एक प्रभावशाली लोकतंत्र में सत्ता से क्या अपेक्षा रखती है जनता? इस सवाल का जवाब हो सकता है सुशासन, कानून व्यवस्था, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, साफ़ सफाई, स्वास्थ्य सेवाएं, फ्रीबीज इत्यादि. यानी यही वो कसौटियां हैं जिनपर जनता द्वारा पॉलिटिकल पार्टियों को तौला जाता है. जो दल पब्लिक की जरूरतों का ख्याल रखता है उसे ही जनता सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाने का मौका देती है.

एक तरफ ये बातें हैं दूसरी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव उसमें भी ओखला विधानसभा सीट का चुनाव है. लेकिन ओखला का चुनाव पूरी दिल्ली के चुनाव से भिन्न है. बिजली, पानी, स्कूल, अच्छी सड़कें, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं होंगे दिल्ली के लोगों के मुद्दे. मगर जिस मुद्दे पर ओखला का चुनाव लड़ा जा रहा है उसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा.

हमें दिसंबर 2019 की उस सर्दी का अवलोकन करना होगा जब दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बाहर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 के विरोध में बैठे प्रदर्शनकारी छात्रों पर दिल्ली पुलिस ने लाठियां बरसाई थीं.

दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शन कर रहे छात्रों को बर्बरतापूर्वक लाठियों से पीटना उन लोगों को आहत कर गया, जिनका मानना था कि किसी भी मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन का हक़ हमें हमारा संविधान देता है. 

बाद में दिल्ली पुलिस के प्रति रोष के नतीजे के रूप में शाहीन बाग़ प्रोटेस्ट की स्थापना हुई. और शायद तभी लोग ये मान बैठे थे कि दिल्ली पुलिस की ईंट का जवाब 2025 के विधानसभा चुनाव में वोट के पत्थर से दिया जाएगा. 

जैसा माहौल ओखला विधानसभा का है. चाहे वो प्रत्याशी हों या फिर क्षेत्र की जनता. एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण एक बार फिर शाहीनबाग और सीएए का भूत बाहर आ गया है.

रैलियों में हो रहे भाषणों से लेकर आम लोगों से हुई बातों तक. जो निचोड़ निकल कर बाहर आ रहा है, वो ये बताने के लिए काफी है कि, लोग यहां न तो शाहीनबाग भूले हैं और न ही एंटी सीएए प्रोटेस्ट.

ओखला के लिए ये मुद्दा कितना और किस हद तक प्रभावी है? इसे हम पार्टियों द्वार उम्मीदवारों के चयन से भी समझ सकते हैं. ध्यान रहे ओवैसी भी दिल्ली में अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाश रहे हैं. दिल्ली में दो सीटों ओखला और मुस्तफाबाद से चुनावी रण में कूदे ओवैसी ने ओखला से शिफा उर रहमान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन को टिकट दिया है. दोनों ही प्रत्याशियों के विषय में रोचक ये है कि दोनों एंटी जेल में हैं.   

बताते चलें कि ओवैसी खुद ओखला में जनसभाएं और रैलियां कर रहे हैं और खुलकर इस बात को कह रहे हैं कि उन्होंने बहुत सोच समझकर दिल्ली में ताहिर हुसैन और शिफा उर रहमान को टिकट दिया है. वहीं ओवैसी ने ये सवाल भी पूछे कि जब तमाम तरह के गंभीर आरोप होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया जैसे लोगों को बेल मिल सकती है तो फिर इन लोगों के साथ अन्याय क्यों किया गया?

ध्यान रहे कि ओखला में आयोजित अपनी रैलियों में ओवैसी एंटी सीएए प्रोटेस्ट और शाहीन बाग को एक बड़े मुद्दे की tतरह पेश कर रहे हैं. जिक्र अगर कांग्रेस का हो तो कांग्रेस ने जिस अदीबा खान को ओखला विधानसभा से उम्मीदवार चुना. वो भी जामिया की छात्रा रह चुकी हैं और उन्होंने भी पूर्व में सीएए और मोदी सरकार का विरोध किया था.   

चाहे वो लोगों से मिलना हो या फिर रैलियों में भाषण. अदीबा जब भी लोगों से मिलती हैं यही बताती हैं कि उन्होंने और उनके परिवार ने उस वक़्त मुसलमानों का साथ दिया जब मुसलमानों को कोई पूछने नहीं आ रहा था.

ये तो बात हो गई कांग्रेस और एआईएमआईएम की. अब बात अगर आम आदमी पार्टी की हो तो वर्तमान में आम आदमी पार्टी के अमानतुल्ला खान यहां से विधायक हैं. दो बार विधायक रह चुके अमानत पुनः चुनावी रण में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं  लेकिन जैसी परिस्थितियां हैं ओखला में अमानत की दाल गलती हुई नहीं नजर आ रही है.

लोग काम या ये कहें कि विकास को लेकर तो अमानतुल्ला खान से नाराज हैं ही इसके अलावा लोग अमानत से इसे लेकर भी आहत हैं कि तब उनका और उनकी पार्टी का रवैया बहुत उदासीन था जब जामिया में सीएए के विरोध में स्टूडेंट्स को पुलिस की लाठियां पड़ रही थीं.   

ओखला के लोग इस बात के पक्षधर हैं कि जिस वक़्त अमानत को अपने मुसलमान भाइयों और बहनों का साथ देना था उस वक़्त वो अपने घर में दुबके थे और उन ऑर्डर्स को ले रहे थे जो उन्हें उनकी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की तरफ से मिल रहे थे. 

आप, कांग्रेस और एआईएमआईएम के बाद भाजपा का भी जिक्र स्वाभाविक हो जाता है. ओखला विधानसभा से भाजपा ने मनीष चौधरी को चुनावी रण की कमान सौंपी है.  माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले चौधरी का लक्ष्य आप की जीत का सिलसिला तोड़ना होगा.

भाजपा को उम्मीद है कि चौधरी की अपील का लाभ उठाकर वह निर्वाचन क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के वोटों को अपने पक्ष में कर सकेगी.

गौरतलब है कि ओखला, यमुना नदी के किनारे दिल्ली के सबसे पुराने बसे हुए क्षेत्रों में से एक है. इस विधानसभा में बतला हाउस, जाकिर नगर, मदनपुर खादर गांव, खिजराबाद गांव, जसोला गांव, आली गांव और तैमूर नगर शामिल हैं.  

क्या है ओखला निर्वाचन क्षेत्र की डेमोग्राफिक प्रोफाइल 

ओखला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 54) दिल्ली के दक्षिण-पूर्व जिले में स्थित है और पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है.  यह विविध जनसांख्यिकी और मतदाता आधार के साथ महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक महत्व रखता है. निर्वाचन क्षेत्र में 335,147 पंजीकृत मतदाता शामिल हैं और 2020 की मतदाता सूची के अनुसार इसमें 252 मतदान केंद्र हैं. 

2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम

आप के अमानतुल्ला खान को 130,367 वोट मिले (जीते)

बीजेपी के ब्रह्म सिंह को 58,540 वोट मिले

कांग्रेस के परवेज हाशमी को 5,123 वोट मिले थे.

2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम

आप के अमानतुल्ला खान को 104,271 वोट मिले

भाजपा के ब्रह्म सिंह को 39,739 वोट मिले

कांग्रेस के आसिफ मुहम्मद खान को 20,135 वोट मिले थे.

2020 और 2015 में ओखला निर्वाचन क्षेत्र में मतदान

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान ओखला विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वैध मतों की कुल संख्या 197,652 या 58.97 प्रतिशत थी.  2015 में, इस विधानसभा सीट पर वैध मतों की कुल संख्या 166,702 या 60.94 प्रतिशत थी. 

बहरहाल ओखला विधानसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प है. आम आअदमी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस या फिर एआईएमआईएम विधायक किस पार्टी का होगा इसका फैसला तो 8 फरवरी को हो जाएगा. लेकिन जिस तरह एक बार फिर सीएए और शाहीनबाग का भूत वापस आया. उससे इतना तो साफ़ हो गया है कि जनता उसमें भी ओखला की जनता कुछ नहीं भूली है. 

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From Owaisi to Congress BJP and AAP how Shaheen Bagh Shadow and caa nrc protest impacting Delhi Election exclusive ground report
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क्या ओखला को एकजुट कर पाएगा शाहीनबाग और एंटी सीएए प्रोटेस्ट का भूत?
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दिल्ली चुनावों में एक बार फिर शाहीनबाग का मुद्दा बाहर आ गया है
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Delhi Elections 2025 : क्या ओखला को एकजुट कर पाएगा शाहीनबाग और एंटी सीएए प्रोटेस्ट का भूत? 

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