डीएनए हिंदी: Delhi Air Pollution Updates- किसी देश में भले ही मौसम तीन होते हों, लेकिन भारत में 4 तरह के मौसम होते हैं. गर्मी, बारिश और सर्दी के बारे में तो आप जानते ही हैं. सर्दियों में देश के कई हिस्सों में एक चौथा मौसम भी आता है. इसे कहते हैं मौसम प्रदूषण का, इसे आप पराली जलाने का मौसम भी कह सकते हैं. वातावरण में हल्की सी ठंडक बढ़ी, तो हवा में कोहरे के तौर पर SMOG नजर आने लगा है. अगर आपको भी घर से बाहर निकलते ही खांसी आने लगे, तो उसे जुकाम मत समझिएगा वो प्रदूषण का साइड इफेक्ट है. सीने में जकड़न और आंखों में जलन, प्रदूषण के इस मौसम की पहचान है. प्रदूषण के मामले में दिल्ली के हालात, दुनिया के अन्य देशों की राजधानियों से बुरे हो जाते हैं. प्रदूषण को समस्या मानने वाले बयान, रिसर्च वगैरह भी इस मौसम में दिखाई देने लगते हैं. नेता भी इस मौसम में प्रदूषण की समस्याओं पर बड़े बड़े भाषण देने लगते हैं. प्रदूषण के इस मौसम में सरकार पर, प्रदूषण कम ना कर पाने का ठीकरा फोड़ने की घड़ी बस आने ही वाली है.
दिल्ली को हर साल मिलता है 'पराली' का बहाना
हर साल इस मौसम में दिल्ली-एनसीआर भी वायु प्रदूषण की मार झेलता है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर के लोगों को आज तक इससे कोई राहत नहीं मिली है. लोगों को प्रदूषण नियंत्रित करने के नाम पर दोषारोपण वाले बहाने मिलते हैं. इनमें सबसे आसान बहाना है कि पराली का जलाया जाना. ऐसा दावा किया जाता रहा है कि पंजाब और हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली का धुआं, दिल्ली एनसीआर को प्रदूषण के तौर पर परेशान करता है, लेकिन देखा जाए तो अभी तक पराली का धुआं दिल्ली-एनसीआर तक नहीं पहुंचा है और इस बार तो दीपावली के आने में भी अभी 10 से ज्यादा दिन बाकी हैं, यानी पटाखों की वजह से भी प्रदूषण नहीं है.
सर्दियों में ही आता है प्रदूषण या बात है कुछ और
दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर में प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है. दरअसल गर्मी के मौसम में प्रदूषित हवा का घनत्व कम होता है, जिससे प्रदूषित गर्म हवा, वायुमंडल के ऊपरी सतह तक पहुंच जाती है. इस वजह से गर्मी के मौसम में प्रदूषण कम नजर आता है, लेकिन जैसे ही सर्दियों का मौसम शुरू होता है. वायुमंडल में तापमान कम होता है तो प्रदूषित वायु का घनत्व बढ़ जाता है, जिसकी वजह से प्रदूषण हवा पृथ्वी के वायुमंडल की निचली सतह पर फंसकर रह जाती है. इसके अलावा इस मौसम में हवा कम चलती है, जिसकी वजह से प्रदूषण ठहर सा जाता है.
इस बार अक्टूबर में कम बारिश भी बनी है परेशानी
आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में हवाएं चलती हैं और कई मौकों पर बारिश भी हो जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिखा है. इसकी वजह से भी पराली का धुआं ना आने के बावजूद वायु प्रदूषण दिल्ली एनसीआर के लोगों को परेशान कर रहा है. इस बार अक्टूबर महीने में केवल एक दिन बारिश हुई है, वो भी बहुत कम केवल 5.4 मिमी. पिछले वर्ष के मुकाबले ये बहुत कम है. वर्ष 2022 के अक्टूबर महीने में 6 दिन में 129 मिमी बारिश हुई थी. इसी तरह से वर्ष 2021 के अक्टूबर में कुल 7 दिनों में 123 मिमी बारिश हुई थी.
प्रदूषण अक्टूबर-नवंबर नहीं पूरे साल की समस्या
इतना तो अब आप समझ ही गए होंगे कि अगर प्रदूषण को आप वार्षिक समस्या मानते हैं तो आप गलत हैं. दरअसल जो प्रदूषण, अक्टूबर के बाद नजर आता है, वो पहले से ही हमारे वायुमंडल में ही इकट्ठा हो रहा होता है. इस प्रदूषण को आप दिल्ली का 'कर्म' समझिए, जो अक्टूबर में लौटकर वापस आता है यानी दिल्ली में जितनी प्रदूषित हवा बनती और फैलती है, वो अक्टूबर में ठंड के बढ़ने के साथ ही यहां फंस जाती है. इससे प्रदूषण के हालात खतरनाक स्तर पर पहुंच जाते हैं.
कितना खतरा है हमारी जान को इस प्रदूषण से?
वायु प्रदूषण से लोगों पर क्या असर पड़ता है, इसको लेकर AIIMS समेत दिल्ली के 4 अस्पतालों ने एक स्टडी की है. इस स्टडी से पता चला है कि वायु प्रदूषण की वजह से केवल सांस के मरीजों को ही नहीं, बल्कि कई अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों को भी खतरा रहता है. ये स्टडी दिल्ली के All India Institute Of Medical Science, National Institute Of TB, Patel Chest Institute और Kalawati Saran Hospital ने मिलकर की है. इस Study में मुख्य बात ये पता चली कि प्रदूषण, डायबिटीज़ या दिल की बीमारी वाले मरीजों के लिए बड़ा खतरा है.
- स्टडी में पता चला है कि आम दिनों के मुकाबले प्रदूषण बढ़ने पर AIIMS की इमरजेंसी में मरीजों की संख्या 53 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.
- प्रदूषित हवा में सांस लेकर Emergency की स्थिति में पहुंचने वाले 68 प्रतिशत मरीज, ऐसे थे जिन्हें कोई दूसरी बीमारी भी थी.
- प्रदूषित हवा के कारण बीमार होकर सांस से जुड़ी परेशानियों के कारण अस्पताल पहुंचे मरीजों की संख्या 20 प्रतिशत ही थी.
- प्रदूषण से पीड़ित मरीजों में से 95 प्रतिशत को सांस लेने में दिक्कत आ रही थी, जबकि 74 प्रतिशत मरीज ऐसे थे जिन्हें तेज खांसी थी।
- स्टडी में पता चला है कि गाड़ियों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड, मरीजों के फेफड़ों और सांस की नली में बीमारियां पैदा कर रही है.
- हवा में मौजूद Particulate Matter (PM) यानी धूल के कण भी हवा में घुलकर,सांस की नली में सूजन व गले में खराश बढ़ा रहे हैं.
- दिल्ली के कुछ खास इलाकों जैसे ITO, ISBT और आनंद विहार से वायु प्रदूषण से परेशान मरीज बड़ी संख्या में अस्पताल आते हैं.
- दिल्ली के प्रदूषण का ज्यादा शिकार होने वाले मरीजों के ये इलाके वे हैं, जहां बसों की आवाजाही और ट्रैफिक सबसे ज्यादा होता है.
दिल्ली के 4 बड़े अस्पतालों ने ये स्टडी 69,400 मरीजों पर की है, जो जुलाई 2017 से लेकर फरवरी 2019 के बीच की गई थी. इस स्टडी को देखने के बाद डॉक्टर्स ने लोगों को सलाह दी है कि वो अगर दिल्ली में रह रहे हैं तो फिलहाल उन्हें मॉर्निग वॉक बंद कर देनी चाहिए. शाम को टहलना भी फिलहाल खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर्स, लोगों को N95 मास्क लगाने की सलाह भी दे रहे हैं.
दिल्ली में प्रदूषण बन गया है कितना बड़ा संकट?
दिल्ली गैस चैंबर बन गई है, लोगों के लिए सांस लेना तक मुश्किल हो रहा है. आंखों में जलन की समस्या से लोग जूझ रहे हैं. वैसे सर्दियां शुरू होते ही प्रदूषण की समस्या नई नहीं है, लेकिन चिंता की बात ये, कि साल दर साल प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी हो रही है. ये खतरा कितना बड़ा है, इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेडिकल जर्नल लांसेट के मुताबिक, वर्ष 2019 में प्रदूषण की वजह से भारत में 16 लाख 70 हज़ार लोगों की मौत हुई, जो इस वर्ष हुई कुल मौत का 17.8 फीसदी था. वर्ष 2019 के बाद से दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में इजाफा ही हुआ है, इसलिए हालात चिंताजनक बने हुए हैं.
क्या चीन से सीख सकता है भारत?
ऐसा नहीं है कि प्रदूषण सिर्फ भारत की समस्या है और ये सिर्फ दिल्ली में होता है. दक्षिण एशिया में नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ भारत सबसे प्रदूषित देशों में शामिल है, लेकिन एक दशक पहले तक चीन, दक्षिण एशिया में सबसे प्रदूषित देश था और बीजिंग तो दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषित शहर हुआ करता था. चीन में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर थी कि सर्दियों में Smog से आसमान नजर आना बंद हो जाता था. चीन में कई दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिये जाते थे. कई शहरों में वायु प्रदूषण के चलते सूरज तक नहीं दिखता था. बीजिंग की सड़कों पर प्रदूषण की वजह से हर कोई मास्क पहनकर घूमता था. स्थिति कितनी गंभीर थी, इसी बात से अंदाजा लगाइए कि लोग घर की खिड़की दरवाजे तक बंद रखते थे. Water purifier की तरह घरों में Air Purifier लगाने लगे थे. वर्ष 2013 में चीन प्रदूषण की वजह से दुनिया में बदनाम हुआ.
चीन के प्रदूषण पर एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक-
- जनवरी 2013 में बीजिंग में PM यानी Particulate Matter 2.5, 101 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया था.
- PM 2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर अच्छा माना जाता है, लेकिन ये 4 गुना तक ज्यादा था.
- चीन ने 2013 में
- चीन में वर्ष 2022 में PM 2.5, 31 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहा.
- चीन ने Pollution को काफी हद तक कंट्रोल करने में कामयाबी हासिल की.
- प्रदूषण कम होने से चीन में प्रति व्यक्ति औसत आयु में 2 वर्ष बढ़ोतरी हुई है.
एक दशक पहले तक प्रदूषण की वजह से चीन में प्रति वर्ष 5 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती थी, इसमें भी अब कमी आई है. चीन प्रदूषण का स्तर कम करने में इसलिए कामयाब हो पाया कि उसने प्रदूषण के विरुद्ध, युद्ध स्तर पर काम किया. भारत को प्रदूषण की गंभीर समस्या को देखते हुए चीन से काफी कुछ सीखने की जरूरत है.
चीन जैसा एयर क्वालिटी एक्शन प्लान बनाए भारत
चीन ने वर्ष 2013 में नेशनल एयर क्ववालिटी एक्शन प्लान लागू किया. चीनी सरकार ने इसके तहत करीब 19 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं बनाईं और अमल शुरू कर दिया. चीन ने एक तरफ प्रदूषण फैलाने वाली चीजों पर लगाम लगाई तो दूसरी ओर सार्वजनिक एयर प्यूरिफायर लगाकर हवा को साफ करने की कोशिशें तेज की.
- कारखानों को उत्तर चीन और पूर्वी चीन से दूसरे स्थानों पर ले जाया गया.
- प्रदूषण कम करने के लिए कई कारखानों को बंद ही कर दिया गया.
- कारखानों और बाकी जगह कोयले का उपयोग कम किया गया.
- वर्ष 2016 में प्रदूषण फैलाने पर कारखानों पर 150 करोड़ का जुर्माना वसूला.
- बीजिंग, शंघाई और गुआंगझोऊ में सड़कों पर कारों की संख्या कम की गई.
- वर्ष 2017 में चीन ने नई कारों का कोटा 1,50,000 तक सीमित किया.
- इनमें से 60,000 कारें इलेक्ट्रिक होने की शर्त रखी गई.
- वर्ष 2018 में नई कारों का कोटा 1.50 लाख से घटाकर 1 लाख किया.
- चीन ने बेकार वाहनों को सड़कों से हटाना शुरू किया.
- कोल आधारित नए प्लांट्स को मंजूरी देनी बंद कर दी गई.
- चीन ने एयर प्यूरीफायर पर जोर देना शुरू किया.
- चीन ने युद्ध स्तर पर देश के अलग-अलग हिस्सों में वृक्षारोपण किया.
- बड़े शहरों में लौ कॉर्बन पार्क बनाए गए यानि वो इलाके जो कम कॉर्बन का उत्सर्जन करें.
बीजिंग में 10 साल पहले तक 40 लाख घरों, स्कूलों, अस्पतालों और ऑफिस में कोयले का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता था. ठंड से बचने का कोयला सबसे जरूरी जरिया था, लेकिन चीनी सरकार ने एक झटके में इस पर रोक लगा दी. इससे लोगों को दिक्कत तो बहुत हुई. इसकी जगह घरों को नेचुरल गैस या बिजली हीटर मुहैया कराए गए, लेकिन प्रदूषण से बीजिंग के लोगों का जो दम घुट रहा था, उससे उन्हें राहत मिल गई. इसलिए चीन से सीखकर भारत को भी प्रदूषण का परमानेंट इलाज करना चाहिए, और ऐसा मजबूत इच्छाशक्ति से संभव होगा, ना कि एक दूसरे पर आरोप लगाकर और जिम्मेदारी से बचकर.
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