर्निर्माण कर रहे हैं, क्योंकि जैसा कि मैंने कहा, यह एक विचारधारा है, यह एक विचार है, यह एक उद्देश्य है, यह एक आदर्श है जो हमेशा रहेगा.'

ईरानियों को उम्मीद है कि पश्चिम के साथ समझौता हो सकता है

तेहरान की सड़कों पर आम ईरानियों द्वारा इस बात पर बल दिया जा रहा है कि अगर इससे प्रतिबंधों को हटाया जा सके और ईरान की खराब आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके तो उन्हें उम्मीद है कि पश्चिम के साथ समझौता हो सकता है. 

गौरतलब है कि पूर्व में कई ऐसे अनुमान लग चुके हैं जिसके अनुसार ईरान में मुद्रास्फीति 50% है, जबकि युवा बेरोज़गारी 20% के करीब है और मुद्रा अब तक के सबसे निचले स्तर पर है. यहां हमें इस बात को भी समझना होगा कि ईरान और अमेरिका के बीच विश्वास भी बहुत निचले स्तर पर है. ऐसे में किसी भी समझौते की दिशा में प्रगति करना और प्रतिबंधों को हटाना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा.

बहरहाल चाहे वो अमेरिका की बातें और इजरायल की जिद हो.  जैसा ईरान का रवैया है, उसे देखकर इतना तो साफ़ हो गया है कि पश्चिम और मिडिल ईस्ट उसमें भी अमेरिका और ईरान के बीच जारी गतिरोध इतनी जल्दी ख़त्म होने वाला नहीं है.  और दिलचस्प ये कि ये गतिरोध तब और बढ़ा है जब ट्रंप ने अपना दूसरा कार्यकाल अभी बस संभाला ही है.

मिडिल ईस्ट और वहां की राजनीति को समझने वाले तमाम जानकार ऐसे हैं जो  इस बात पर एकमत हैं कि चाहे वो ईरानी नेताओं की हत्याएं हों, लेबनान से हिजबुल्लाह का सफाया हो या फिर हमास के बड़े नेताओं को मौत के घाट उतारा जाना हो. कई मुद्दों को लेकर ईरान पश्चिम से आहत हैं और उसके ज़ख्म भरें मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में ये थोड़ा मुश्किल है.

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US and Israel planning to attack Iran nuclear facilities tehran foreign minister give a blunt reply
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परमाणु प्रतिष्ठानों को मुद्दा बनाकर ईरान ने अमेरिका-इजरायल के नहले पर जड़ा दहला!
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पूरी दुनिया में चर्चा तेज है कि क्या ट्रंप के आने के बाद ईरान-अमेरिका गतिरोध खत्म होगा?
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कैसे परमाणु प्रतिष्ठानों को मुद्दा बनाकर ईरान ने अमेरिका-इजरायल के नहले पर जड़ा दहला?

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