भारतीय बाजार के लिए बुरी खबर है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 85.97 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया, जो एक दिन पहले ही 85.9325 के अपने पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया था. 85.9650 पर बंद हुआ, रुपया लगातार दसवीं बार साप्ताहिक गिरावट दर्ज की गई. 

एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस सप्ताह डॉलर में मजबूती और लगातार पूंजी निकासी के बीच 0.2% की गिरावट आई.  ध्यान रहे कि शुक्रवार को 109 अंक से ऊपर रहे डॉलर इंडेक्स में उछाल और अमेरिकी श्रम बाजार के आंकड़ों को लेकर निवेशकों की चिंताओं के कारण रुपया कई हफ्तों से दबाव में है.

जिस तरह से रुपया गिर रहा है, बाजार के तमाम जानकार ऐसे हैं जिनका ये तर्क है कि अभी आने वाले दिनों में स्थिति और ज्यादा गंभीर होगी.

तो क्या आने वाले वक़्त में यूं ही कमजोर रहेगा रुपया?

इस सवाल को लेकर समाचार एजेंसी रॉयटर्स में एक बेहद जरूरी रिपोर्ट छपी है. रिपोर्ट  के अनुसार, डॉलर की मज़बूती का श्रेय मुख्य रूप से अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में धीमी कटौती की उम्मीदों को जाता है.

आईएनजी बैंक ने कहा कि नौकरियों के मज़बूत आंकड़े बाज़ारों को दरों में कटौती की कीमत तय करने में देरी करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, जिससे डॉलर और मज़बूत होगा. बाद में जारी किए गए अमेरिकी गैर-कृषि पेरोल डेटा से फेड के अगले कदमों के लिए महत्वपूर्ण संकेत मिलने की उम्मीद है, जिससे वैश्विक बाज़ारों में हलचल बनी रहेगी.

रॉयटर्स की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए कदम उठाया है, जिसमें सरकारी बैंकों ने कथित तौर पर केंद्रीय बैंक की ओर से डॉलर बेचे हैं.

इन नियमित हस्तक्षेपों ने रुपये की गिरावट को कम करने में मदद की है, लेकिन इसकी लगातार गिरावट को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

डॉलर के मजबूत होने के अलावा, एक महत्वपूर्ण जानकारी ये भी निकल कर सामने आई है कि विदेशी निवेशकों ने इस महीने भारतीय शेयरों और बॉन्ड से 3 बिलियन डॉलर से अधिक की निकासी की है, जिससे रुपये में गिरावट आई है. 

कहा ये भी जा रहा है कि हाल के हफ्तों में रुपये की अस्थिरता भी बढ़ी है, जो आरबीआई में नेतृत्व परिवर्तन के साथ मेल खाती है. बढ़ती बाहरी और घरेलू चुनौतियों के साथ, विश्लेषक रुपये के निकट-अवधि के प्रक्षेपवक्र के बारे में सतर्क हैं.

आम आदमी को कैसे प्रभावित करेगी रुपये की गिरती कीमत ?

बाजार के जानकार मानते हैं कि गिरते रुपये के चलते आयात महंगा और निर्यात सस्ता होगा. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब स्थिति इस तरह की होती है तो आयात के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि जब मामला निर्यात से जुड़ा होता है तो उस अवस्था में खरीददार को कम डॉलर देने होते हैं.

अब जब बात इसे लेकर आम आदमी के संदर्भ में होगी. तो यहां हमारे लिए ये बता देना ज़रूरी हो जाता है कि भारत अपने कुल तेल का लगभग 80 प्रतिशत आयात करता है. जैसे-जैसे रुपया कमजोर होगा, कच्चा तेल लेने के लिए हमें अधिक का भुगतान करना पड़ेगा और इन सबका असर हमें पेट्रोल, डीजल, गैस की कीमतों में देखने को मिलेगा. 

यानी भविष्य में हम खाने पीने की चीजों की कीमतों में भी बढ़ोतरी देख सकते हैं.  

इसके अलावा रुपये की कीमतों में आई गिरावट उन छात्रों को भी प्रभावित करेगी जो विदेश में पढ़ने के सपने देख रहे हैं. वहीं, रुपये में आई गिरावट आईटी और फार्मा कंपनियों पर भी असर डाल सकती हैं जिससे दवाएं और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स महंगे होंगे.

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Indian Rupee hits all time low near 86 mark against US dollar how common man life will get affected
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डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर रुपया, आम आदमी  के जीवन पर क्या पड़ेगा असर? 
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रुपये की गिरती कीमत ने भारतीय बाजार को चिंता में डाल दिया है
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डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर रुपया, आम आदमी  के जीवन पर क्या पड़ेगा असर? 

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