उत्तर प्रदेश के बलिया में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता और रसड़ा चीनी मिल के चेयरमैन बब्बन सिंह रघुवंशी का जो अश्लील वीडियो वायरल हुआ उससे समाज की सच्चाई एक बार फिर बाहर आ गई है. हम कितना ही कहें कि महिलाओं के प्रति सम्मान बढ़ा है. वे देवी हैं, लेकिन महिलाओं का इस्तेमाल पुरुष अपने मनमुताबिक आज भी कर रहा है. स्त्री आज भी उपभोग की वस्तु समझी जा रही है.
बड़े-बड़े बुद्धिजीवी हों या परजीवी पर, बात जब हंसी मजाक या मीमबाजी की आती है तो महिलाओं के प्रति उनके सम्मान की कलई ऐसे खुलती है जैसे कपड़े से रंगाई (डाई). जब भी ऐसे वीडियो वायरल होते हैं तो पुरुषों के बीच स्त्रियों को लेकर 'रसिक टॉक्स' शुरु हो जाती हैं. उन्हें अपने पुराने दिन याद हैं. खासकर वे पुरुष जो आज बब्बन सिंह की उम्र में हैं. उन्हें याद आता है खेत में किसी महिला का हाथ पकड़ना, जबरन उसे चूमना या फिर विदेशी लड़कियों के हाथों शराब का प्याला सर्व करवाना. इसे वे आज भी 'प्राउड' या उपलब्धि की तरह देखते हैं. मतलब आज भी बात जब एंटरटेनमेंट, मन हल्का करने या चुलबुलेपन के विकल्प की आती है तब औरत की देह ही याद आती है. यह सोच दिखाती है कि पढ़ा-लिखा और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित तबका भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है.
सबसे खतरनाक स्थिति तब सामने आती है जब महिलाएं इस प्रकार की अश्लीलता या अपमानजनक व्यवहार का विरोध करती हैं. तब ये समाज उन्हें ही 'बेशर्म', 'संस्कारहीन' या 'चरित्रहीन' ठहरा देता है. इस पितृसत्तात्मक सोच में 'अच्छी औरत' वही है जो सब कुछ चुपचाप सह ले और 'खराब' या 'झंडाधारी औरत' वह है, गैर-बराबरी के खिलाफ आवाज उठाए. बराबरी की बात करने वाली महिलाओं को भी ये समाज अजीबो-गरीब नाम दे देता है. यही दोहरा मापदंड महिलाओं को मानसिक रूप से तोड़ता है, और सामाजिक बदलाव की हर कोशिश को कमजोर कर देता है.
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मीमबाजी और सोशल मीडिया पर व्यंग्य के नाम पर महिलाओं को नीचा दिखाने वाला कंटेंट तेजी से वायरल होता है. पढ़े-लिखे लोग भी जब इस मजाक का हिस्सा बनते हैं, तो यह साफ हो जाता है कि उन्होंने डिग्रियां तो लीं, लेकिन सोच को संवेदनशील नहीं बनाया. यह ट्रेंड केवल एक पीढ़ी तक सीमित नहीं है - यह हमारे सामूहिक चेतनाभ्रंश (यह भूल जाना कि क्या सही है और क्या गलत) की निशानी है. सोशल मीडिया पर तैरता महिला विरोधी कंटेंट इसकी सच्चाई बयां करता है.
समस्या यह भी है कि बब्बन सिंह को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. उसे उन्होंने राजनीतिक साजिश कहकर टाल दिया और वीडियो को फर्जी बता दिया, लेकिन बाद में यह भी कहते हैं कि वो लड़की मेरे पास खुद आई, मैंने उसे नहीं बुलाया. नेता जी को इतना तो समझना चाहिए कि उनकी उम्र 70 है. कम से कम अपनी उम्र का लिहाज तो कर लेते. ऐसे नेता अगर मंत्री पद के दावेदार हैं और समाज के मुखिया बनने को तैयार हैं तो आगे समाज का क्या हाल होगा, ये देश की जनता को सोचना होगा...
यह वायरल वीडियो कोई पहली घटना नहीं है, लेकिन यह हमें हर बार आईना जरूर दिखाता है. समाज को केवल डिग्रीधारी या रसूख वाले नेताओं की जरूरत नहीं बल्कि चेतनायुक्त समाज की जरूरत है. जहां स्त्री मध्यकालीन दासतां को न भोगे. उसके प्रति पुरुष के मन में गंदा मैल न हो. उसे उपभोग या मनोरंजन की वस्तु से ज्यादा एक इंसान माना जाए. ये सब तब संभव होगा जब समाज में एक संवेदनशील चेतना का विकास होगा और इसकी शुरुआत हमें अपने घर से आज ही करनी होगी.
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babban singh obscene viral video
देवी कहकर पूजते हैं, देह से खेलते हैं, समाज की दोहरी सोच का आईना है बलिया के बब्बन सिंह का वायरल वीडियो