डीएनए हिंदी: जन्म लेते ही परीक्षा शुरू और अगले 12 साल तक हर पल, हर कदम पर इम्तहान. ये कहानी किसी इंसान की नहीं बल्कि उन खोजी कुत्तों की है, जो सेना से लेकर पुलिस तक, सुरक्षा बलों के कदम-कदम के साथी होते हैं. दरअसल ये खोजी कुत्ते कोई आम गली में घूमने वाला जानवर नहीं, बल्कि फौज की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरकर तैयार होने वाले 'कमांडो' होते हैं, जिन्हें हर परिस्थिति में बस जीतने के तैयार किया जाता है.
इसका उदाहरण बारामुला एनकाउंटर (Baramulla Encounter) में शहीद हुआ सेना का खोजी कुत्ता एक्सेल (Axel) भी था, जिसे रविवार को सैन्य सम्मान के साथ किसी शहीद जवान की तरह ही विदा किया गया. एलेक्स को आतंकियों ने तीन गोलियां मारी थीं, फिर भी एनकाउंटर खत्म होने तक वह मोर्चे पर किसी फौजी की तरह ही अंतिम सांस तक डटा रहा. आइए जानते हैं कि कितना कठिन है इस तरह के कुत्ते तैयार करना.
जन्म के समय ही हो जाती है पहली परीक्षा
खोजी कुत्ते की पहली परीक्षा उनके जन्म के समय ही हो जाती है. खास नस्ल के कुत्तों के करीब 100 पिल्लों में से चुनिंदा को ट्रेनिंग के लिए छांटा जाता है. इन छांटे गए कुत्तों को उसी समय एक नाम दिया जाता है. इसके बाद ताउम्र वे सिर्फ उसी नाम पर रिस्पॉन्ड करते हैं.
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ट्रेनिंग से भी ज्यादा खास है हैंडलर से जज्बाती रिश्ते की कहानी
किसी भी खोजी कुत्ते की शुरुआत इशारा समझने की ट्रेनिंग से होती है, लेकिन इस ट्रेनिंग से भी ज्यादा अहम होती है, उस कुत्ते का अपने हैंडलर के साथ जज्बाती रिश्ता जुड़ने की कहानी. हर कुत्ते का हैंडलर जन्म के बाद ही तय हो जाता है. हैंडलर को अपने कुत्ते के साथ 3 से 4 महीने तक रोजाना कई किलोमीटर की दौड़ और कम से कम 5 से 6 घंटे तक खेलना, कूदना और उसे गोद में लेकर दुलारना होता है ताकि कुत्ता उसके पसीने की गंध से अच्छी तरह वाकिफ हो जाए और दोनों के बीच एक 'भरोसा' कायम हो जाए.
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दो तरह के होते हैं फौजी कुत्ते, गुण पहचानकर होता है वर्गीकरण
फौज हो या पुलिस, दोनों के पास डॉग स्क्वॉयड होते हैं. इनमें से कुछ का इस्तेमाल किसी को तलाश करने के लिए होता है, जबकि कुछ का इस्तेमाल हथियार और बम वगैरह की तलाश के लिए किया जाता है. इस जरूरत के आधार पर दो तरह के कुत्ते तैयार किए जाते हैं.
- स्निफर डॉग (Sniffer Dog)- इसकी सूंघने की पॉवर बेहद जबरदस्त होती है. इस कुत्ते को खासतौर पर बारूदी सुरंगों, केमिकल बमों और हथियारों को पहचानने के लिए तैयार किया जाता है. बता दें कि किसी भी खोजी कुत्ते की सूंघने की क्षमता आम आदमी से 42 गुना ज्यादा होती है.
- ट्रैकर डॉग (Tracker Dog)- ये वे कुत्ते होते हैं, जो किसी चीज को खोजकर निकालने या किसी का पीछा करने में माहिर होते हैं. इनका इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस करती है.
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फिर शुरू होती है ट्रेनिंग
- पहले 3 से 4 महीने तक आज्ञा मानने और इशारा समझने की ट्रेनिंग दी जाती है.
- यह ट्रेनिंग स्निफर और ट्रैकर, सभी तरह के खोजी कुत्तों को दी जाती है.
- दो महीने तक स्निफर डॉग को गोश्त की गंध के सहारे खुशबू का पीछा करना सिखाते हैं.
- इस ट्रेनिंग के बाद शुरू होती है रसायनों को सूंघने की प्रैक्टिस.
- गन पाउडर जलाकर उससे हथियारों को सूंघना सिखाया जाता है.
- हर कुत्ते की ट्रेनिंग 6 महीने तक होती है, फिर 2-2 महीने परीक्षा ली जाती है.
- ड्यूटी पर भी उन्हें लगातार RDX, TNT या IED के नमूने सुंघाकर जांबाज स्निफर डॉग बनाया जाता है.
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ड्यूटी पर आने से पहले छोड़ना पड़ता है 'लवर'
खोजी कुत्ता Male हो या Female, दोनों की ट्रेनिंग एकसाथ ही होती है. 6 महीने के उम्र से अगले करीब 1 साल के लिए वे साथ रहते हैं, साथ खेलते हैं, साथ खाते हैं. ऐसे में विपरीत लिंग के बीच होने वाला आकर्षण उनके बीच भी हो जाता है, लेकिन यह 'लव रिलेशनशिप' ड्यूटी पर जाने के लिए छोड़नी पड़ती है.
दरअसल, खोजी कुत्तों को Meting की इजाजत नहीं होती, इस कारण आपस में बॉन्डिंग वाले विपरीत लिंगी कुत्तों को अलग-अलग सेंटर पर ड्यूटी दी जाती है. कुत्तों के हैंडलर्स के मुताबिक, ये घड़ी सबसे इमोशनल होती है. इस पल का मंजर हमारे लिए भी दिमाग से निकालना भारी होता है. दोनों कुत्ते अलग होकर कई दिन तक घंटों भौंकते रहते हैं और रोते रहते हैं. धीरे-धीरे ड्यूटी के इस तकाजे को वे स्वीकार कर लेते हैं और फिर शुरू हो जाता है रात-दिन देश के लिए जान की बाजी लगाने का सिलसिला, जो अगले 12 साल उनके नौकरी से रिटायर होने तक चलता है.
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ऐसी होती है खोजी कुत्ते की डाइट
- रोजाना 500 ग्राम आटे की रोटी
- रोजाना 500 ग्राम दूध
- रोजाना 500 ग्राम गोश्त
- रोजाना 250 ग्राम हरी सब्जी
- रोजाना 2 कैल्शियम की गोलियां
खोजी कुत्ता ही नहीं उसका हैंडलर बनना भी है कठिन तपस्या जैसा
खोजी कुत्ता ही नहीं बल्कि उसका हैंडलर बनना भी किसी कठिन तपस्या से कम नहीं है. कुत्ते के साथ बॉन्डिंग बनाने के लिए उसके साथ महीनों तक रोजाना घंटों रहना पड़ता है. उसे गले से लगाना पड़ता है. गोद में उठाना पड़ता है. इसके चलते घर के लिए भी छुट्टी नहीं मिल पाती. जब छुट्टी मिलती है तो घर पर बच्चे पास नहीं आते, क्योंकि कुत्ते की गंध हैंडलर के भी शरीर में रम जाती है. इतना ही नहीं गली-मोहल्लों में कई बार कुत्ते भी इस गंध के कारण पीछे पड़ जाते हैं.
हैंडलर (Handller) को रेबीज (Rabies) से बचाव के लिए इंजेक्शन भी लगवाने पड़ते हैं, जिनका शुरुआत में कई इंजेक्शन का कोर्स होता है. बाद में हर साल एक इंजेक्शन लगाया जाता है. यह इंजेक्शन हर कुत्ते को भी दिया जाता है.
ये कुत्ते होते हैं डॉग स्क्वॉयड की पसंद
- लेबराडॉर (Labrador)- यह सबसे आज्ञाकारी और सूंघने की बेहतरीन क्षमता वाला कुत्ता होता है. लेबराडॉर करीब 30 से 40 किलोग्राम वजन और 50 से 70 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला होता है. यह बेहद वफादार, सोशल, फ्रेंडली और कूल माइंड होने के कारण आर्मी के सबसे पसंदीदा कुत्तों में से एक होता है. सेना इसका इस्तेमाल ट्रैकिंग (Tracking), माइन डिटेक्शन, एक्सप्लोसिव डिटेक्शन से लेकर इन्फेन्ट्री पेट्रोलिंग और रेस्क्यू ऑपरेशंस तक में करती है.
- जर्मन शेफर्ड (German Shepherd)- जर्मन सेना के एक अफसर ने पहली बार इस नस्ल का मिलिट्री वर्किंग डॉग के तौर पर इस्तेमाल किया था. इसके बाद से यह पूरी दुनिया की सेनाओं के पसंदीदा कुत्तों में से एक है. करीब 35 से 45 किलोग्राम वजन और 60 से 75 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला यह कुत्ता अपनी इंटेलिजेंस (Intelligence) और क्विक लर्निंग स्किल्स (Quick Learning Skills) के लिए प्रसिद्ध है. खासतौर पर इसका इस्तेमाल सर्चिंग, रेस्क्यू ऑपरेशंस के लिए किया जाता है.
- बेल्जियन मेलीनॉइस (Belgian Malinois)- वैसे तो बेल्जियन मेलीनॉइस लंबे समय से पूरी दुनिया की सेनाओं की पसंद है, लेकिन इसे सबसे ज्यादा चर्चा साल 2011 में अलकायदा (Al-Qaeda) प्रमुख ओसामा बिन लादेन (Osama Bin Laden) को मारने वाली अमेरिकी टीम में शामिल होने के कारण मिली थी. महज 20 से 30 किलोग्राम वजन और 55 से 65 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला होने के बावजूद यह नस्ल अपने जबरदस्त अटैकिंग स्किल, स्मार्ट माइंड और अनूठी स्ट्रेन्थ के चलते बेहद फेमस है.
- ग्रेट स्विस माउंटेन (Great Swiss Mountain)- यह नस्ल बेहद सोशल और फ्रेंडली होने के कारण बहुत जल्द अलग-अलग आर्मी टीमों के साथ घुलमिल जाती है. इस कारण इसे बेहद पसंद किया जाता है. करीब 55 से 75 किलोग्राम वजन और 55 से 75 सेंटीमीटर ऊंचाई वाली इस नस्ल की बोन स्ट्रेंथ बेहद शानदार होती है. इस कारण सेना इसका इस्तेमाल ऊंचे पहाड़ी इलाकों में हथियार और खतरनाक आतंकी तलाशने में करती है.
देसी नस्ल भी हैं इलाके की जरूरत हिसाब से स्क्वॉयड में
डॉग स्क्वॉयड में कुछ लोकल नस्ल भी इलाकाई जरूरत के हिसाब से शामिल की जाती हैं. इन नस्लों में छत्तीसगढ़ और झारखंड के नक्सली इलाकों में उपयोग की जा रही देसी मंगरैल ब्रीड है, जो बेहद कम खुराक और रखरखाव में इन कठिन इलाकों में बाकी नस्लों से ज्यादा बेहतर काम करती है.
ऐसे ही कश्मीर (Kashmir) का बकरवाल कुत्ता (Bakharwal Dog) भी सेना की पसंद है, जिसे गद्दी कुत्ता (Gaddi Kutta) या तिब्बती मेस्टिफ (Tibetan Mastiff) भी कहा जाता है. जम्मू-कश्मीर (Jammu And Kashmir) की पीर पंजाल रेंज (Pir Panjal Range) में रहने वाले बकरवाल या वन गूजर आदिवासी सदियों से इन कुत्तों का इस्तेमाल अपने जानवरों की देखरेख के लिए करते रहे हैं. विलुप्तप्राय नस्ल में शामिल इन कुत्तों का इस्तेमाल सेना कश्मीर और लद्दाख के हाई अल्टीट्यूट एरिया में आतंकवाद विरोधी खोजी अभियानों और गश्त के लिए करती है.
सेना के जवान की तरह ही मिलते हैं पदक भी
फौज में शामिल होने वाले कुत्ते को भी एक जवान की तरह ही सम्मान दिया जाता है. शहीद होने पर उसे सैन्य विदाई मिलती है. अभियान में बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए मेडल भी मिलते हैं. बहुत सारी डॉग यूनिट्स शौर्य चक्र (Shaurya Chakra), सेना पदक ( Sena Medals) समेत कई तरह के मेडल हासिल कर चुकी हैं.
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साल भर सख्त ट्रेनिंग, Lover से जुदाई, तब मिलता है शहीद Axel जैसा DOG, जानिए खोजी कुत्तों की कहानी