DNA TV Show: आज हम बात करेंगे देश के हर उस माता-पिता की, जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. आज के समय में प्राइवेट स्कूलों में बच्चे को पढ़ाना माता पिता के लिए सबसे मुश्किल टास्क बन गया है. भारत में अभिभावक अपनी सालाना कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच्चे की पढ़ाई-लिखाई पर खर्च कर रहे हैं, जिससे मिडिल क्लास की SAVING लगातार घटती जा रही है. क्या आप जानते हैं कि एक अभिभावक अपने बच्चे की नर्सरी से कॉलेज तक की पढ़ाई पर कितना खर्च करता है? चलि हम आपको बताते हैं. साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा कैसे मिडिल क्लास पर सबसे बड़ा 'बोझ' बनती जा रही है. ये विश्लेषण सीधा आपसे, आपकी कमाई से और आपके बच्चों की पढ़ाई से जुड़ा है.

पहले याद दिलाते हैं आपको पिछले साल की ये रिपोर्ट

DNA में हमने वर्ष 2023 मे आपको एक रिपोर्ट दिखाई थी. हमने इस रिपोर्ट में दिखाया था कि कैसे भारत के प्राइवेट स्कूल कॉपी-किताबों के नाम पर अभिभावकों को लूट रहे हैं और उन पर पड़ने वाला वित्तीय बोझ रॉकेट की रफ्तार से बढ़ा रहा हैं. आज हम आपको दिखाएंगे कि कैसे भारत में अभिभावक अपनी सालाना कमाई का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ एक बच्चे की पढ़ाई-लिखाई पर खर्च कर देता है. इसको समझने से पहले हम आपको ET ONLINE Research के कुछ आंकड़े दिखाते हैं, जिसे देखकर आपको पता चलेगा कि आपके और मेरे जैसा एक आम भारतीय कैसे बच्चे की पढ़ाई के वित्तीय बोझ के नीचे दब चुका है. ET ONLINE Research के मुताबिक-

  • आज के समय में एक बच्चे की प्राइवेट स्कूल में नर्सरी से लेकर 12वीं तक की शिक्षा पर अभिभावकों के औसतन 30 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं.
  • आज के समय में बच्चे की प्राइवेट स्कूल में नर्सरी से लेकर निजी कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक अभिभावकों के 1 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो रहे हैं.
  • एक अभिभावक जिनका बच्चा प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा है, उन्हे उसकी पढ़ाई पर हर वर्ष 2 लाख 14 हजार रुपए से अधिक खर्च करना पड़ा रहा है.

ये आंकड़े हैरान करने वाले है. इसे देखकर समझा जा सकता है कि आज के दौर में बच्चों की पढ़ाई हर माता-पिता के लिए कितना मुश्किल टास्क है और ये सिर्फ प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे एक बच्चे का खर्च है. अगर दो बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं तो ये खर्च सीधा डबल हो जाता है.

पढ़ाई अब बड़ा 'कारोबार' है
भारत में पढ़ाई एक कारोबार है और प्राइवेट स्कूलों का ये कारोबार खूब फल-फूल रहा है. लेकिन आप और हम जैसे माता पिता इस टेंशन में हैं कि फीस कैसे भरेंगे. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय 98 हजार 374 रुपए है यानी भारत में प्राइवेट स्कूलों की औसतन सालाना फीस भारत की प्रति व्यक्ति औसतन आय के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है.

सरकारी स्कूल से ज्यादा प्राइवेट स्कूल की पढ़ाई की धारणा
भारत में पढ़ाई को लेकर एक धारणा बनी हुई है कि सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट और महंगे स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती है. इसलिए ज्यादातर नौकरी पेशा लोगों की ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ें, लेकिन एक प्राइवेट स्कूल में बच्चे को पढ़ाना नौकरीपेशा लोगों के लिए Everest पर चढ़ने के बराबर है. Research Agency Glassdoor के मुताबिक-

  • भारत में कुल नौकरी करने वालों की सालाना औसतन सैलरी 3 लाख 83 हजार रुपए है.
  • नौकरीपेशा लोगों की कमाई का 56% हिस्सा सिर्फ बच्चे की प्राइवेट स्कूल में महंगी स्कूली शिक्षा पर खर्च हो रहा है.
  • इतना ही नहीं भारत का मिडिल क्लास अपनी कुल कमाई का 25% हिस्सा EMI पर खर्च करता है.

इस हिसाब से देखा जाए तो नौकरीपेशा लोगों की कमाई का 81% हिस्सा सिर्फ बच्चे की पढ़ाई और EMI पर खर्च होता है. बाकी का हिस्सा घर की अन्य जरूरतों पर खर्च होता है.

यह आंकड़े भी देखने की जरूरत

  • भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश में वर्ष 2020 में बचत की दर GDP के मुकाबले 11.5 प्रतिशत थी.
  • आज यानि वर्ष 2024 में बचत दर GDP के मुकाबले गिरकर 5.1 प्रतिशत ही रह गई है.

यह अंतर भी देखना है जरूरी

भारत में स्कूली शिक्षा बेहद महंगी हो गई है. सरकार ने इसको कंट्रोल करने के लिए कदम भी उठाए हैं, लेकिन इसके बावजूद आज भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना करोड़ों अभिभावकों के लिए एक सपना ही है.

  • भारत में प्राइवेट स्कूल हर वर्ष औसतन 10 से 12 प्रतिशत फीस बढ़ाते हैं.
  • INDIA INC की रिपोर्ट बताती है कि भारत में नौकरीपेशा प्राइवेट कर्मचारियों की हर वर्ष सैलरी औसतन 9.8% ही बढ़ती है.

इस हिसाब से देखें तो भारत में किसी नौकरीपेशा की जितनी तनख्वाह बढ़ती है, उससे ज्यादा स्कूल की फीस बढ़ जाती है. भारतीय रिजर्व बैंक के सालाना DATA के मुताबिक, भारत में Education Loan Sector हर वर्ष 20 प्रतिशत की वृद्धि से बढ़ रहा है और Education Loan लेने वालों की संख्या में भी इसी हिसाब से बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में आज वक्त की जरूरत यही है कि भारत सरकार स्कूलों की फीस पर लगाम भी लगाए ताकि अभिभावकों की जेब में भी पैसा बचे और उनका बोझ कुछ कम हो पाए.

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पढ़ाई के खर्च के बोझ में दबे भारतीय, प्राइवेट स्कूलों में बच्चे को पढ़ाना हुआ मु
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DNA TV Show: पढ़ाई के खर्च के बोझ में दबे भारतीय, प्राइवेट स्कूलों में बच्चे को पढ़ाना हुआ मुश्किल काम

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