Salman Rushdie Book Controversy: भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखन सलमान रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' करीब 36 साल बाद एक बार फिर विवाद में आ गई है. साल 1988 में बाजार में आते ही पूरी दुनिया में विवादित हो गई इस किताब को मुस्लिम ईशनिंदा मानते हैं. इसे लेकर सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला तक हो चुका है. भारत में भी इसकी बिक्री पर कथित तौर पर प्रतिबंध लगाया गया था. हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट में यह प्रतिबंध पिछले दिनों साबित नहीं हो सका है. अब इस किताब की बिक्री का दावा दिल्ली के एक बुकसेलर ने किया है, जिसके बाद मुस्लिम संगठन फिर भड़क गए हैं. मुस्लिम संगठनों ने सरकार से इस किताब पर लगा प्रतिबंध जारी रखने की मांग की है. साथ ही ऐसा नहीं होने पर मुस्लिमों के चुप नहीं बैठने की चेतावनी भी दी है. मुस्लिम धर्मगुरुओं ने यहां तक कह दिया है कि मुस्लिमों को अल्लाह जान से प्यारा है. ऐसे में वे सैटेनिक वर्सेज को बर्दाश्त नहीं करेंगे.
आखिर क्या है इस किताब को लेकर विवाद और अब क्यों फिर से हंगामा मच रहा है, जानिए 5 पॉइंट्स में पूरी बात-
1. पहले जान लीजिए क्या है इस किताब पर विवाद
'द सैटेनिक वर्सेज' किताब मुस्लिम धर्म को लेकर सलमान रुश्दी ने साल 1988 में लिखी थी. इसके पब्लिश होते ही मुस्लिमों में भारी रोष फैल गया था. पूरी दुनिया में मुस्लिमों ने इसे ईशनिंदा (अल्लाह के खिलाफ बोलना) माना था. इसे लेकर पूरी दुनिया में हिंसक प्रदर्शन हुए थे. इसके बाद इस पर बहुत सारी जगह प्रतिबंध भी लगा दिया गया था. दावा किया जाता है कि भारत में भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने इस किताब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था. विवादों से इस किताब को उल्टा बेहद चर्चा मिली थी. उसे 1988 का व्हाइटब्रेड अवॉर्ड दिया गया था और बुकर प्राइज के लिए नामित किया गया था.
2. रुश्दी के खिलाफ जारी हुआ था कत्ल का फतवा
मुस्लिम जगत में फैले विवाद के बीच ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता रुहोल्लाह खुमैनी ने रुश्दी और किताब के पब्लिशर्स के खिलाफ फतवा जारी कर दिया था. इस फतवे में इन सभी की हत्या करने को कहा गया था. जुलाई, 1991 में किताब के जापानी अनुवदक हितोशी इगाराशी की उनके ही ऑफिस में हत्या कर दी गई थी. इसके चलते रुश्दी खुद 10 साल तक ब्रिटेन-अमेरिका में छिपे रहे थे. रुश्दी के खिलाफ मुस्लिमों में कितना रोष है. इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि 12 अगस्त, 2022 को एक व्याख्यान के दौरान रुश्दी को भरे मंच पर लेबनानी मूल के अमेरिकी हादी मतर ने चाकू मार दिया था. इस हमले में रुश्दी की जान बच गई, लेकिन एक आंख की रोशनी चली गई है.
3. अब 36 साल बाद भारत में क्यों शुरू हुआ फिर से विवाद
दिल्ली के 'बाहरीसन्स बुकसेलर्स' ने पिछले दिनों एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट अपलोड की है, जिसके बाद इस पर फइर से विवाद छिड़ गया है. दरअसल बुकसेलर्स ने अपने स्टोर पर दिल्ली-एनसीआर में 'द सैटेनिक वर्सेज' का सीमित स्टॉक बिक्री के लिए उपलब्ध होने का दावा किया है. इसकी कीमत 1,999 रुपये बताई गई है. इसके बाद मुस्लिम संगठन फिर से नाराज हो गए हैं. उन्होंने इस किताब की बिक्री पर पाबंदी हटाए जाने का विरोध किया है.
4. क्या सच में खत्म हो गई है किताब की बिक्री पर पाबंदी?
भारत में यदि 1988 में इस किताब की बिक्री पर पाबंदी लगाई गई थी तो क्या अब इसे मोदी सरकार ने हटा दिया है? यदि आपको दिमाग में यह सवाल उठ रहा है तो चलिए इसे भी स्पष्ट कर देते हैं. मोदी सरकार ने इसकी बिक्री से जुड़ी कोई पाबंदी नहीं हटाई है. दरअसल इस किताब की बिक्री पर लगी पाबंदी के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में याचिका दाखिल की गई थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर सरकारी अधिकारियों से 5 अक्टूबर, 1988 की वह कथित अधिसूचना पेश करने को कहा था, जिसके जरिये यह प्रतिबंध लगाया गया था. सरकार की तरफ से यह अधिसूचना उपलब्ध नहीं होने की जानकारी कोर्ट को दी गई थी. इसके बाद हाई कोर्ट ने इस साल नवंबर में इस याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी थी. ऐसे में यह पाबंदी खुद ब खुद ही खत्म होने की बात कही गई है.
5. मुस्लिम उलमा बोले- फिर से पाबंदी लगाए सरकार, वर्ना बर्दाश्त नहीं करेंगे
द सैटेनिक वर्सेज की बिक्री फिर से शुरू होने पर मुस्लिम उलमा भड़क गए हैं. जमीयत उलमा-ए-हिंद की उत्तर प्रदेश इकाई के लीगल एडवाइजर काब रशीदी ने इसे ईश निंदा से भरी किताब बताया है. उन्होंने कहा,'किसी की भावना को ठेस पहुंचाना अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है. यह कानून अपराध है और संविधान की आत्मा के खिलाफ है. अल्लाह-रसूल मुस्लिमों को जान से ज्यादा प्यारे हैं. सैटेनिक वर्सेज को वे बर्दाश्त नहीं करेंगे. सरकार से अपील है कि वह इस पर फिर पाबंदी लगाए, क्योंकि संविधान की शपथ लेने के चलते यह उसका फर्ज है.' ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना याकूब अब्बास ने भी सरकार से इस किताब पर पाबंदी लगाए रखने की अपील की है. उन्होंने कहा,'किताब में मुहम्मद साहब और उनके सहयोगियों का अपमान किया गया है. यदि यह बाजार में आई तो मुल्क का माहौल खराब होगा.' ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने भी केंद्र सरकार से इस किताब पर दोबारा पाबंदी लगाने की मांग की. साथ ही चेतावनी दी कि किताब बाजार में आई तो मुस्लिम समाज बर्दाश्त नहीं करेगा.
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'द सैटेनिक वर्सेज' पर 36 साल बाद फिर विवाद, 5 पॉइंट्स में पढ़ें अब क्यों वार्निंग दे रहे हैं मुस्लिम