डीएनए हिंदी: Chandrayaan Moon Landing Updates- चांद तक अपने स्पेसक्राफ्ट को ले जाना उतना मुश्किल नहीं है, जितना उसके लैंडर को चांद पर लैंड कराना है. ISRO के वैज्ञानिक ही नहीं, पूरे देश की निगाहें, उस ऐतिहासिक घटना का इंतजार कर रही हैं, जो बुधवार को 6 बजकर 4 मिनट पर घटने वाली है. ये वो समय होगा जब चंद्रयान-3, चांद की सतह पर उतरेगा. भारतीय मून मिशन (India Moon Mission) अब अपने सबसे निर्णायक स्टेप पर खड़ा हुआ है, जहां वैज्ञानिक मशीनों से खेलने के बजाय केवल हाथ जोड़कर भगवान से मिशन सफल होने की दुआ ही कर सकते हैं. हम शब्दों में बयां तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन इस घटना के आखिरी 15 मिनट, वैज्ञानिकों की सांसें थाम देने वाले क्षण होंगे. इन्हीं आखिरी 15 मिनट को वर्ष 2019 में ISRO के पूर्व चेयरमैन के.सिवन ने '15 Minutes of Terror' यानी 'आतंक के 15 मिनट' कहा था.
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आप सोचिए देश के इतने बड़े वैज्ञानिक के लिए Landing के आखिरी 15 मिनट इतने डरावने होते हैं, क्योंकि इसमें कुछ भी हो सकता है. यही वो 15 मिनट हैं, जिसमें पिछले 10 वर्षों के अंदर 4 अलग-अलग देशों के Moon Mission Fail हुए हैं. वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 की Crash landing की शुरुआत, इन्हीं 15 मिनट के अंदर हुई थी. इस 15 मिनट के अंदर अंतरिक्ष यान, Oprating System पर निर्भर हो जाता है. Landing Process के इन्हीं 15 मिनट की सारी Calculation, वैज्ञानिक पहले से ही करके रखते हैं, ताकि उस दौरान तय Algorithm के मुताबिक Soft Landing हो सके. Landing के इन आखिरी 15 मिनट के अंदर की जटिल गणनाएं करनी होती हैं, जो मशीनें ही करती हैं. इसके लिए उन्हें पहले से ही Program किया जाता है. इन गणनाओं में होने वाली ज़रा की चूक से पूरा मिशन खतरे में पड़ जाता है.
अब आप ये जानना चाहते होंगे कि Landing के आखिरी 15 मिनट के अंदर किस तरह की गणनाएं की जाती हैं? दरअसल ये सब 5 फैसलों का खेल होता है, जो निम्न होते हैं-
- पहली कमांड से Lander Module की Horizontal Speed यानी सतह से उसकी समानांतर गति को 6 हजार किलोमीटर प्रति घंटा से घटाकर 1290 किलोमीटर प्रति घंटा की जाती है.
- इस 15 मिनट के दौरान Lander Module की Vertical Speed यानी ऊपर से सतह की तरफ आने की गति भी नियंत्रित की जाती है.
- इस 15 मिनट के अंदर Lander Module को 90 डिग्री तक सीधा किया जाता है यानी Lander Module के चारों पैर नीचे करते हुए Landing के लिए तैयार किया जाता है.
- इसी दौरान Lander Module को ये सारे काम करते हुए, अपने लिए सबसे अच्छी Landing Site भी चुननी होती है. चांद पर गड्ढे और पत्थर भी हैं, ऐसे में उसकी Landing सही जगह हो, ये बेहद जरूरी है.
- - Lander Module में 4 Thrusters और 12 छोटे इंजन लगे हुए हैं. Thrusters और इंजन कब चलाने हैं, कब बंद रखने हैं. कितने चलाने और कितने बंद रखने है, ये सारे फैसले इन्हीं 15 मिनट में लिए जाते हैं.
इन 5 कमांड के बारे में पढ़ने के बाद अब आप समझ सकते हैं कि Landing के आखिरी 15 मिनट में कितनी तरह की Calculation, एक साथ की जाती है. इसमें किसी भी एक प्रक्रिया में गलती की 1 प्रतिशत की गुंजाइश नहीं होती है.
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) August 22, 2023
The mission is on schedule.
Systems are undergoing regular checks.
Smooth sailing is continuing.
The Mission Operations Complex (MOX) is buzzed with energy & excitement!
The live telecast of the landing operations at MOX/ISTRAC begins at 17:20 Hrs. IST… pic.twitter.com/Ucfg9HAvrY
चार चरण में पूरे होते हैं लैंडर के आखिरी 15 मिनट
विक्रम लैंडर की लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट को ISRO के वैज्ञानिकों ने 4 चरणों में बांटा है. ये चारों चरण सिर्फ 15 मिनट में पूरे किए जाते हैं, जो निम्न हैं-
- Rough Braking
- Attitude Hold Phase
- Fine Braking
- Terminal Descent
Rough Breaking में किया जाता है ये काम
Landing की प्रक्रिया चांद की सतह से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर आने के बाद से शुरू हो जाती है. इस समय Lander Module 6 हजार किलोमीटर प्रति घंटा यानी 1.68 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चक्कर लगा रहा होता है. यहीं से landing का पहला चरण शुरू हो जाता है, जिसे Rough Braking कहते हैं.
- इस चरण में Lander Module की रफ्तार 1.68 किलोमीटर प्रति सेकेंड से घटाकर 358 मीटर प्रति सेकेंड किया जाता है.
- Rough Braking यानी पहले चरण के दौरान Lander Module कुल 713 किलोमीटर की दूरी तय करेगा.
- इस दौरान लैंडर मॉड्यूल की ऊंचाई भी 30 किलोमीटर से घटकर 7.5 किलोमीटर ही रह जाएगी.
- Rough Breaking चरण का सारा काम लैंडर को 11 मिनट 30 सेकेंड में पूरा कर लेना है.
Attitude Hold Phase में सीधे किए जाते हैं लैंडर के पैर
पहला चरण पूरा होने के बाद दूसरा चरण शुरू होता है, जिसे कहते हैं Attitude Hold Phase. एटीट्यूड होल्ड का मतलब है, Lander Module के पैरों को सतह की ओर किया जाना यानी सीधा करना.
- दरअसल Lander Module के पैर चांद का चक्कर लगाते समय सतह से 90 डिग्री के कोण पर होते हैं.
- Attitude Hold Phase के दौरान, Lander Module के चारों पैरों को सतह की ओर सीधा करना शुरू कर दिया जाएगा.
- इसी चरण में Lander Module की रफ्तार को भी 336 मीटर प्रति सेकेंड तक घटाकर लाया जाएगा.
- इस चरण में Lander Module करीब 3.5 किलोमीटर की दूरी तय करेगा और इसकी ऊंचाई घटकर 6.8 किलोमीटर रह जाएगी.
- दूसरे चरण का सारा काम लैंडर को महज 10 सेकेंड के अंदर पूरा करना होता है. इसके बाद तीसरा चरण शुरू हो जाता है.
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) August 21, 2023
Here are the images of
Lunar far side area
captured by the
Lander Hazard Detection and Avoidance Camera (LHDAC).
This camera that assists in locating a safe landing area -- without boulders or deep trenches -- during the descent is developed by ISRO… pic.twitter.com/rwWhrNFhHB
Fine Braking Phase में लैंडर हो जाता है लैंडिंग के लिए तैयार
तीसरा चरण Fine Braking Phase है, जिसमें दूसरे चरण के ही अहम काम यानी लैंडर को सीधा करने की प्रोसेस पूरी की जाती है. इस दौरान विक्रम लैंडर पूरी तरह सीधा हो जाएगा यानी वह लैंड करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएगा. ये वही चरण है, जिसमें पिछले बार चंद्रयान-2 का लैंडर कमांड भटक गया था और पूरी तरह सीधा नहीं हो पाया था. उसके पैर नीचे की तरफ नहीं आ पाए थे और उसने क्रैश लैंडिंग की थी. इस बार वैज्ञानिकों ने इसके लिए विशेष इंतजाम किए हैं.
- इस चरण में Lander विक्रम की सतह से ऊंचाई 800 से 1000 मीटर तक हो जाएगी.
- इस चरण में लैंडर करीब 28 किलोमीटर की दूरी तय करेगा.
- Lander की गति को घटाकर लगभग शून्य कर दिया जाएगा.
- ये चरण 2 मिनट 55 सेकेंड में पूरा किया जाएगा.
आखिरी चरण है Terminal Descent, जिसमें जांचे जाएंगे सेंसर
चौथा और आखिरी चरण है Terminal Descent. यह लैंडिंग का सबसे अहम पायदान है, जिसमें लैंडर चांद से महज 1,000 मीटर की ऊंचाई पर होगा और उस वक्त अपने सभी सेंसर्स की जांच करेगा.
- इस चरण में जब Lander विक्रम की ऊंचाई मात्र 150 मीटर रह जाएगी, तब वो Hazard Detection करेगा.
- इस प्रक्रिया में लैंडर अपनी Landing Site की जांच करेगा. पता लगाएगा कि लैंडिंग की जगह गड्ढा, ढलान या पत्थर तो नहीं है.
- ये काम Lander में लगे 4 LH-DAC यानी Lander Hazard Detection and Avoidence Camera करेंगे. ये लैंडर की आंखें हैं.
- अगर LH-DAC को लैंडिंग साइट में गड़बड़ दिखी, तो Lander विक्रम अपनी landing Site को 150 मीटर और आगे ले जाएगा.
- विक्रम LDV यानी Laser Doppler Velocimeter तकनीक से सतह तक पहुंचने तक की अपनी रफ्तार की जांच करेगा.
- Laser Doppler Velocimeter वही तकनीक है, जिससे ट्रैफिक पुलिस, तेज रफ्तार गाड़ियों की गति की जांच करती है.
- Touch Down से पहले लैंडर की सतह तक पहुंचने की रफ्तार को 1 मीटर से 2 मीटर प्रति सेकेंड तक लाया जाएगा.
- हालांकि lander विक्रम को ऐसे डिजाइन किया गया है कि वह 3 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से भी सेफ लैंड कर जाएगा.
- इस दौरान Lander विक्रम पूरा सीधा नहीं होकर 12 डिग्री के कोण पर भी रहा, तो भी सुरक्षित तरीके से Land कर जाएगा.
- आखिरी चरण की पूरी प्रक्रिया सुनने में बेहद लंबी है, लेकिन इसे पूरा करने का समय महज 9 से 20 सेकेंड के बीच का ही होगा.
बुधवार शाम 5.45 से 6.04 बजे तक होंगे '15 मिनट्स ऑफ टैरर'
अगर सब कुछ तय योजना के मुताबिक हुआ, तो Landing की प्रक्रिया 5 बजकर 45 मिनट से शुरू की जाएगी यानी चंद्रयान-3 का Lander विक्रम, Rough Braking Phase में आ जाएगा. उसके बाद शाम 6 बजकर 4 मिनट पर Lander विक्रम, चंद्रमा की सतह पर पहुंच जाएगा. इसी दौरान वे 15 मिनट होंगे, जिनमें वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सांसे थामी होंगी.
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