भारत सहित दुनिया की लगभग आधी आबादी ने 2024 में चुनावों में मतदान किया, जिससे यह लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष बन गया. ध्यान रहे कि दुनिया के प्रमुख लोकतंत्रों में चुनाव मध्य पूर्व में संघर्ष और यूक्रेन में युद्ध की पृष्ठभूमि में हुए. साल 2024 राजनीतिक रूप से क्यों बेहद अहम रहा? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जर्मनी, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में नेतृत्व परिवर्तन देखे गए. वहीं भारत का पड़ोसी बांग्लादेश वो मुल्क बना जहां शेख हसीना को निर्वासन का सामना करना पड़ा.
जिक्र मध्य पूर्व का हो. तो सीरिया में बशर अल-असद को विद्रोहियों से लोना लेना पड़ा और इसकी कीमत उन्होंने सत्ता से बेदखल होकर चुके चुकाई. ध्यान रहे विद्रोहियों से पराजय के बाद, बशर और उनके पिता की सत्ता पर पिछले पांच दशकों से चली आ रही पकड़ खत्म हो गई.
कुल मिलाकर, 2024 मौजूदा नेताओं के लिए एक कठिन वर्ष था. प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट में कहा गया है, 'जबकि हर चुनाव स्थानीय कारकों से प्रभावित होता है, आर्थिक चुनौतियां दुनिया भर में एक सुसंगत विषय थीं. इसमें अमेरिका भी शामिल है, जहां रजिस्टर्ड वोटर्स (खासकर उन लोगों के लिए, जिन्होंने ट्रम्प का समर्थन किया) के लिए अर्थव्यवस्था प्रमुख मुद्दा थी.
ध्यान रहे कि भारत भी लोकसभा चुनावों का साक्षी बना, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरा कार्यकाल मिला, हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)को कमज़ोर बहुमत मिला. भारत की ही तरह अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर भी दुनिया की पैनी नजर थी.
अमेरिका के इस हाई-प्रोफाइल चुनाव में, डेमोक्रेट्स ने यूएस में राष्ट्रपति पद खो दिया. रिपब्लिकन पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 5 नवंबर के चुनावों में उपराष्ट्रपति और डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस को ऐतिहासिक शिकस्त दी. वहीं यूके में सत्ता वामपंथियों के हाथ में चली गई. लेबर पार्टी ने भारी संसदीय बहुमत हासिल किया, जिससे कंजर्वेटिव पार्टी का 14 साल का शासन समाप्त हो गया.
जिक्र तमाम चीजों का होगा. लेकिन उससे पहले आइये जानें कि 2024 में दुनिया में और कहां कहां चुनाव हुए और कैसे उन चुनावों का असर शासन में हुए एक बड़े परिवर्तन के रूप में हमारे सामने आया.
यूनाइटेड किंगडम
यूनाइटेड किंगडम में राजनीतिक सत्ता वामपंथ की ओर झुक गई. लेबर पार्टी ने संसदीय बहुमत हासिल किया, जिससे 14 साल से चली आ रही कंजर्वेटिव पार्टी का शासन खत्म हो गया. ज्ञात हो कि चुनाव 4 जुलाई को हुए। लेबर पार्टी ने 650 संसदीय सीटों में से 400 से ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल कीं, जो दशकों में उनका सबसे बड़ा बहुमत था. फिर इसके बाद कीर स्टार्मर ब्रिटेन के पीएम बने.
संयुक्त राज्य अमेरिका
नवंबर में हुए अमेरिकी चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने उपराष्ट्रपति और डेमोक्रेट कमला हैरिस को हराया. अमेरिका में कैसे रिपब्लिकन ने बाजी मारी इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कांग्रेस के दोनों सदनों में भी रिपब्लिकन ने बहुमत हासिल किया.
अमेरिका के मामले में दिलचस्प ये रहा कि यह लगातार तीसरा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव था जिसमें मौजूदा पार्टी हार गई. रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप, जो 2017 से 2021 तक अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति थे, ने ओहियो से जूनियर अमेरिकी सीनेटर जेडी वेंस को अपना रनिंग मेट चुना था.
बता दें कि ट्रंप और वेंस का 20 जनवरी, 2025 को 47वें राष्ट्रपति और 50वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण होना तय है.
श्रीलंका
श्रीलंका में 21 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव हुए. नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन के अनुरा कुमारा दिसानायके ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराकर राष्ट्रपति पद हासिल किया. कोलम्बो से मार्क्सवादी संसद के 55 वर्षीय दिसानायके मार्क्सवादी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) का प्रतिनिधित्व करते हैं.
उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे सहित प्रमुख नामों को हराया, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे भी शामिल हैं.
माना जाता है कि दिसानायके की जीत श्रीलंका की राजनीति में महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. राष्ट्रपति चुनाव के दो महीने बाद 14 नवंबर को श्रीलंका में संसदीय चुनाव हुए. एनपीपी ने 225 में से 159 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत हासिल की.
भारत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की लेकिन उसे गठबंधन सरकार बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा. लोकसभा में भाजपा की सीटें 353 से गिरकर 293 पर आ गईं. 543 सदस्यीय लोकसभा के लिए चुनाव अप्रैल-जून 2024 तक आयोजित किए गए.
फ्रांस
फ्रांस ने 30 जून को पहले चरण के मतदान और 7 जुलाई को दूसरे चरण के मतदान आयोजित किए, जिसमें नेशनल असेंबली के सभी 577 सदस्यों का चुनाव किया गया. यूरोपीय संसद के चुनावों में अपने गठबंधन को मिली भारी हार के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने विधानसभा को भंग कर दिया.
बता दें कि विधायी दौड़ में तीन प्रमुख गुटों का वर्चस्व था जिसमें मैक्रों का सरकार समर्थक समूह, वामपंथी न्यू पॉपुलर फ्रंट (NFP) और दूर-दराज़ नेशनल रैली (RN) शामिल थे. चुनावों के परिणामस्वरूप संसद में गतिरोध पैदा हो गया, जिसमें नेशनल रैली ने सबसे ज़्यादा सीटें हासिल कीं, लेकिन बहुमत हासिल करने में विफल रही.
प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर के नेतृत्व वाली सरकार दिसंबर की शुरुआत में अपने लागत-कटौती बजट पर विश्वास मत में गिर गई. मैक्रों ने दिसंबर में फ्रांस के प्रधानमंत्री के रूप में फ्रेंकोइस बायरू को नामित किया.
दक्षिण अफ्रीका
रंगभेद की समाप्ति के बाद पहली बार अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस नेशनल असेंबली की अधिकांश सीटें जीतने में विफल रही.
जापान
लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी - जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के दौर में देश पर शासन किया - और उसके गठबंधन सहयोगी कोमिटो ने संसद में अपना बहुमत खो दिया.
बांग्लादेश
बांग्लादेश में 7 जनवरी को संसदीय चुनाव हुए.350 सदस्यीय जातीय संसद के लिए हुए चुनावों में निष्पक्षता को लेकर आलोचना हुई. प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ अवामी लीग (एएल) ने 300 सीटों में से 224 सीटें जीतकर लगातार चौथी बार जीत हासिल की.
हालांकि, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने चुनाव परिणामों का बहिष्कार किया. सरकार पर विपक्षी आवाजों को दबाने और असमानता के गंभीर आरोप भी लगे. चुनाव के बाद, वैश्विक नेताओं की आलोचना के बीच बांग्लादेश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए.
जॉब रेज़र्वेशन्स के खिलाफ छात्रों का आंदोलन जुलाई और अगस्त 2024 में बड़े पैमाने पर विद्रोह में बदल गया, जिसके कारण शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा. नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में मुख्य सलाहकार के रूप में एक अंतरिम सरकार की स्थापना की गई.
पाकिस्तान
8 फरवरी को नेशनल असेंबली के लिए चुनाव हुए. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर प्रतिबंध लगाने के बाद मतदान हुआ.
चूंकि पीटीआई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, इसलिए इसके कई उम्मीदवार निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े, 100 से अधिक सीटें हासिल कीं और विधानसभा में सबसे बड़ा एकल समूह बन गया.
हालांकि, पीटीआई के निर्दलीय उम्मीदवारों के पास सरकार बनाने के लिए अनिवार्य गठबंधन नहीं था. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अगुआई वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी औपचारिक पार्टी बनकर उभरी, उसके बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) 54 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही.
इसके बाद पीएमएल-एन और पीपीपी ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में छोटी पार्टियों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई.
उपरोक्त तमाम बातों को जानकार हमारे लिए इतना तो साफ़ हो गया है कि देश दुनिया के लोग साल 2024 को लेकर भले ही कुछ कह लें. लेकिन जब बात विश्व के तमाम नेताओं की होगी. तो उनके पास ऐसे तमाम किस्से और कहानियां होंगी जो भविष्य में स्वतः इस बात की तस्दीख कर देंगी कि साल 2024 ही वो साल था जिसने दुनिया की तस्वीर बदली.
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