डीएनए हिंदी: DNA Profiling- देश में फिंगर प्रिंट की तर्ज पर डीएनए डेटा बैंक तैयार करने के लिए तीन साल से इंतजार कर रहा डीएनए टेक्नोलॉजी रेगुलेशन बिल 2019 अब कानून नहीं बनेगा. केंद्र सरकार ने इसे सोमवार को इसे लोकसभा से वापस ले लिया है. इस बिल को पहले जनवरी, 2019 में लोकसभा में पारित कराया गया था, लेकिन तब ये राज्य सभा से पास नहीं हो पाया था. उस समय इस कानून के बल पर डीएनए तकनीक के नया 'आधार' यानी पहचान का तरीका बनने का दावा किया जा रहा था. इसी कारण पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार के दोबारा चुनकर आते ही 8 जुलाई, 2019 को तत्कालीन विज्ञान व प्रोद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने यह बिल फिर से सीधे राज्यसभा में पेश किया था, जहां से इसे लोकसभा में भेज दिया गया था. तब से यह बिल लंबित पड़ा हुआ था. अब सरकार ने इसे वापस ले लिया है, जिससे डीएनए तकनीक के दम पर अपराधी पकड़े जाने और डीएनए डेटा के मिसयूज को रोकने जैसी बातें अब दावों में ही रह जाएंगी.
क्या होती है डीएनए प्रोफाइलिंग
पहले जान लेते हैं कि डीएनए प्रोफाइलिंग क्या होती है, जिसे रेगुलेट करने के लिए कानून लाया जा रहा था. हम सभी जानते हैं कि DNA हमारे शरीर की कोशिकाओं का ऐसा डेटा बैंक है, जिसमें हमारे आनुवांशिक गुण स्टोर होते हैं. 99.9 फीसदी डीएनए पूरी धरती के मानवों में लगभग एकसमान है. बाकी बचा 0.1 फीसदी हिस्सा हर आदमी में अलग होता है. ठीक हमारी अंगुलियों की पहचान की तरह. इस हिस्से में ही आनुवांशिक डेटा स्टोर होता है. इसके चलते ही किसी भी व्यक्ति की लार, खून, वीर्य या बाल आदि से उसकी असली पहचान जानी जा सकती है. यह आनुवांशिक पहचान तय करना ही डीएनए फिंगरप्रिंटिंग (DNA Fingerprinting) या डीएनए प्रोफाइलिंग (DNA Profiling) कहलाता है. डीएनए प्रोफाइलिंग तकनीक की खोज 1984 में ब्रिटेन की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलक फ्रेजेज ने की थी. भारत में इसका फोरेंसिक में इस्तेमाल 1988 में लालजी सिंह ने शुरू कराया था, जिन्हें भारतीय डीएनए तकनीक का पितामह भी कहा जाता है.
क्या था डीएनए टेक्नोलॉजी रेगुलेशन बिल में
इसी डीएनए प्रोफाइलिंग तकनीक के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए एक कानून लाने की तैयारी थी, जिसके लिए केंद्र सरकार ने एक बिल तैयार किया था. वैसे तो यह बिल 2019 में संसद में पेश हो चुका था, लेकिन विज्ञान व प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने अप्रैल 2022 में इस बिल का नए सिरे से ड्राफ्ट जारी किया था. इस ड्राफ्ट के मुताबिक, इस कानून का मकसद पूरे देश में DNA प्रोफाइल की जांच व स्टोरेज के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर DNA डेटा बैंक, DNA लैबोरेटरी और एक डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड स्थापित करना था. इस डेटा का प्रमुख इस्तेमाल अपराधों को हल करने के लिए होना था. इनमें भी खासतौर पर यौन हिंसा के अपराधों को सुलझाने में इसकी अहम भूमिका मानी जा रही थी. साथ ही यह डेटा बैंक अज्ञात में मिलने वाली लाशों की पहचान करने, अपराधियों की पहचान का नया तरीका बनने में भी इस्तेमाल होना था. इसके लिए मानक किट का इस्तेमाल कर फोरेंसिक सबूत जुटाने के लिए पूरे देश में 20,000 जांच अधिकारियों, अभियोजन अधिकारियों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग दी जानी थी.
क्यों महसूस हुई थी इसकी जरूरत
भारत में अब तक डीएनए को लेकर कोई भी अलग से कानून नहीं है. हालांकि इसे 'साइंटिफिक एविडेंस' के तौर पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 45 के तहत शामिल किया गया है, लेकिन इसके स्टोरेज आदि से जुड़ा कोई कानून अब तक नहीं है.
डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड की होनी थी सबसे अहम भूमिका
डीएनए कानून में सबसे अहम भूमिका डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड की थी. कम से कम सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता वाले इसे बोर्ड में डीएनए साइंटिस्ट, फोरेंसिक एक्सपर्ट, लॉ एक्सपर्ट के साथ ही रोटेशन के आधार पर हर राज्य के पुलिस महानिदेशक के अलावा NIA, CBI आदि जैसी टॉप जांच एजेंसियों के महानिदेशक व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को शामिल होना था. यह बोर्ड ही डीएनए लैब, डेटा बैंक स्थापित करने, समय-समय पर गाइडलाइंस तैयार करने के अलावा फौजदारी केस में जांच एजेंसियों की मदद करने, डीएनए की निजता की निगरानी करने आदि जैसे काम करता. बोर्ड के अधिकार को कोर्ट के दायरे से बाहर रखा जाना था.
कब शुरू हुई थी डीएनए रेगुलेशन की कोशिश
डीएनए टेक्नोलॉजी को रेगुलेट करने के लिए साल 2003 में पहली बार कोशिश की गई थी. तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने डीएनए प्रोफाइलिंग एडवाइजरी कमेटी गठित की थी. इसी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर एक ड्राफ्ट बिल बना था. इस ड्राफ्ट बिल में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2012 में एक और एक्सपर्ट कमेटी बनाकर संशोधन कराए थे. मोदी सरकार ने भी अपने पहले कार्यकाल में इसे आगे बढ़ाया था. लॉ कमीशन ने भी इस कानून को लाने के लिए जुलाई 2017 में मंजूरी दे दी थी.
निजता की चिंता में फंस गया था कानून
जुलाई, 2017 में लॉ कमीशन से हरी झंडी मिलने के बावजूद मोदी सरकार को लोकसभा में यह बिल पेश करने में 2 साल लगे, क्योंकि कुछ संगठनों ने इसे निजता के दायरे में सेंध बताया था. अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान बेंच ने निजता को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित कर दिया. इसी आधार पर डीएनए टेक्नोलॉजी रेगुलेशन बिल का विरोध हो रहा था. इसके बावजूद मोदी सरकार ने जनवरी 2019 में इसे लोकसभा में पारित करा लिया था. हालांकि राज्य सभा में पर्याप्त बहुमत नहीं मिलने के कारण यह बिल रद्द हो गया. इसके बाद मोदी सरकार ने दोबारा शपथ ग्रहण करने के बाद इस बिल को पारित कराने की कोशिश नए सिरे से शुरू की थी.
2019 के बिल में था डेटा का ये इस्तेमाल
साल 2019 में मोदी सरकार की तरफ से पेश बिल के हिसाब से डीएनए जांच केवल किसी की पहचान साबित करने के लिए ही होनी थी. DNA टेस्ट से हल होने वाली IPC की धारा के तहत चल रही देह व्यापार, मानव तस्करी, गर्भपात, घरेलू हिंसा आदि की जांच में इसका इस्तेमाल हो सकता था. मोटर व्हीकल एक्ट के केस में, पारिवारिक विवादों में, बच्चे की वंशावलीकी पहचान में, मानव अंग प्रत्यारोपण में, अप्रवासी व्यक्ति की पहचान में, मृत व्यक्ति की पहचान में, लावारिस बच्चे की पहचान में इसका इस्तेमाल हो सकता है. हालांकि मौत की सजा या 7 साल से ऊपर जेल की सजा वाले मामलों में इस टेस्ट के लिए आरोपी की रजामंदी जरूरी नहीं है, लेकिन इससे कम सजा वाले मामलों में आरोपी की सहमति से ही डीएनए टेस्ट होना था.
जांच के बाद डेटा बैंक से हटाना था प्रोफाइल
किसी जांच में संदिग्ध या आरोपी के तौर पर किसी व्यक्ति की डीएनए प्रोफाइलिंग हो सकती थी, लेकिन जांच पूरी होने पर उसके दोषी नहीं मिलने की स्थिति में डेटा बैंक से यह प्रोफाइल हटाना था. हालांकि इसके लिए संबंधित व्यक्ति की तरफ से लिखित आवेदन करना जरूरी रखा गया था.
डीएनए डेटा से छेड़छाड़ पर सजा या प्रावधान
बिना बताए डीएनए सैंपल लेने के लिए तीन साल की सजा या 1 लाख रुपये जुर्माना और डीएनए डेटा से छेड़छाड़ करने पर 5 साल की सजा या 2 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया था.
डीएनए डेटा बैंक से होता ये लाभ
क्राइम सीन पर मिले एक बाल या रक्त लगे कपड़े या वीर्य की बूंदों से डीएनए प्रोफाइल निकाला जा सकता है. इस डीएनए प्रोफाइल का मिलान डीएनए डेटा बैंक से करने पर संबंधित संदिग्ध की पहचान पता चल सकती है. माना जा रहा है कि इससे अपराध हल करने और दोषियों को सजा दिलाने में तेजी आएगी, जिससे अदालतों पर भी मुकदमों के सालों तक खिंचने का अनावश्यक बोझ कम होगा.
ऐसे हो सकता है इस तकनीक का दुरुपयोग
- डीएनए प्रोफाइल लीक होने पर किसी आदमी की पूरी जानकारी गलत हाथों में जा सकती है.
- वह आदमी कैसा दिखता है, उसकी आंख का रंग, त्वचा का रंग क्या है, सब दूसरे जान जाएंगे.
- किसी को क्या एलर्जी है या बीमारी है या कौन सी बीमारी उसे जल्द पकड़ सकती है, ये जानकारी लीक हो सकती है.
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