भारत जैसे देश में ऐसे कई लोग हैं, जिनके लिए उनकी गाड़ियां सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने का माध्यम या आजीविका का ज़रिया भर नहीं हैं. चूंकि आज भी किसी मिडिल क्लास के लिए गाड़ी खरीदना किसी सपने के सच होने जैसा है, इसलिए जैसे ही कोई शख्स शो रूम से गाड़ी निकलवाकर अपने घर लाता है, वो गाड़ी उसके परिवार का हिस्सा बन जाती है. वाहन से प्रेम का लेवल कुछ ऐसा होता है कि गाड़ी के पुराने होने के बावजूद, वो आने वाली पीढ़ियों को अपने इस प्रेम से रू-ब-रू कराता है और उन्हें दिखाने के उद्देश्य से गाड़ी को घर के गैरेज में रखता है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. दिल्ली में बिलकुल नहीं होगा.
अधिकारियों ने वायु प्रदूषण का हवाला देकर दिल्ली-एनसीआर में 15 साल पुराने वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया है. ज़ख्मों पर नमक छिड़कने के लिए, डीज़ल वाहनों की अधिकतम आयु सीमा 10 साल तय कर दी गई. सवाल ये है कि क्या ऐसा करना सही है? क्या कोई दूसरा रास्ता निकाला जा सकता है?
मुद्दा आगे बढ़े उससे पहले हमारे लिए भी बहुत जरूरी है कि हम कुछ ऐसे बिंदुओं पर बात करें जिन्हें किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 2021 की सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर और उसके आस पास धुंध की मोटी परत छाई रही.
इसके जवाब में, 29 दिसंबर, 2021 को दिल्ली सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें कहा गया कि 15 साल से ज़्यादा पुराने सभी वाहनों का तुरंत पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा, उन्हें ज़ब्त कर लिया जाएगा और कबाड़ में डाल दिया जाएगा.
कहा यह भी गया कि यही बात 10 साल पुराने सभी डीज़ल वाहनों पर भी लागू होगी. सिर्फ़ एक अपवाद दिया गया था कि, अगर इन वाहनों को पूरी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों में बदल दिया जाए तो कुछ 'बीच का रास्ता' निकाला जा सकता है. दिल्ली में हाल ही में चुनी गई भाजपा सरकार ने घोषणा की है कि 31 मार्च, 2025 से दिल्ली में स्थित ईंधन पंपों पर 15 साल पुराने वाहनों में ईंधन नहीं भरा जाएगा.
लेकिन, दिल्ली को हर साल क्यों नुकसान उठाना पड़ता है? रिपोर्ट बताती है कि इसके कई कारण हैं. चाहे वो दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना हो या फिर निर्माण कार्य, वाहनों से निकलने वाले धुंए को भी प्रदूषण का एक अहम कारण माना जा सकता है.
दिलचस्प बात यह है कि पुणे में IITM द्वारा 2024 में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, जो 32 से 44 प्रतिशत के बीच है, ऐसे स्रोतों से होता है, जिनका अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है. इसलिए, जब एक महत्वपूर्ण प्रतिशत का कहना है कि अधिकारियों ने अभी तक दिल्ली में प्रदूषण के स्रोत का पता नहीं लगाया है, तो वाहनों और उनके मालिकों को हर साल क्यों भुगतना पड़ता है? ये अपने में एक बड़ा सवाल है.
पहला मुद्दा यह है कि इस पूरी स्थिति में वाहनों और उनके मालिकों को बलि का बकरा बनाया गया है. सरकार निजी वाहनों के संचालन पर प्रतिबंध कैसे लगा सकती है, जो अनिवार्य रूप से नागरिकों की निजी संपत्ति हैं? मालिक की अनुमति या उचित मुआवजे के बिना किसी वाहन को कैसे जब्त और कबाड़ किया जा सकता है?
मुआवजे के बारे में भूल जाइए - सरकार ने पहले ही 15 साल का रोड टैक्स वसूला है, जिसे मालिक ने खरीद के समय चुकाया था. तो फिर सरकार को पंजीकृत मालिक को ब्याज सहित शेष राशि क्यों नहीं लौटानी चाहिए? आज वे हमारे वाहन ले जा रहे हैं, कल वे अन्य निजी संपत्ति के साथ भी ऐसा ही कर सकते हैं.
भले ही दिल्ली में 14 प्रतिशत प्रदूषण का कारण वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन हो लेकिन स्क्रैपेज नीति का विरोध इसलिए भी किया जाना चाहिए क्यों कि योजना अभी भी अस्पष्ट है. हमें इसे भी समझना होगा कि किसी भी सरकारी निकाय ने कोई निश्चित स्क्रैपेज नीति जारी नहीं की है.
बाकी नीति को बाध्यता न बनाते हुए उसे एक विकल्प बनाना चाहिए और वो व्यक्ति जो अपनी गाड़ी भविष्य के लिए सहेज के रखना चाह रहा हो उसे ऐसा करने के लिए अनुमति देनी चाहिए. खैर, जैसा कि दूसरे देशों में देखा गया है, वाहनों की समय-समय पर कड़ी जांच होनी चाहिए.
सख्त दिशा-निर्देश स्थापित किए जाने चाहिए, और RTO (क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) को उनका अनुपालन करना चाहिए. इसके अतिरिक्त, RTO को आज देश भर में पाए जाने वाले PUC (प्रदूषण नियंत्रण) मशीनों जैसे पुराने उपकरणों पर निर्भर रहने के बजाय नवीनतम परीक्षण तकनीक से लैस होना चाहिए.
हम फिर इस बात को दोहरा रहे हैं कि RTO का भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है इसलिए वाहन निरीक्षण की वीडियो रिकॉर्डिंग की जानी चाहिए. दूसरा विकल्प पुराने वाहनों के लिए अतिरिक्त कर लगाना है, जो मालिकों के लिए एक निवारक के रूप में काम करेगा.
इसके अलावा, यह योजना स्वैच्छिक होनी चाहिए, और यदि कोई मालिक अपने पुराने वाहन को नए वाहन के लिए कबाड़ में डालता है, तो उसे एक अच्छा मुआवज़ा दिया जाना चाहिए, जो एक लालच के रूप में काम करेगा.
ध्यान रहे कि अधिकांश कार मालिक 13 या 14 साल की उम्र पार करने के बाद वाहनों के रखरखाव की उपेक्षा करना शुरू कर देते हैं. यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि रखरखाव की लागत बिक्री की लागत से अधिक है.
बहरहाल विषय 15 साल गुजार चुके वाहनों को कबाड़ घोषित करना है. तो हम फिर इसी बात को दोहराएंगे कि ये कोई विकल्प नहीं है. सरकार को कुछ 'बीच' का रास्ता निकाल कर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
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क्या 15 साल पुराने वाहनों को बैन कर खत्म हो जाएगा प्रदूषण? क्यों समझ से परे है ये बेबुनियाद फैसला?