डीएनए हिंदी: Delhi Air Quality Updates- दिल्ली और प्रदूषण, अक्टूबर-नवंबर का महीना आते ही हर साल ये दोनों शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची लगने लगते हैं. सितंबर के अंत तक काले-काले बरसाती बादलों में छिपा दिल्ली का आसमान अक्टूबर-नवंबर में सांस लेना मुश्किल कर देने वाले जहरीले काले धुएं के गुबार में गायब हो जाता है. यह दिल्ली का एक ऐसा सच है, जिससे कोई मुंह नहीं फेर सकता. इसके बावजूद प्रदूषण को खत्म करने के दावे ऐसे हैं, कि उन पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है. असल में प्रदूषण खत्म करने के नाम पर जुबानी और कागजी कार्रवाई ही होती है. हकीकत के धरातल पर प्रदूषण के इस 'सालाना पर्व' से निजात दिलाने की कोई कवायद पिछले कई दशक में नहीं दिखाई दी है. हर साल अक्टूबर से बढ़ने वाले प्रदूषण पर बस Meetings होती हैं, और कुछ नहीं. ऑड- ईवन, SMOG TOWER पेट्रोल-डीजल कारों को दिल्ली में ना आने देना, ये ऐसे उपाय हैं, जिनसे प्रदूषण की सेहत पर खास असर नहीं पड़ता है. ठोस कार्रवाई के नाम पर GRAP जैसे नियम बनाए गए हैं। GRAP यानी GRADED RESPONSE ACTION PLAN, जिसके तहत दिल्ली में कुछ खास प्रतिबंध लागू कर दिए जाते हैं.
इस साल GRAP में लागू हुए हैं ये नियम
- ये नियम Commission For Air Quality Management in National Capital Region And Adjoining Areas जारी करता है। इस बार के नियमों में-
- ट्रकों का दिल्ली में आना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. केवल LNG,CNG, या बिजली से चलने वाले ट्रकों या जरूरी सामान लाने वाले ट्रकों को अनुमति दी गई है.
- दूसरे प्रदेशों से आने वाले हल्के व्यवसायिक वाहनों पर प्रतिबंध है. केवल EV,CNG और BS6 इंजन वाले हल्के व्यवसायिक वाहनों और जरूरी सामान लाने वाले वाहनों को अनुमति है.
- दिल्ली में डीजल से चलने वाले भारी वाहनों पर प्रतिबंध है. जरूरी सामान ले जाने की छूट है.
- किसी भी तरह की इमारत के निर्माण कार्य पर रोक है.
- स्कूलों-कॉलेजों की छुट्टियां घोषित करने और कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम देने का भी प्रावधान है.
क्या सच में बंद हो गई है दिल्ली में ट्रकों की एंट्री?
देखा जाए तो GRAP-4 नियम के तहत, दिल्ली में डीजल से चलने वाले वाहनों खासकर ट्रकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाता है. दिल्ली सरकार भी गर्व के साथ, ये दावा करती है कि GRAP-4 के नियम लागू होने के बाद प्रदूषण पर रोक लग जाएगी, क्योंकि ट्रकों की एंट्री कम हो जाएगी. लेकिन क्या सच में दिल्ली में ट्रकों की आवाजाही बंद हो चुकी है? हमने GRAP-4 नियमों और ट्रकों की दिल्ली में आवाजाही पर एक रियलिटी चेक किया है. इस रियलिटी चेक की रिपोर्ट आपको देखनी चाहिए.
दिल्ली सरकार ने कल सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि प्रदूषण के बिगड़ते हालात की गंभीरता को वो समझते हैं. यहीं नहीं, दिल्ली सरकार ने दावा किया है कि उन्होंने GRAP-4 नियम लागू किया है, जिसके तहत दिल्ली में बड़े डीजल वाहनों की एंट्री प्रतिबंधित है. खासकर डीजल के ट्रकों की. दिल्ली सरकार का दावा है कि जरूरी सामान लाने वाले ट्रकों को छोड़कर किसी को भी दिल्ली में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है, लेकिन इस दावे की सच्चाई कुछ अलग है.
जानिए अलग-अलग इलाके में क्या दिखा
सुबह सुबह आपको दिल्ली की हवा में जो SMOG दिखता है, उसमें एक बड़ा हिस्सा, उन वाहनों का भी है, जो रातभर दिल्ली में आते जाते रहते हैं. डीजल से चलने वाले ट्रकों को प्रतिबंधित करने के मामले में, हमने दिल्ली की अलग सीमाओं पर जाकर, ये पता लगाया, कि वहां क्या हाल है.
दिलशाद गार्डन बॉर्डर: यूपी से लगती एक सीमा है. देखने में ऐसा लगता है जैसे दिल्ली के केवल इसी एक बॉर्डर पर ढिलाई बरती गई होगी, लेकिन ऐसा नहीं है. कुछ यही हाल साहिबाबाद से लगती सीमा का भी है.
साहिबाबाद बॉर्डर: ऐसा नहीं है कि ट्रांसपोर्टर्स को कोई जानकारी नहीं है. उन्हें नियमों की जानकारी है. वो काफी हद तक इसका पालन भी कर रहे हैं, लेकिन जो ट्रक, अन्य प्रदेशों से आ रहे हैं, उनको रोकने वाला कोई नहीं है.
यूपी से सटा गाजीपुर बॉर्डर: आप सोचिए कि दिल्ली में ऑड ईवन जैसे नियम लगाकर, आम जनता को ये दिखाने की कोशिश की जाती है कि सामान्य कार, प्रदूषण के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार है. इस नियम के नाम पर आपमें से कई लोगों ने हजारों रुपये के चालान भी भरे होंगे. बावजूद इसके दिल्ली सरकार डीजल से चलने वाले इन ट्रकों को प्रतिबंध के बावजूद दिल्ली में आने से नहीं रोक रही है.
सिंघु बॉर्डर: यहां से भी हर दिन सैकड़ों ट्रक दिल्ली में आते हैं. दिन में तो इन ट्रकों को बॉर्डर पर रोक दिया जाता है, लेकिन रात होते ही, इन ट्रकों को दिल्ली में आने की छूट दे दी जाती है. आप सोचिए कि दिल्ली में AQI 400 से 500 चल रहा है, प्रदूषण कम करने के नाम पर दिल्ली सरकार गंभीर कार्रवाई करने का दम भर रही है, लेकिन सच्चाई इस दावे से बिल्कुल अलग है. सिंघु बॉर्डर के अलावा हमारी टीम, गुड़गांव दिल्ली सीमा पर भी मौजूद रही. वहां के हालात भी अलग नहीं थे.
क्या कहते हैं ट्रांसपोर्टर
ट्रांसपोर्टर्स का कहना है कि यूपी से लगने वाली सीमाओं पर कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है. डीजल से चलने वाले बड़े ट्रक आराम से दिल्ली में दाखिल हो रहे हैं. भले ही दिखावटी कार्रवाई के नाम पर GRAP-4 लागू होने की बात कही गई हो, लेकिन इस नियम का पालन कहीं नहीं हो रहा हैं.
दिल्ली में हर दिन 70 से 80 हजार ट्रक आते हैं. इनमें सीएनजी से चलने वाले ट्रक भी होते हैं, और डीजल से चलने वाले ट्रक भी. प्रदूषण की वजह से डीजल वाले ट्रकों पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन फिलहाल ये प्रतिबंध कागजी है. दिल्ली में घुसने वाले ट्रकों को रोकने के लिए कोई नहीं है. बाकायदा ट्रक चालक, टोल पर पैसे चुकाकर, बिंदास दिल्ली में घुस रहे हैं.
इस रिपोर्ट को देखकर आपको अंदाजा लग गया होगा कि समस्या कहां है. क्या दिन में प्रदूषण फैलाने वाले ट्रकों का रात में आना प्रदूषण नहीं करता है?
सरकार ही उठा रही अपने अधिकारियों पर सवाल
हम जब सवाल करते हैं तो हमें उम्मीद होती है कि इस पर सरकार गंभीर कदम उठाएगी, लेकिन अफसोस इस तरह की लापरवाही पर हमें जो जवाब मिला है, वो निराशजनक होता है. दिल्ली के Transport Minister कैलाश गहलोत के पास रात के वक्त ट्रकों की बेरोकटोक आवाजाही से जुड़े सवाल पहुंचे, तो उन्होंने पत्र के जरिए अपनी प्रतिक्रिया दी. पत्र में वो लिखते हैं कि दूसरे राज्यों के प्रदूषण फैलाने वाले वाहन रात के समय दिल्ली में प्रवेश करते हैं. उन्होंने ये भी लिखा कि सीमाओं पर कोई चेकिंग नहीं हो रही है. अपने पत्र के जरिए वो अधिकारियों से अपील कर रहे हैं कि वो प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को दिल्ली में आने से रोकें. अब सवाल ये है कि प्रदूषण रोकने के लिए GRAP-4 लागू होने के बावजूद, अगर ट्रक दिल्ली में आ रहे हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है, और अगर अधिकारी चेकिंग नहीं कर रहे हैं, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है?
Winter नहीं अब Pollution Vacations
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं, grap-4 लागू है, सड़कों पर पानी का छिड़काव हो रहा है. factories बंद हैं और अब तो दिल्ली में सर्दियों की छुट्टियों की जगह Pollution Vacations तक घोषित होने लगी है. दिल्ली के स्कूलों में winter break की छुट्टियां वैसे तो December-January में होती हैं, लेकिन इस बार दिल्ली सरकार ने अभी से सर्दियों की छुट्टियों का ऐलान कर दिया है. राजधानी के सभी स्कूलों में 9 नवंबर से 18 नवंबर तक सर्दी की छुट्टियां कर दी गई हैं. सरकार ने ये फैसला प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए लिया है, लेकिन क्या इससे प्रदूषण की समस्या का हल निकल जाएगा? क्या इससे सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो गई है? अगर सरकार ने guidelines लागू की है तो उन guidelines को अमल में लाना भी तो सरकार का ही काम है. अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे सरकार ने ये मान लिया है कि प्रदूषण एक लाइलाज बीमारी है, जो ठीक ही नहीं हो सकती.
हिटलर के गैस चैंबर जितनी जहरीली हो गई है दिल्ली
पिछले कई दिनों से दिल्ली में वायु प्रदूषण 'खतरनाक' श्रेणी में है. कई इलाकों में air quality index 900 के पार तक पहुंच गया. दिल्ली जिस तरह से gas chamber बनी है उसकी तुलना अब हिटलर के gas chamber से होने लगी है, जहां गैस छोड़कर लोगों को मौत के घाट उतारा जाता था. दिल्ली में अब प्रदूषण से लड़ने का नया हथियार है कृत्रिम बारिश यानि दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश कराई जाए ताकि प्रदूषण खत्म हो जाए.
पहले फैक्ट्रियां ज्यादा थीं पर प्रदूषण कम था, क्या था कारण?
30-40 वर्ष पहले दिल्ली में फैक्ट्रियां आज के समय से ज्यादा थी. पराली का धुआं पहले भी दिल्ली की तरफ आता था. वाहन भी चलते थे और निर्माण-कार्य भी होता था, लेकिन इसके बावजूद उस वक्त प्रदूषण दिल्ली को घेरकर खड़ा नहीं होता था. फिर ऐसा क्या हो गया कि अब प्रदूषण हर वर्ष की समस्या बन गया है.
दरअसल पहले दिल्ली और उसके आसपास हरियाली इतनी ज्यादा थी कि प्रदूषण को आसानी से खपा लेती थी, लेकिन विकास कार्यों के नाम पर कच्ची जमीन पर बिल्डिंगें खड़ी हो गई हैं. जिससे हुआ ये है कि एक ओर कच्ची जमीन तो समाप्त होती गई और दूसरी तरफ पेड़ कटने से green belt का एरिया सिकुड़ता गया, जबकि यही green belt मुख्य रूप से प्रदूषण को सोखती है, उसे कंट्रोल करने का काम करती है.
घर-दफ्तरों के अंदर ज्यादा खतरा
अगर हम ये सोच रहे हैं कि घर या दफ्तर के अंदर हम प्रदूषण से बच जाएंगे तो भी हम गलत है. घर या दफ्तर के अंदर की हवा बाहर की हवा से कई गुना ज्यादा प्रदूषित हो सकती है. इसकी वजह ये है कि घर और ऑफिस चारों तरफ से बंद होते है. अगर प्रदूषित हवा अंदर पहुंच जाए तो वो अंदर ही Circulate होती रहेगी. वहीं outdoor हवा का AQI घटता-बढ़ता रहता है.
प्रदूषण अब हर वर्ष की वो समस्या है जिसकी दिल्ली-एनसीआर वालों को आदत सी हो गई है. और शायद सरकारों को भी. जो हर वर्ष October November में इसका रोना तो रोती है, लेकिन प्रदूषण खत्म होते ही आराम से बैठ जाती है. चैन की सांस लेती है, जैसे प्रदूषण कोई समस्या थी ही नहीं.
INPUT- दिल्ली से प्रमोद शर्मा, शिवांक मिश्रा और वरुण भसीन के साथ जी ब्यूरो रिपोर्ट
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