डीएनए हिंदी: झारखंड (Jharkhand) के धनबाद (Dhanbad) में अवैध खनन के दौरान कई मजदूरों की मौत हो गई है. स्थानीय प्रशासन के मुताबिक निरसा की गोपीनाथपुर खान में हुए हादसे में 5 लोगों ने जान गंवाई है. बुधवार तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया जिसके बाद प्रशासन ने कहा कि अब किसी भी खदान में कोई मजदूर नहीं फंसा है. निरसा (Nirsa) के पूर्व विधायक अरुप चटर्जी (Arup Chatterjee) का दावा है कि सोमवार को हुए इस हादसे में कम से कम 13 लोगों की मौत हुई है. प्रशासन ने सिर्फ 5 मौतों की पुष्टि की है.
अवैध कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों की मौत का मामला नया नहीं है. देश के करीब 16 राज्यों में कोयला खदानें हैं. तमिलनाडु, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम, नागालैंड, बिहार, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कोयला खदानें हैं. कोयला और खनन मंत्रालय खदान से जुड़े प्रावधान तय करते हैं. इन राज्यों में अधिकृत कोल कंपनियों के अलावा अवैध कोयला खनन का कारोबार भी समानांतर तौर पर चलता है. बिना सुरक्षा उपकरणों के खनन माफिया, मजदूरों को कोयला खदानों में भेजते हैं. सुरक्षा की स्थितियां मापी नहीं जातीं और आए दिन कोयला खदानों में मौत की खबरें सामने आती हैं.
अवैध खदानों काम करने के दौरान जिन लोगों के परिजन हादसे का शिकार होते हैं उनकी पहचान भी स्थानीय स्तर पर छिपा ली जाती है. मौत पर केंद्र और राज्य सरकार से मुआवजा भी नहीं मिलता. अवैध कोयला खदानों में काम करने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी एक्शन भी होता है. आखिर वजह क्या है कि लोग ऐसे खदानों में काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं? अवैध कोयला खदानों में बड़ी संख्या में बच्चे काम करते हैं. महिलाएं भी खनन के कारोबार में शामिल हैं. लोग अपनी जान को जोखिम में डालकर क्यों इन खदानों में काम करते हैं एक बड़ा सवाल है.
Jharkhand: धनबाद के कोयला खदान में हादसा, 5 की मौत, कई लोगों के दबे होने की आशंका
पर्यावरण कार्यकर्ता अविनाश कुमार चंचल ने 'सिंगरौली फाइल्स, कोयले से सुलगी जिंदगी' नाम की एक किताब लिखी है. यह किताब भी आदिवासी जीवन और कोयला खदानों के मजदूरों की स्थिति के बारे में बात करती है. अविनाश कुमार चंचल ने कोयला मजदूरों की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उनके पास अपनी जान को जोखिम में डालकर काम करने से इतर विकल्प क्या है?
खतरनाक है अवैध खदानों में खनन!
अविनाश चंचल कहते हैं कि धनबाद के अवैध कोयले खदान में हुआ हादसा यह दर्शाता है कि किस तरह से माइनिंग और प्राकृतिक संसाधनों का खनन खतरनाक है. पर्यावरण कार्यकर्ता लगातार इसे लेकर सरकारों को आगाह करते रहे हैं. इन खदानों में काम करने वाले लोगों पर हमेशा जान का खतरा मंडराता रहता है.
जान जोखिम में डालकर खदानों में क्यों उतरते हैं लोग?
अविनाश चंचल ने कहा कि लोग इस वजह से कोयला खदानों में काम करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उनके परंपरागत जीविकोपार्जन के साधनों को खत्म किया गया है. माइनिंग का पैटर्न ऐसा रहा है कि पहले कोई बड़ी माइनिंग कंपनी खदान खोलती है. उस खदान में काम करने के लिए मजदूरों को लाया जाता है. ज्यादातर मजदूर बाहर के होते हैं. खदान ज्यादातर घने जंगलों में हैं या खेती की जमीनों में हैं. स्थानीय लोग इन जमीनों पर या तो खेती कर रहे होते हैं या जंगलों पर अपनी रोजी-रोटी को लेकर निर्भर होते हैं. ऐसी स्थिति में उनकी जीविका तबाह हो जाती है. बेरोजगारी होने की वजह से स्थानीय लोगों के पास ऐसे जोखिम उठाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होते हैं. बेरोजगारी ऐसे इलाकों में बेहद ज्यादा है. मजदूरी के भी मौके नहीं हैं. यही वजह है कि अवैध खदानों में काम करने के लिए मजदूर, मजबूर हो जाते हैं.
अविनाश चंचल कहते हैं कि मजदूरों को यह बात ठीक से पता है कि ऐसे खदानों में काम करना उनके लिए जोखिम भरा है. उनके स्वास्थ्य के लिहाज से भी ठीक नहीं है. खदानों में जाने वाले मजदूर स्वास्थ्य संबंधी कई मुश्किलों का सामना करते हैं. प्राइवेट कंपनियों और सरकारों ने उनके परंपरागत संसाधनों को खत्म किया है. सरकार को यह तय करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं सामने न आएं. खदानों में काम कर रहे लोगों की सुरक्षा तय की जानी चाहिए.
सरकार कैसे खनन को रोक सकती है?
अगर सरकार खदान वाले इलाकों में रोजगार के दूसरे साधनों को विकसित करे तो अवैध खनन का कारोबार थम जाएगा. अविनाश चंचल ने कहा कि ऊर्जा के वैकल्पिक संसाधनों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. नवीकरणीय उर्जा (Renewable Energy) के साधन जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी सरकार को रोजगार के मौके सृजित करने चाहिए. ऐसे सेक्टर क्लीन एनर्जी भी कहे जाते हैं. अगर सरकार ऐसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करे तो उनकी जिंदगी बेहतर हो सकती है.
ऐसे कदम स्थानीय लोगों को एक स्थाई और सुरक्षित जीवन देने में मददगार साबित होंगे. जीविका के परंपरागत संसाधनों को भी रिस्टोर किया जाए. यह एक बड़ी चुनौती है. ऐसे लोगों को कृषि के लिए जमीन भी मुहैया कराई जा सकती है, महुआ, पत्ता और दूसरे वन उत्पादों का इस्तेमाल इन्हें करने दिया जाए. उन उत्पादों की सही कीमत दी जाए. सही बाजार मिले तो अवैध खनन के मामले भी कम हो सकते हैं. लोगों की मजबूरी न हो तो लोग कभी इन खदानों का रुख नहीं करेंगे.
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DNA एक्सप्लेनर: जान जोखिम में डालकर अवैध कोयला खदानों में क्यों काम करते हैं मजदूर?