अभी बीते दिन ही मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस कर दिल्ली विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान किया था. उन्होंने बताया था कि जिस दिन दिल्ली की जनता वोट डालेगी. ठीक उसी दिन, मिल्कीपुर की आवाम भी इस बात का फैसला करेगी कि क्षेत्र का अगला विधायक कौन होगा?
राजीव कुमार का तारीखों की घोषणा करना भर था. पूरे देश की निगाहें दिल्ली से हटकर मिल्कीपुर में गड़ गयी हैं. चाहे वो समाजवादी पार्टी हो या फिर भाजपा. जिस तरह इन दोनों ही प्रमुख दलों द्वारा मिल्कीपुर की बाजी जीतने के लिए गोटियां बिछाई जा रही हैं, कहना गलत नहीं है कि अभी हाल ही में यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव एक तरफ और मिल्कीपुर का उपचुनाव दूसरी तरफ.
क्योंकि मिल्कीपुर का सीधा संबंध अयोध्या से है. जहां फैजाबाद लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को हरा दिया था. माना यही जा रहा है कि मिल्कीपुर का उपचुनाव आने वाले वक़्त में (2027 के यूपी चुनावों में )भाजपा और सपा दोनों की दिशा और दशा का निर्धारण करेगा.
जिक्र मिल्कीपुर का हुआ है. तो ये बता देना भी बहुत जरूरी हो जाता है कि, इस सीट पर 5 फरवरी को वोटिंग और 8 फरवरी को नतीजा आएगा. यूं होने को तो मिल्कीपुर उत्तर प्रदेश की एक बेहद साधारण सी सीट है. ऐसे में सवाल ये हो सकता है कि क्यों इसके प्रति समाजवादी पार्टी और भाजपा गंभीर हैं?
जैसा कि हम शुरुआत में ही जिक्र कर चुके हैं, इसकी एक अहम वजह वो हार है, जिसका सामना भाजपा ने आम चुनावों में फ़ैजाबाद लोक सभा सीट के रूप में किया.
ध्यान रहे चुनावों से पहले अपने ड्रीम प्रोजेक्ट राम मंदिर के मद्देनजर भाजपा इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि, हर हाल में वो इस सीट को अपने नाम कर लेगी. मगर जब चुनाव के नतीजे आए तो न केवल अयोध्या की जनता और भाजपा बल्कि पूरा देश हैरत में आ गया.
वो अयोध्या जिसे लेकर दावा किया जा रहा था कि भाजपा यहां से आसान जीत दर्ज कर इतिहास रचेगी. महज कोरी लफ्फाजी निकला. फ़ैजाबाद लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद संसद गए.
उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले तमाम राजनीतिक पंडित ऐसे हैं, जो ये मानते हैं कि राम मंदिर निर्माण के बावजूद जिस तरह का सुलूक अयोध्या की जनता ने भाजपा का किया। उससे न सिर्फ पार्टी बल्कि पीएम मोदी और सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ की भी खूब जमकर किरकिरी हुई.
और अब जबकि मिल्कीपुर उपचुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है. माना जा रहा है कि भाजपा इस सीट को जीतकर उन तमाम दागों को धुलने का काम करेगी जो लोकसभा चुनावों के दौरान उसके दामन पर लग चुके थे.
ध्यान रहे भाजपा यदि फ़ैजाबाद जैसी बेहद जरूरी सीट हारी, तो इसकी एक बड़ी वजह वो बुलडोजर एक्शन रहा. जो सरकारी आदेश के बाद हुआ, बता दें कि भाजपा को सीएम योगी का ये फैसला फ़ैजाबाद में बैकफुट पर ले आया जिसका परिणाम हमें चुनावों में दिखा और समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद यहां भारी मतों से विजय हुए.
बहरहाल भले ही भाजपा पूर्व में हुए उपचुनावों में 7 सीटें जीत चुकी है. लेकिन अंदरखाने चर्चा इस बात को लेकर है कि जब तक योगी मिल्कीपुर में जीत का ध्वज नही फहराते विजय 'संपूर्ण' नहीं मानी जाएगी.
बात मिल्कीपुर की चली है तो हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि चाहे वो अखिलेश हों या फिर योगी आदित्यनाथ दोनों ने बहुत पहले से ही इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद एक करने की शुरुआत कर दी थी.
समाजवादी पार्टी या फिर भाजपा, मिल्कीपुर की जनता उपचुनावों में किसका साथ देती है? इसका फैसला तो वक़्त करेगा. लेकिन जो वर्तमान है और जैसा माहौल है.
इस उप चुनाव पर न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश की जनता की नजर इसलिए भी है क्योंकि 22 जनवरी 2025 वो तारीख है, जब एक बार फिर अयोध्या न केवल एक बहुत बड़े जश्न का साक्षी बनेगा. बल्कि पूरी दुनिया की नजर इसपर रहने वाली है.
कुल मिलाकर ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि मिल्कीपुर का ये उपचुनाव जहां एक तरफ सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के सम्मान का चुनाव है. तो वहीं दूसरी तरफ अखिलेश के लिए ये चुनाव इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी के बाद ही ये तय होगा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का क्या भविष्य है.
खबर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.
- Log in to post comments
क्यों अखिलेश-योगी के लिए आन, बान, शान का मुद्दा है मिल्कीपुर का उपचुनाव?