डीएनए हिंदी: India News- देश में देवी-देवताओं को अपशब्द कहना, पैगंबर के लिए उल्टी बातें कहना, किसी एक खास धर्म को टारगेट करना. ये सब बेहद खतरनाक ट्रेंड है, जो इस समय पूरी पीक पर चल रहा है. यह विरोध किसी भी स्तर का हो सकता है. इसका मकसद महज एक खास वर्ग को निशाना बनाकर राजनीतिक तुष्टिकरण करना है. इसका ही ताजा उदाहरण इस समय सनातन धर्म या हिंदू धर्म का विरोध करना है, जिसे कुछ लोग अपना एजेंडा बनाए हुए हैं. वे सनातन धर्म के समूल नाश की बात कर रहे हैं. पिछले दिनों भी कई बार सनातन धर्म के विषय में कुछ राजनेताओं की ऐसी ही उल्टी-सीधी बातें सुनने को मिल चुकी हैं, जो देश को बेहद खतरनाक स्थिति की तरफ धकेल रही हैं. महज राजनीतिक फायदे के लिए देश को खतरनाक भंवर में ढकेलने के ट्रेंड का डीएनए आज इस रिपोर्ट में आपके सामने पेश किया जा रहा है.

पहले समझ लीजिए उदयनिधि स्टालिन का मामला

Udhayanidhi Stalin तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे हैं. ये तमिलनाडु सरकार में युवा कल्याण मंत्री हैं. हाल ही में चेन्नई में हुए एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. इसमें उदयनिधि की मौजूदगी और उनका बयान, आपत्तिजनक थे. चेन्नई के थेनमपेट में Tamilnadu Progressive Writers Artist Association की तरफ से कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इसका शीर्षक था- 'सनातन ओलिप्पु महानाडू' यानी 'सनातन का समूल नाश करने के लिए सम्मेलन. इस सम्मेलन का मकसद ही सनातन धर्म या हिंदू धर्म का विरोध करना था और ऐसे कार्यक्रम में उदयनिधि का आना ही उनकी हिंदू विरोधी मानसिकता का उदाहरण है. इस कार्यक्रम की शुरुआत में ही उन्होंने आयोजकों को धन्यवाद दिया था. इस दौरान उन्होंने सनातन के समूल नाश का आह्वान भरे मंच से किया.

क्या उदयनिधि का बयान हेट स्पीच नहीं?

उदयनिधि स्टालिन, कोई सड़कछाप नेता नहीं है. वो भारतीय गणतंत्र के एक राज्य Tamil Nadu के मुख्यमंत्री के बेटे हैं और उसी राज्य सरकार में मंत्री भी है. क्या ये मान लिया जाना चाहिए कि उदयनिधि जैसे नेता, किसी खास धर्म के लोगों के नरसंहार की बात कर रहे हैं? क्या ये Hate Speech की श्रेणी में नहीं आना चाहिए? क्या Udhayanidhi Stalin मानते हैं Udhayanidhi Stalin का बयान हिंदू धर्म विरोधी हिंसा को बढ़ावा देने वाला नहीं है? किसी भी जाति, धर्म के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने वाला कोई भी बयान, Hate Speech ही होता है. भले ही वो किसी नेता के बेटे और मंत्री ने ही क्यों ना दिया हो. हिंदू विरोधी कहे जा रहे उदयनिधि के खिलाफ कई हिंदू संगठन और राजनैतिक दल खड़े हो गए हैं.

I.N.D.I.A गठबंधन के ही गले की हड्डी बने उदयनिधि

आपको यहां बताना जरूरी है कि हाल ही में बने विपक्ष के नए गठबंधन I.N.D.I.A के लिए भी हिंदू विरोधी उदयनिधि का बयान, गले की हड्डी बन रहा है. ये वही I.N.D.I.A है, जिसकी tagline है 'जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया'.... क्या अब भी किसी को लगता है कि हिंदू विरोधी Udhayanidhi Stalin के विचार, भारत को जोड़ पाएंगे? जो DMK, नए गठबंधन में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है, उसके मुखिया का बेटा, हिंदू विरोधी बातें करता है. सनातन धर्म के मानने वालों के समूल नाश की बात करता है. क्या ऐसी विचारधारा वाले लोगों के मुंह से जुड़ेगा भारत जैसे शब्द बर्दाश्त किए जा सकते हैं?

I.N.D.I.A के लिए मुश्किल ये है कि वो उदयनिधि के हिंदू विरोधी बयान का ना समर्थन कर पा रहे हैं, ना ही विरोध. खुद को Politicly Correct रखने के लिए इधर उधर की बातें कर रहे हैं, जैसे; आज मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियंक खरगे ने किया. उन्होंने उदयनिधि के बयान का विरोध नहीं किया, बल्कि किस धर्म का विरोध होना चाहिए, इसकी परिभाषा दे दी. उनके मुताबिक, हर उस धर्म का विरोध होना चाहिए, जिसमें भेदभाव होता हो.

उदयनिधि के बयान से भाग रहा I.N.D.I.A गठबंधन

देखा जाए तो विपक्ष के गठबंधन I.N.D.I.A में शामिल अन्य पार्टियों ने उदयनिधि के बयान को गलत नहीं बताया है, बल्कि वो इस बयान से भागते नजर आए. किसी ने भी खुलकर उदयनिधि के बयान को Hate speech नहीं कहा. उदयनिधि भी जानते होंगे कि उन्होंने जो बयान दिया है, वो किसी एक धर्म के खिलाफ है. वो ये भी समझते होंगे उनके बयान के क्या मायने निकाले जाएंगे, लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी यूंही नहीं होता है. 

गहरी साजिश भी हो सकता है उदयनिधि का बयान, इसे ऐसे समझें

जहां तक उदयनिधि के सनातन धर्म विरोधी बयान की बात है, तो यहां भी एक गहरी साजिश हो सकती है. वजह ये है कि वो जिस राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसकी बुनियाद ही सनातन धर्म के विरोध से शुरू हुई है. सनातन धर्म को नष्ट कर देने वाले विचार उदयनिधि स्टालिन की पार्टी की मूल विचारधारा रही है. 'DMK यानि द्रविड़ मुनेत्र कड़गम' पार्टी की विचारधारा के बीज Justice Movement, Self Respect Movement और आगे चलकर आजाद भारत के Dravid Movement में पड़ गए थे. देखा जाए तो ऐतिहासिक रूप से तीनों ही आंदोलन ब्राह्मण विरोधी विचारधारा से निकले थे. इन सभी आंदोलन को समझने के लिए आपको 20वीं सदी की शुरुआत में तमिलनाडु के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को समझना होगा.

3 फीसदी आबादी वाला ब्रह्माण समाज तमिलनाडु में सबसे आगे, यही विरोध का कारण

तमिलनाडु में ब्राह्मण समाज, आबादी का 3 प्रतिशत है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई, सामाजिक स्थिति के मामले में वो सबसे अव्वल थे. ब्रिटिश शासन में ब्राह्मणों ने सबसे पहले अंग्रेजी शिक्षा को अपनाया, जिसकी वजह से, ब्रिटिश राज की नौकरियों में ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा थी. के. नंबी अरुणन की किताब Tamil Renaissance में उन्होंने इससे जुड़े कुछ आंकड़े दिए हैं, जिसके मुताबिक वर्ष 1912 में Madras Presidency में ब्रिटिश नौकरियों जैसे Deputy Collecter, Sub Judge, District Munsif जैसी नौकरियों में ब्राह्मणों का दबदबा था, जबकि तमिलनाडु की कुल आबादी में उनकी संख्या मात्र 3 प्रतिशत थी. इस वजह से समाज में ब्राह्मण विरोधी विचारधारा पनपने लगी. कुछ लोगों ने समाज के मन में ये विचार डाला, कि बड़े-बड़े पदों पर ब्राह्मणों की नियुक्तियां, एक बड़ी साजिश के तहत हो रही हैं, जिसकी वजह से अन्य समाज के लोगों को मौका नहीं मिल रहा है. यही वजह थी कि पूरे तमिलनाडु में Anti Brahmin विचार पनपने लगे.

जस्टिस पार्टी से द्रमुक तक, ब्राह्मण विरोध ऐसे आगे बढ़ा

  • वर्ष 1916 में Madras Presidency में Justice Party का गठन किया गया. इस पार्टी का मूल विचार ब्राह्मणों का ही विरोध करना था. 
  • वर्ष 1925 में E.V.Ramaswamy जिन्हें 'पेरियार' के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने Self Respect Movement की शुरुआत की.
  • पेरियार आंदोलन में अंतरजातीय विवाह हुए, नियम बने कि हिंदू विवाह में ब्राह्मण ना बुलाए जाएं यानी शादियां, पंडितों की मौजूदगी में ना हों.
  • 'पेरियार' को कट्टर ब्राह्मण विरोधी माना जाता है. ब्राह्मणों का विरोध आगे चलकर हिंदू धर्म का विरोध बन गया. वजह ये थी कि ब्राह्मण समाज, हिंदू धर्म का पालन करता था और धर्म से जुड़ा ज्ञान रखता था. 
  • पेरियार ने हिंदू धर्म के खिलाफ भी कई लेख लिखे हैं. उन्होंने दलितों और महिलाओं के शोषण का कारण सनातन हिंदू धर्म को बताया. यही नहीं पेरियार ने आगे चलकर ना सिर्फ हिंदू धर्म बल्कि हिंदी भाषा का भी विरोध किया.
  • पेरियार ने द्रविड संस्कृति को आर्य संस्कृति से बचाने की भी बातें कहीं. इससे उनका इशारा उत्तर भारतीय लोगों के विरोध की तरफ रहा.
  • पेरियार का यह विरोध इतना था कि आजाद भारत में उन्होंने एक स्वतंत्र द्रविड़ देश 'द्रविड़ नाडू' की भी मांग की थी.
  • जून 1931 में पेरियार ने अपने अखबार कुडियारासू में लिखा था कि 'अगर दलित और गरीबों को समाज में बराबरी चाहिए तो इसके लिए हिंदू धर्म का विनाश जरूरी है.'
  • 1944 में पेरियार ने Justice Party और Self Respect Movement को मिलाकर 'द्रविड़र कड़गम' नाम से नई पार्टी गठित की.
  • इस राजनीतिक पार्टी के मुख्य नेता पेरियार ही थे. ये पार्टी भी ब्राह्मण विरोधी, हिंदी विरोधी,आर्य संस्कृति विरोधी और कांग्रेस विरोधी भी थी.
  • पेरियार का मानना था कि कांग्रेस पार्टी में ब्राह्मणों का दबदबा है. इसलिए वो कभी भी द्रविड़ समुदाय के पक्ष में नहीं सोचेगी.
  • तमिलनाडु के लेखक सामी चिदंबरनार ने पेरियार की Biography 'तमिलर थलाईवर' में भी उनके ब्राह्मण विरोध का जिक्र किया है.
  • इस Biography में पेरियार के कई लेख हैं, जिनमें ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसा बढ़ाने और मंदिरों में जाकर मूर्तियां तोड़ने का आह्वान है. 

आजादी के साथ ही फूट पड़ गई थी पेरियार के आंदोलन में

भारत की आजादी के तत्काल बाद 1949 में ही पेरियार के आंदोलन में फूट पड़ गई थी. उनके मुख्य सहयोगी सीएन अन्नादुरई ने अलग राजनीतिक विचारधारा की वजह से एक नई पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा गया 'द्रविड़ मुनेत्र कड़गम'. दरअसल आजादी के बाद पेरियार, अलग द्रविड़ देश 'द्रविड़ नाडु' की मांग कर रहे थे. इसलिए वो भारतीय चुनावों में हिस्सा नहीं लेना चाहते थे, लेकिन सीएन अन्नादुरई, भारतीय आम चुनावों में हिस्सा लेने के पक्ष में थे. इसलिए उन्होंने इसके लिए अलग पार्टी 'द्रविड़ मुनेत्र कड़गम' बनाई. पेरियार इस बात के भी पक्षधर थे कि तमिलनाडु केवल तमिल बोलने वाले लोगों का है. इसीलिए वो अन्य भाषाओं, खासकर हिंदी के विरोधी थे.

श्रीराम की प्रतिमा रावण की तरह जलाने तक की दी थी धमकी

पेरियार ने 1953 में हिंदू धर्म के देवी देवताओं की मूर्तियां तोड़कर अपना विरोध जताया था. 1956 में पेरियार और उनके समर्थकों ने मद्रास के मरीना बीच पर भगवान श्रीराम और माता सीता की तस्वीरें जलाने की कोशिश की थी, जिसे पुलिस ने रोक लिया था. पेरियार की पत्नी ने 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री के तौर पर रामलीला में उनकी उपस्थिति द्रविड़ों का अपमान है. अगर उन्होंने आगे ऐसा किया तो द्रविड़ समाज, श्रीराम की प्रतिमा वैसे ही जलाएगा, जैसे रावण की प्रतिरूप जलाते हैं.

DMK को सत्ता मिलने के बाद बदल गया गणित

वर्ष उन्नीस सौ सड़सठ में तमिलनाडु में कांग्रेस को हराकर DMK सत्ता में आ गई और इस सरकार में अन्नादुरई, मुख्यमंत्री बने. हालांकि 2 वर्ष के बाद 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद एम करुणानिधि DMK के नए नेता और सीएम बन गए. आगे चलकर 1972 में तमिल सिनेमा के सुपरस्टार MG Ramachandran, DMK से अलग हो गए. उन्होंने AIDMK नाम से एक नई पार्टी बना ली. वैचारिक रूप से AIDMK ने DMK की ब्राह्मण विरोधी और हिंदी विरोधी विचारधारा पर नरम रुख अपनाया. उन्होंने सामाजिक उत्थान पर ज्यादा ध्यान दिया. 1977 में MGR, तमिलनाडु की सत्ता में आ गए. इसके बाद 1987 में अपने निधन तक वो अपराजित रहे. 1967 से ही कोई भी राष्ट्रीय दल, तमिलनाडु में सरकार नहीं बना पाया है. तमिलनाडु की सत्ता DMK और AIDMK के बीच ही बदलती रही है यानी एक तरह से तमिलनाडु की राजनीति ब्राह्रण विरोध या कहे कि हिंदू धर्म के विरोध करने या ना करने वालों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है. उदयनिधि का बयान भी इस राजनीति के आसपास ही दिखता है. उनका बयान उनकी पार्टी की मूल विचारधारा से मिलता जुलता नजर आता है.

वोटबैंक से समझिए उदयनिधि के बयान को

उदयनिधि हों या DMK के अन्य नेतागण, अगर वो ब्राह्मण विरोध या सनातन धर्म के विरोध में कुछ बोल रहे हैं, तो ये उनकी राजनीतिक मजबूरी भी हो सकती है. दरअसल तमिलनाडु में 23.7 प्रतिशत दलित वोटर हैं, और 45.5 प्रतिशत पिछड़ी जाति के वोटर हैं. एक तरह से इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं को रिझाने के लिए ही इस तरह से बयान सामने आते रहे हैं. 

उदयनिधि ही नहीं कई और भी इसी राह पर

यहां बात सिर्फ उदयनिधि की नहीं है. अपनी राजनीति चमकाने के लिए कई लोग हैं, जो सनातन धर्म का खुलकर विरोध करते हैं. इनमें से एक हैं दक्षिण भारतीय फिल्म कलाकार प्रकाश राज. 3 सितंबर को प्रकाश राज ने एक ट्वीट किया था, इसमें इन्होंने पेरियार और अंबेडकर की फोटो लगाकर सनातन धर्म का पालन करने वालों का मज़ाक बनाया था. वो एक तरह से शब्दों का खेल रचकर, सनातन धर्म को #anti humans बता रहे हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी हाल ही में हिंदू धर्म को एक धोखा बताया था.

दरअसल राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए किसी खास धर्म को टारगेट करना, हमारे देश के कुछ राजनेताओं का पसंदीदा खेल है. अगले साल देश में आम चुनाव हैं. इस तरह के कई बयान, आगे भी आपको सुनने को मिल सकते हैं. इस तरह के बयान, देश के लोगों के बीच अलगाव पैदा करते हैं. फूट डालो राज करो की नीति अंग्रेजों की दी हुई है. समाज के दो वर्गों और जातियों में अलग-अलग वजहों से फूट डालकर, उनके वोट हासिल करना भी, इसी नीति का हिस्सा है. एक भारतीय नागरिक होने की वजह से हम सभी को इस तरह के नेताओं और उनके बयानों के पीछे के मकसद को भी समझना चाहिए.

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DNA TV Show: उदयनिधि स्टालिन का सनातन विरोध, राजनीतिक तुष्टिकरण के खतरनाक ट्रेंड
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