Rana Sanga Row: उत्तर प्रदेश समेत समूचे उत्तर-पश्चिम भारत की सियासत एक बयान से ऐसी गर्मा गई है कि इसकी तपिश हर तरफ दिख रही है. सपा सांसद रामजी लाल सुमन Ramji Lal Suman) ने राणा सांगा को गद्दार बताया, जिससे राजपूत और ठाकुर समुदाय भड़क गया है. करणी सेना ने इसके बाद रामजी लाल सुमन के घर पर बुलडोजर लेकर चढ़ाई कर दी और तोड़फोड़ की, जिसके बाद समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) अपने सांसद के पक्ष में खड़ी हो गई है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इसे लेकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है, लेकिन इसके उलट अखिलेश के ताऊ रामगोपाल यादव (Ramgopal Yadav) ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि यदि सुमन के घर पर तोड़फोड़ करने वाले गिरफ्तार नहीं हुए तो ईद (EID) के बाद सपा पूरे प्रदेश में आंदोलन छेड़ेगी. सपा के इस रुख को बेहद अहम माना जा रहा है और इसे अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) वोट फॉर्मूले से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसके लिए माना जा रहा है कि सपा राजपूत ठाकुर वोट बैंक की बलि चढ़ाने को भी तैयार है. उधर, भाजपा इस विवाद के बहाने सपा को हिंदू विरोधी साबित करने में कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं. आइए समझते हैं यूपी की सियासत में क्या हैं इस पूरे विवाद के मायने.
पहले जान लेते हैं क्या था रामजीलाल सुमन का बयान
सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में औरंगजेब विवाद (Aurangzeb Row) पर बयान दिया था. समुन ने कहा था कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को राणा सांगा ने बुलाया था. ठीक है सारे मुस्लिम बाबर की औलाद हैं तो फिर सारे हिंदुओं को गद्दार कहा जाना चाहिए, जो गद्दार राणा सांगा की औलाद है. रामजीलाल सुमन के इसी बयान पर हंगामा मचा हुआ है. राजपूत संगठन उनसे नाराज हो गए हैं.
मुलायम सिंह के 'खास' थे राजपूत, फिर अब क्यों अनदेखी कर रहे अखिलेश
यूपी में कुल वोटर्स में 17 से 19% सवर्ण वोटर हैं, जिनमें राजपूतों (ठाकुरों) की 6-7 फीसदी हिस्सेदारी है. कम वोट के बावजूद उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजपूत (ठाकुर) वोटर बेहद अहम रहे हैं. इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि अब तक यूपी से देश के दो प्रधानमंत्री वीपी सिंह और चंद्रशेखर तो मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कुल 5 सीएम राजपूत बिरादरी के रहे हैं.
अखिलेश के पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के दौर में राजपूतों को सपा का खास वोटबैंक माना जाता था. कांग्रेस से छिटके राजपूत वोटर्स को मुलायम सिंह ने अमर सिंह, रेवती रमण सिंह और मोहन सिंह जैसे अपने 'राइट हैंड' नेताओं की बदौलत अपने सियासी एजेंडे में खास जगह दे रखी थी, जो यादव और मुस्लिम वोटबैंक के साथ मिलकर मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुंचाते थे. अब अखिलेश यादव इस वोटबैंक को यदि उतनी तवज्जो नहीं दे रहे हैं तो इसका भी एक खास कारण है. दरअसल पिछले कुछ चुनाव में सपा को राजपूत बिरादी के महज 8 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि 77 फीसदी राजपूत वोटर भाजपा के साथ दिखे हैं. साफ है कि राजपूत अब भाजपा के कोर वोटर हैं.
सपा के लिए मुस्लिम वोटर हैं खास
यूपी में सपा के लिए मुस्लिम वोटर्स की अहमियत ज्यादा है, जिनकी यूपी की आबादी में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है. यूपी में पहले मुस्लिम वोट सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच बंटते थे, लेकिन साल 2022 के विधानसभा चुनाव और साल 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों ने बसपा से खासी दूरी बनाई है, जिसके चलते वे पूरी तरह अखिलेश यादव की पार्टी के साथ दिखे हैं. इसका नतीजा विधानसभा चुनाव में सपा की सीटें साल 2019 की 47 से बढ़कर साल 2022 में 111 तक पहुंचने और लोकसभा चुनाव में 37 सीटें सपा के खाते में आने में दिखा है. CSDS की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 के चुनाव में करीब 83 फीसदी मुस्लिम आबादी ने सपा को वोट दिया था, जो साल 1984 के बाद इस समुदाय का किसी एक पार्टी के प्रति सबसे बड़ा समर्थन रहा है. इसके चलते अखिलेश किसी भी नजरिये से मुस्लिम समाज को नाराज नहीं करना चाहते हैं. इसकी झलक उनके बयानों में लगातार मुस्लिमों के प्रति समर्थन वाले रुख में भी दिखाई दी है.
यूपी में मुस्लिम वोट की ताकत ऐसे भी समझिए
- 143 विधानसभा सीट पर 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं.
- 30 विधानसभा सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं.
- 43 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर 30 से 40 फीसदी के बीच हैं.
- 70 विधानसभा सीट पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम वोट हैं.
रामजीलाल सुमन के विवाद में भी PDA देख रहे अखिलेश
अखिलेश यादव ने रामजीलाल सुमन के विवाद में पहले डैमेज कंट्रोल की कोशिश की थी. इसके लिए अखिलेश ने ट्वीट करके कहा था कि सपा समतामूलक समाज में यकीन करती है. हमारा उद्देश्य किसी इतिहास पुरुष का अपमान नहीं और ना ही हम मेवाड़ के राजा राणा सांगा की देशभक्ति व वीरता पर सवाल उठा रहे हैं. हमारा कोई भी प्रयास राजपूत या किसी अन्य समाज का अपमान करना नहीं है. अखिलेश का यह रुख अचानक रामजीलाल सुमन के घर पर करणी सेना के हमले के बाद बदल गया है. उन्होंने इसे दलित बनाम ठाकुर का मुद्दा बनाने की कोशिश शुरू कर दी है, जो उनके PDA फॉर्मूले को सूट करता है. उन्होंने कहा कि रामजीलाल सुमन के घर पर दलित होने के कारण हमला हुआ है. अन्य सपा नेताओं ने भी इसी सुर में बयान दिए हैं. इसे बेहद खास सियासी दांव माना जा रहा है. दरअसल इस घटना के जरिये अखिलेश की नजर उस दलित वोट बैंक पर है, जो मायावती (Mayawati) की बसपा (BSP) से मोहभंग होने के बाद बिखरा हुआ है. अखिलेश इस दलित वोट को अपने साथ जोड़कर PDA (पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक) वोट फॉर्मूले को पूरी तरह मजबूत कर लेना चाहते हैं. इसे निम्न आंकड़ों से भी समझा जा सकता है-
- उत्तर प्रदेश की आबादी में दलितों की संख्या 21 फीसदी है.
- सपा सांसद रामजीलाल सुमन जाटव समुदाय से आते हैं
- जाटव समुदाय की हिस्सेदारी दलित वोटों में करीब 11 फीसदी है.
- जाटव समुदाय अब तक बसपा का कोर वोटर माना जाता था.
- पिछले कुछ चुनाव में जाटव समुदाय बसपा से छिटका है.
- 11 फीसदी जाटवों के रुख पर ही बाकी 10 फीसदी दलित जातियां भी वोट डालती हैं.
- सपा की निगाह 7 फीसदी राजपूतों को नाराज करके 21 फीसदी दलित वोटबैंक में ज्यादा सेंध लगाने पर है.
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