IND vs NZ Test Series: भारतीय क्रिकेट के लिए शनिवार (26 अक्टूबर) का दिन 'ब्लैक सेटरडे' बन गया है. रिकी पोंटिंग (Rickey Ponting) की ऑल टाइम सुपरस्टार ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम या बेन स्टोक्स(Ben Stokes) की 'टोटल क्रिकेट' वाली इंग्लैंड का विजय रथ भी जिस टीम इंडिया को उसकी घरेलू जमीन पर सीरीज में परास्त नहीं कर सका, उसे अंजान से चेहरों वाली न्यूजीलैंड की टीम ने सीरीज में धूल चटा दी है. बंगलुरु के बाद अब पुणे में भी टेस्ट मैच गंवाकर टीम इंडिया 12 साल बाद अपनी धरती पर सीरीज हार का स्वाद चखने के लिए मजबूर हो गई है. बात महज इतनी नहीं है. जीत-हार खेल का हिस्सा होती है. दरअसल भारतीय क्रिकेट टीम (Indian Cricket Team) को न्यूजीलैंड टीम ने उसके ही अस्त्र यानी स्पिन गेंदबाजी से परास्त करते हुए पूरी दुनिया को चौंका दिया है. बात इतनी सी नहीं है. टीम इंडिया के बल्लेबाज एक समय स्पिन गेंदबाजी खेलने के मास्टर माने जाते थे, लेकिन पिछले कुछ समय में वे फिरकी पर फिसड्डी साबित हो रहे हैं. टी20 क्रिकेट से लेकर IPL तक का हैंगओवर, जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, उसी तरह से भारतीय बल्लेबाजों की स्पिन पर पकड़ घटी है. ये हम नहीं आंकड़े कह रहे हैं कि किस तरह स्पिन गेंदबाजी पर भारतीय बल्लेबाज 'अनाड़ी' बनते जा रहे हैं.
टी20 क्रिकेट के प्रभुत्व के दौर में फिरकी पर बिखरते भारतीय
साल 2014 को इंटरनेशनल क्रिकेट पर टी20 क्रिकेट के बढ़ते प्रभुत्व की पायदान माना जाता है. इस साल से अब तक के आंकड़ें देखें जाए तो आपको खुद ही सारी बात समझ में आ जाएगी. साल 2004 से 2014 के बीच भारत में खेले 50 टेस्ट में 298 भारतीय बल्लेबाज स्पिन गेंदबाजी पर आउट हुए थे, जबकि 2014 से 2024 के बीच भारतीय जमीन पर 49 टेस्ट मैच में 400 भारतीय बल्लेबाज फिरकी का शिकार हुए हैं. याद रखिए 2000 के दशक में भारतीय बल्लेबाजों का सामना शेन वार्न, सकलैन मुश्ताक, मुथैया मुरलीधरन, डेनियल वेटोरी जैसे दिग्गज स्पिन गेंदबाजों से होता था, जिनके बराबर का शायद ही कोई स्पिनर मौजूदा दौर में दिखाई देगा. ये नामी स्पिनर भी भारतीय धरती पर विकेट लेने के लिए तरसते दिखाई देते थे, क्योंकि उस दौर में भारतीय बल्लेबाज सही मायने में टूटी हुई विकेट पर घूमती हुए गेंदों को खेलने के लिए मास्टर क्लास खेल दिखाते थे. यही कारण है कि उस दौर में स्पिनर भारत में विकेट लेने को तरसते थे. स्पिन गेंदबाजी के खिलाफ भारतीय बल्लेबाजों के बदलते हुए स्किल लेवल का नजारा आपको आगामी आंकड़ों में ज्यादा साफ दिखाई देगा.
पिछले एक दशक में ऐसे आउट हुए हैं भारतीय बल्लेबाज
यदि हम 25 अक्टूबर, 2014 से 26 अक्टूबर, 2024 (न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच के खात्मे तक) तक के आंकड़ों पर गौर करें तो भारतीय टीम स्पिन पर फिसड्डी जैसी दिखेगी. भारतीय टीम ने इस दौर में देश-विदेश में कुल 100 टेस्ट मैच खेले, जिनमें उसने 1446 विकेट गवाएं थे. इन 1446 विकेट में से भारतीय बल्लेबाजों को 600 बार स्पिनर्स ने आउट किया, जबकि 846 बार तेज गेंदबाजों ने उन्हें अपना शिकार बनाया था. इस दौरान भारत में यानी स्पिन फ्रैंडली पिचों पर 49 टेस्ट मैच खेले गए हैं. इन 49 टेस्ट मैच में स्पिनर्स ने 400 बार (पारी में 5 विकेट 16 बार और मैच में 10 विकेट 4 बार) भारतीय बल्लेबाजों को गच्चा देकर पवेलियन लौटाया है, जबकि तेज गेंदबाज 243 बार ही भारतीय बल्लेबाजों को आउट कर पाए हैं.
अब जानिए 2004 से 2014 तक स्पिन के खिलाफ टीम इंडिया का खेल
यदि हम 25 अक्टूबर, 2004 से 26 अक्टूबर, 2014 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो आपको हमारा दावा खुद समझ आ जाएगा. यह समझ आएगा कि हम क्यों भारतीय बल्लेबाजों के अब 'स्पिन पर फिसड्डी' बता रहे हैं. साल 2004 से 2014 के बीच भारतीय टीम ने कुल 107 टेस्ट मैच खेले थे, जिसमें 1574 विकेट भारतीय टीम ने देश-विदेश में गंवाए थे. इस दौरान भारत में 50 टेस्ट मैच खेले गए, जिनमें भारतीय टीम के 672 बल्लेबाज आउट हुए हैं. इन 672 बल्लेबाजों में से महज 298 को स्पिन गेंदबाजों ने आउट किया था, जबकि 374 विकेट तेज गेंदबाजों के खाते में आए थे.
याद कीजिए साल 2010 से पहले की क्रिकेट को
भारतीय क्रिकेट में टी20 की एंट्री साल 2008 में IPL की शुरुआत के साथ हुई थी. इस फटाफट क्रिकेट को पीक पर आने में 2-3 साल लग गए. इस हिसाब से याद कीजिए टी20 के दौर से पहले यानी 2000 के दशक की क्रिकेट को. तब भारतीय टीम के बल्लेबाजी क्रम में राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण जैसे बल्लेबाज हुआ करते थे, जो कलाई के सहारे शॉट खेलने के मास्टर माने जाते थे. कलाई के शॉट यानी लेग ग्लांस, फ्लिक और स्वीप, पैडल स्वीप जैसे शॉट्स के जरिये घुमाव लेती गेंदों को आसानी से दिशा देकर विकेट गंवाने के बजाय रन बटोरने में सफल होते थे. इससे पहले के दशकों को भी देखा जाए तो गुंडप्पा विश्वनाथ, सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसरकर, मोहम्मद अजहरुद्दीन, रवि शास्त्री, मोहिंदर अमरनाथ जैसे बल्लेबाज भी कलाई के शॉट्स के जबरदस्त महारथी थे. इसलिए उस दौर में भी नामी स्पिनर भारतीय पिचों पर नौसिखिए गेंदबाज जैसे दिखते थे.
T20 कहिए या IPL, कैसे बदल गया है गेम
अब वनडे क्रिकेट भी नहीं उससे भी ज्यादा फटाफट खेल वाली T20 क्रिकेट का दौर है. IPL में आपने देखा होगा, हर बल्लेबाज लॉन्ग शॉट्स लगाकर छक्का लगाने की जुगत में रहता है. ज्यादा से ज्यादा रन बटोरने के लिए पुल, हुक, स्क्वॉयर कट, फ्रंटफुट स्क्वॉयर ड्राइव ज्यादा खेले जाते हैं यानी क्रिकेट पूरी तरह लॉफ्टेड शॉट्स पर निर्भर हो गई है. इसके अलावा '360 डिग्री शॉट्स' का भी बोलबाला है, जिनका तकनीकी क्रिकेट से दूर-दूर तक मेल नहीं है. नतीजा ये है कि अब नेट प्रैक्टिस में भी ऐसे शॉट्स को ही ज्यादा खेला जाता है. इसी कारण जैसे ही किसी पिच पर गेंद थोड़ी भी ज्यादा घूमने लगती है, वहीं पर बल्लेबाजों की तकनीक की पोल खुल जाती है. यह काम भारतीय क्रिकेटरों के साथ ज्यादा हो रहा है. इसके उलट विदेशी बल्लेबाज अब भारत में ज्यादा खेल रहे हैं, जिससे वे यहां के विकेटों से परिचित हो रहे हैं और स्पिनर्स के साथ ज्यादा प्रैक्टिस के मौके मिलने से उनका खेल फिरकी गेंदबाजी पर सुधरा है.
अब टेस्ट नहीं टी20 पर है क्रिकेट बोर्ड का जोर ज्यादा
टीम इंडिया (Indian Cricket Team) की इस दुर्दशा के लिए बोर्ड फॉर क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया (BCCI) भी जिम्मेदार है. बोर्ड का फोकस टेस्ट मैच से ज्यादा टी20 और वनडे क्रिकेट के आयोजन पर रहा है. टी20 सीरीज का आयोजन कराना टेस्ट सीरीज के झंझट के मुकाबले ज्यादा आसान और कम समय वाला है. इसमें बोर्ड को टिकट बिक्री से कमाई भी ज्यादा हो रही है. इस कारण ऐसे आयोजन को ही बढ़ावा दिया जा रहा है. इसका असर भी टीम इंडिया के खेलने के स्टाइल को बदलने के लिए जिम्मेदार है.
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