सुख सुविधाओं की अपनी कीमत है. इन्हें कभी मुफ्त में हासिल नहीं किया जा सकता. एक साल से अधिक समय से इजरायल अपने नागरिकों की सुरक्षा का हवाला देकर सीरिया, लेबनान, गाज़ा, ईरान से अलग अलग मोर्चों पर लोहा ले रहा. ऐसे में सवाल हो सकता है कि क्या लगातार आलोचनाओं का सामना कर रहे प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू यही सब यूं ही कर रहे हैं और मुफ्त में कर रहे हैं? जवाब है नहीं. दरअसल 1 जनवरी, 2025 को इजराइलियों को करों, कीमतों और उपयोगिता बिलों में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ा.
ऐसा नहीं है कि नया साल आम इजरायली आवाम के लिए दुखों का पहाड़ लेकर आया. नए साल में कई सुधारों की भी शुरुआत हुई, जिनका उद्देश्य अल्पावधि, मध्यम अवधि और दीर्घावधि में कीमतों को कम करना है.
स्वास्थ्य और ऊर्जा मंत्रालयों के सहयोग से अर्थव्यवस्था मंत्रालय के नेतृत्व में किए गए ये सुधार, सितंबर 2023 में कॉस्ट ऑफ़ लिविंग का मुकाबला करने के लिए मंत्रिस्तरीय समिति के निर्णय पर आधारित हैं.
सरकार का मानना है कि इन बदलावों से नौकरशाही, लागत और समय में कमी आएगी, उत्पादों की विविधता बढ़ेगी, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और अंततः जीवन-यापन की लागत कम करने में मदद मिलेगी.
लेकिन खाद्य, सौंदर्य प्रसाधन और कुछ अन्य बाज़ारों पर मुट्ठी भर समूहों और कंपनियों का दबदबा होने के कारण, विशेषज्ञों इस पशोपेश में हैं कि क्या ये सुधार एक मुल्क के रूप में इजरायल के लिए फलदायी होंगे?
बताया जा रहा है कि सुधारों का एक मुख्य आधार इजरायल और यूरोपीय मानकों को संरेखित करना है. इजरायली उत्पादों की सुरक्षा के लिए दशकों पहले वाले मानकों को पेश किया गया था.
इससे वहां आयातकों के सामने कई बाधाएं खड़ी हुईं, जैसे कि इजरायल में वस्तुओं का परीक्षण करवाना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे इजरायली नियमों के अनुरूप हैं, सरकार कई मौक़ों पर इस बात को बता चुकी है कि जब भी ऐसा होगा, जाहिर है इसका सीधा प्रभाव प्रोडक्ट की लागत या ये कहें कि कीमत पर पड़ेगा.
इजरायल के अर्थव्यवस्था मंत्रालय का अनुमान है कि सुधार से आयातकों को आयात के मूल्य का 8% से 16% तक की बचत होगी, और उम्मीद है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ने पर उपभोक्ताओं को बचत का प्रतिशत और भी अधिक मिलेगा.
सुधार में घरेलू, रसोई, मनोरंजन और खेल उत्पादों के साथ-साथ शिशुओं और बच्चों के लिए खिलौने, पालने, घुमक्कड़ और रसोई की कुर्सियाँ जैसे उत्पाद शामिल हैं.
डायपर और टैम्पोन भी इसमें शामिल हैं. इजरायली अर्थव्यवस्था मंत्रालय के अनुसार, 60% आधिकारिक मानकों को संरेखित किया गया है, जबकि शेष 40% 2027 के अंत तक लागू होने वाले हैं.
ध्यान रहे कि जब से इजरायल युद्ध के मोर्चे पर गया है. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा वहां की स्थानीय जनता को भुगतना पड़ा है. छोटी छोटी चीजों के दाम जिस तेजी से बढ़े हैं. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इसका सीधा असर मुल्क की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है और हालात बद से बदतर हो गए हैं.
बताते चलें कि जिस तरह बीते कुछ समय में इजरायल में कीमतों में इजाफा हुआ है, उसने विपक्ष को भी बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार की आलोचना करने का मौका मिल गया है.
जिक्र पीएम बेंजामिन नेतन्याहू का हुआ है. तो ये बता देना भी बहुत जरूरी हो जाता है कि अपने ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे बेंजामिन बार बार इसी बात को दोहराते हैं कि अपने मुल्क और लोगों की सुरक्षा के लिए वो किसी भी तरह की कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं.
साथ ही पूर्व में ऐसे भी मौके आए हैं, जब उन्होंने लोगों से अपील की है कि हो सकता है कुछ वक़्त के लिए इजरायल थोड़ी बहुत चुनौतियों का सामना करे. ऐसी परिस्थितियों में लोग सरकार का साथ दें और विश्वास रखें कि इजरायल में सरकार जो कुछ भी कर रही है वो आम आदमियों की बेहतरी के लिए कर रही है.
गौरतलब है कि युद्ध के मोर्चे में इजरायल के जाने के बाद शुरुआत में तो लोगों ने सरकार की खूब जमकर तारीफ की. लेकिन अब जबकि युद्ध विशेषकर हमास से लड़ते हुए इजरायल को ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका है. स्वयं इजरायल की जनता भी यही चाहती है कि अब संघर्ष विराम हो जाए.
बहरहाल अलग अलग मोर्चों से इजरायल अपनी सेना को कब वापस बुलाता है? इस सवाल का जवाब तो हमें वक़्त देगा. लेकिन जो इजरायल के हाल हैं भले ही राष्ट्रवाद की आड़ ली गई हो. लेकिन जनता अचानक बढ़ी हुई कीमतों के चलते तिल तिल मरने पर मजबूर है.
देखना दिलचस्प रहेगा कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू लोगों के इस दुःख का हरण करते हैं. या फिर इस बार भी इजरायली आवाम को उनकी तरफ से राष्ट्रवाद की चाशनी में डुबाकर एक नयी दवा दे दी जाती है.
खैर हमने अपनी बातों की शुरुआत बढ़ी हुई कीमतों और लोगों को हो रही परेशानी से शुरू की थी. तो जाते-जाते एक्सपर्ट्स की उन बातों को दोहरा देना भी बहुत जरूरी हो जाता है. जिसमें कहा गया है कि यदि इजरायल कीमतों पर नकेल नहीं कसता. तो वो दिन दूर नहीं जब इसके चलते जनता सड़कों पर होगी और विश्व एक बड़े आंदोलन का साक्षी बनेगा.
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