ईरान पर हमला इजरायल द्वारा अब तक किए गए सबसे बड़े और सबसे जटिल हवाई हमलों में से एक था. पश्चिमी देशों द्वारा निर्मित पांचवीं पीढ़ी के F-35 स्टील्थ जेट विमानों के साथ-साथ F-16 और F-15 युद्धक विमानों सहित दर्जनों विमानों ने ईरान के अंदर कई टार्गेट्स पर हमला करने के लिए 1,000 मील से अधिक की उड़ान भरी, जिसमें शासन की बेशकीमती, रूस द्वारा प्रदान की गई S-300 वायु रक्षा प्रणाली भी शामिल थी.
बताया यह भी जा रहा है कि रडार और अन्य वायु रक्षा क्षमताओं के साथ-साथ S-300 प्रणालियों में से चार को निशाना बनाया गया, जिससे भविष्य में ईरानी शासन के खिलाफ किसी भी मिशन पर तैनात होने पर इजरायली विमानों के लिए जोखिम कम हो जाएगा.
'ऑपरेशन डेज़ ऑफ़ रिपेंटेंस' नामक इस रेड में उन जगहों को भी निशाना बनाया गया, जहां ईरान इजरायल को धमकाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मिसाइलों का निर्माण कर रहा था. हमला इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इजरायल ने हर उस चीज को तरब कर दिया है जिससे उसे खतरा था.
ज्ञात हो कि 1 अक्टूबर को ईरान द्वारा इजरायली हमलों के जवाब में इजरायल पर 180 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों को दागे जाने के बाद इजरायली सरकार ने जवाबी कार्रवाई करने की कसम खाई थी. इजरायल से प्राप्त जानकारी के अनुसार, अमेरिकी सेना द्वारा समर्थित इजरायली वायु रक्षा ने 85-90% प्रक्षेपास्त्रों को रोक दिया. हालांकि, 1,000 किलोग्राम के कई वारहेड्स ने इजरायली टार्गेट्स पर हमला किया.
बताते चलें कि लंबे समय से प्रत्याशित, इजरायल की जवाबी कार्रवाई तीन चरणों में हुई, जिसमें पहला हमला 26 अक्टूबर को लगभग 2 बजे हुआ और आखिरी इजरायली जेट सुबह 6 बजे तक इजरायल वापस लौट आया. हमले के बाद इजरायल की तरफ से बयान आया है कि इस मिशन में कोई भी विमान नष्ट या क्षतिग्रस्त नहीं हुआ.
जिसे इजरायल की तरफ से 'जटिल' ऑपरेशन के रूप में वर्णित किया गया था, उसमें इजरायली लड़ाकू जेट, हवा से हवा में ईंधन भरने वाले विमानों और टोही विमानों की मदद से 25 अक्टूबर की मध्यरात्रि से पहले अपने ठिकानों से निकल गए.उन्हें अपने लक्ष्यों की सीमा के भीतर पहुंचने के लिए 1,000 मील से अधिक की उड़ान भरनी पड़ी.
विमान तथाकथित 'स्टैंड-ऑफ म्यूनिशन' से लैस थे. ये ऐसी मिसाइलें हैं जिन्हें दूर से लॉन्च किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ईरानी हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं थी.
ज्ञात ही कि इजरायल ने अपने ऑपरेशन के लिए मार्ग को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है. हालांकि, ऐसा माना जाता है कि इजरायली वायु सेना, जिसमें 201 स्क्वाड्रन भी शामिल हैं, जो F-16 का संचालन करते हैं, सीरिया के ऊपर से उड़ान भरकर इराक में घुसे और इजरायल लौटने से पहले उन्होंने इराकी हवाई क्षेत्र से अपने हथियार दागे.
इस घुसपैठ के मद्देनजर इराकी सरकार ने अभी बीते दिन ही संयुक्त राष्ट्र में एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई. अपनी शिकायत में इराक ने इजरायल द्वारा ईरान पर हमला करने के लिए अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग करके 'स्पष्ट उल्लंघन' करने का आरोप लगाया है. ओपन-सोर्स रिपोर्टिंग से संकेत मिलता है कि इसके बाद इजरायल ने ईरान में लगभग 20 स्थानों पर टार्गेट्स को निशाना बनाया, जिसमें तेहरान के साथ -साथ देश के पश्चिमी हिस्से शामिल हैं.
इज़राइल रक्षा बलों (आईडीएफ) ने कहा कि उसके विमानों ने मिसाइल निर्माण स्थलों के साथ-साथ ईरानी वायु रक्षा क्षमताओं पर भी हमला किया - जिसमें रूस द्वारा निर्मित एस-300 सिस्टम भी शामिल हैं. विश्लेषकों ने कहा कि एफ-35 जेट जैसी पश्चिमी तकनीक की मदद से इन वायु रक्षा प्रणालियों पर हमला करने की इज़राइल की क्षमता तेहरान में चिंता का कारण बनेगी क्योंकि यह रूसी दावों को कमजोर करती है कि वे हवाई हमलों के खिलाफ एक प्रभावी रक्षात्मक ढाल प्रदान करते हैं.
आगे कुछ और कहने से पहले हमारे लिए ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि रूस ने ईरान को S-300 सिस्टम मुहैया कराया है. इसने हाल ही में अपग्रेडेड S-400 सिस्टम भी मुहैया कराया है. ये ईरानी सेना द्वारा संचालित सबसे सक्षम वायु रक्षा प्रणाली हैं. ईरान ने सप्ताहांत के हमलों के प्रभाव को कम करके आंका है, लेकिन इजरायली सेना ने कहा है कि मिशन सफल रहा.
ईरानी वायु रक्षा को कमजोर करने से भविष्य में किसी भी हमले में इजरायली जेट के लिए खतरा कम हो जाएगा, जबकि ईरानी मिसाइल निर्माण क्षमताओं को लक्षित करने का उद्देश्य इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की इजरायल के खिलाफ जवाबी हमला करने की क्षमता को कम करना है.
जहां तक इस बात का सवाल है कि इजरायल ईरान से किस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद करता है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि तेहरान ने भी क्या करने का फैसला किया है.
बहरहाल हालिया दिनों में ईरान और इजरायल के बीच जैसा गतिरोध है. इतना तो तय है कि बात इतनी जल्दी ख़त्म नहीं होगी और ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा.
बाकी मिडिल ईस्ट में जो कुछ भी चल रहा है, वो स्वतः इस बात की पुष्टि कर देता है कि, इजरायल से कमजोर होने के बावजूद यदि ईरान रिस्क ले रहा है. तो इसके पीछे उसकी वो मंशा है, जिसमें उसे अपने आप को पूरे मध्य पूर्व का सबसे ताकतवर और निडर देश साबित करना है.
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