Sharda Sinha Dies At 72 : शारदा सिन्हा नहीं रहीं ... इस खबर पर दो नजरिये हैं. पहला - जब ये 'न्यूज़' दिल्ली, गुरुग्राम, लखनऊ, बेंगलुरु, अहमदाबाद, चेन्नई, जयपुर जैसे शहरों में रहने वाले किसी आम शहरी ने अख़बार में पढ़ी. या फिर जब उन्होंने इसे टीवी पर सुना. तो शायद उन्हें इस खबर से कोई विशेष फर्क न पड़ा हो. वो अपने काम में बदस्तूर जुटे हों. मगर इसके ठीक उलट दूसरा नजरिया ये कहता है कि, जब ये खबर किसी बिहारी, झारखंडी या फिर पूर्वी उत्तर प्रदेश में वास करने वाले किसी व्यक्ति के पास गयी हो. तो वो कुछ पलों के लिए अवसाद में चला गया हो. कुछ देर खाना पीना छोड़ दिया हो. उसकी आंखों से आंसू बाह रहे हों और वो ये महसूस कर रहा हो कि घर से किसी बुजुर्ग का साया हमेशा-हमेशा के लिए उठ गया हो. 

सवाल होगा कि आखिर एक ही खबर पर दो नजरिये और इतना विरोधाभास क्यों? जवाब ये है कि जिस तरह किसी बिहारी, झारखंडी या फिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के वासी के लिए छठ का पर्व एक इमोशन है. ठीक उसी तर्ज पर शारदा सिन्हा वो तार हैं, जिन्होंने उसे इस इमोशन से जोड़ने का कार्य अपनी आवाज़ से किया है.  

यूं तो देश की एक बड़ी आबादी छठ जैसे पर्व से दूर है. लेकिन बावजूद इसके हमें ये भी याद रखना चाहिए कि दिवाली के बाद जब हमारे आस पास के किसी घर में छठ के गीत बजते हैं.  तो उसमें जो आवाज होती है, वो वही है, जो माइक से अपना रास्ता तय करते हुए, दिवंगत शारदा सिन्हा जी के कंठ से कभी निकली थी.  

शारदा सिन्हा कैसे छठ मनाने वालों को एक डोर से जोड़े हुए थीं? अगर सिर्फ इसी बात को समझना हो तो उनके उस गाने, जिसके बोल हैं 'पहिले पहल हम किन्ही छठी मैया बरत तोहार' सुन लीजिये.

इस गाने को चाहे आप एक बार सुनें या फिर रिपीट मोड में लगाकर कई बार.  जैसे जैसे आप इस गाने को सुनते जाएंगे वैसे वैसे आपकी आंखों से आंसू झड़ते जाएंगे. यही थी शारदा सिन्हा की खासियत, उनकी आवाज का जादू जो आपको ट्रांस में ले जाता है और बदले में आपकी आंखें नम कर देता है. 

वो तमाम लोग जो शारदा सिन्हा के फैन हैं. जो उनकी आवाज़ का लोहा मानते हैं. एक सुर में इस बात को कहते हैं कि शारदा सिन्हा का शुमार दुनिया के उन गिने चुने सिंगर्स में था जिनके कंठ में वास्तव में मां शारदा विराजमान थीं.

आज भले ही शारदा सिन्हा हमारे बीच न हों. लेकिन जैसी उनकी शख्सियत थी, जिस तरह का उनका संगीत था कह सकते हैं कि वो एक ऐसी कलाकार रहीं, जिसने भोजपुरी गीतों में प्रचलित फूहड़ता, भौंडेपन के बीच अपनी विशिष्ट आवाज़ और गीतों, से कीचड़ में कमल बन कर पूर्वांचल और बिहार की असल मधुर, मार्मिक और भावपूर्ण संस्कृति को विश्व पटल पर उकेरा.

कहा ये भी जा सकता है कि बिहार को शारदा सिन्हा ने अपनी आवाज़ से गर्व करने के कई कारण दिए हैं. उन्होंने बताया कि भोजपुरी संगीत सिर्फ अश्लीलता नहीं बल्कि कानों को बेहद प्रिय भी हो सकता है. 

जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं, देश की एक बड़ी आबादी छठ नहीं मनाती. मगर बावजूद इसके वो इस त्योहार से जुड़े भाव हृदय में महसूस करती है. क्यों ? किसलिए? क्यों कि चाहते हुए या न चाहते हुए हमने कई छठगीत सुने हैं. और मनमोहक यही है कि उन गीतों में ज्यादातर में आवाज़ शारदा सिन्हा की ही थी.  

आज भले ही शारदा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि छठ और शारदा सिन्हा एक दूसरे के पूरक थे. जिस तरह अपनी आवाज के दम पर छठ गीतों की परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम उन्होंने किया. सिद्ध हो जाता है कि शारदा संस्कृति की संरक्षक की भूमिका में थीं और उन्होंने अपने काम को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया.

बीते दिन यानी छठ के पहले और अहम 'नहाय खाय' के दिन जिस तरह छठी मैया ने अपनी 'धियवा'  को अपने पास बुलाया. वो स्वतः ही सिद्ध कर देता है कि क्या आज, क्या कल हर एक घर जो छठ मना रहा है, वहां शारदा सिन्हा, जी रही हैं. अपनी गीतों से. अपनी आवाज़ से.  और हां शायद इसी को अमर होना कहते हैं. 

आज भले ही शारदा सिन्हा हमारे बीच न हों. लेकिन इतना तो तय है कि जब जब छठ का जिक्र होगा, बिहार की कला और संस्कृति की बात होगी. कानों को मधुर लगने वाले भोजपुरी गीतों का जिक्र होगा. शारदा सिन्हा का हंसता मुस्कुराता चेहरा स्वतः ही हमारी आंखों के सामने आ जाएगा. शारदा सिन्हा की मौत ने वाक़ई स्तब्ध किया है.  कामना है छठी मैया, शारदा सिन्हा को स्वर्ग में स्थान दें. 

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Sharda Sinha soul of Chhath Begum Akhtar of Mithila dies at 72 reasons why she will always be remembered
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अलविदा Sharda Sinha! आप भले अब न हों, लेकिन छठ पूजा आपके बिना नहीं होगी ... 
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शारदा सिन्हा का जाना भोजपुरी संगीत जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है
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अलविदा Sharda Sinha! आप भले अब न हों, लेकिन छठ पूजा आपके बिना नहीं होगी ... 

 

 

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