'पार्टी विद ए डिफ़रेंस' जिस भाजपा का विचार है, शायद यह संदेश देना चाहती है कि वह पार्टी विद इन डिफ़रेंस नहीं है. लोकसभा चुनाव के दौरान लक्षित नारेबाज़ी और हाल ही में वक्फ बिल ने देश के एक बहुत बड़े तबके के बीच बहुत कड़वाहट पैदा की है. चूंकि ईद नज़दीक है, भाजपा ने सौगात-ए-मोदी के जरिये मुस्लिम समुदाय के साथ अपने संबंधों को मधुर बनाने के लिए एक दुर्लभ पहल की है. बता दें कि, भाजपा ने सौगात-ए-मोदी किट वितरित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम शुरू किया, जिसका लाभ ईद मनाने वाले 32 लाख गरीब मुसलमानों को मिलेगा.
भाजपा वास्तव में इसके ज़रिए क्या हासिल करना चाहती है? इस सवाल के जवाब के लिए हमें सबसे पहले किट को खोलने और उसका अवलोकन करने की जरूरत है. किट में देखें तो इसमें सूखे मेवे, बेसन, सूजी, सेवई और चीनी है. खाद्य पदार्थों के साथ, महिलाओं की किट में सूट के लिए कपड़े हैं, जबकि पुरुषों के लिए किट में कुर्ता-पायजामे का विकल्प रखा गया है.
किट के मद्देनजर एएनआई की एक रिपोर्ट पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि, प्रत्येक किट की कीमत लगभग 500 से 600 रुपये होगी.
ध्यान रहे कि इस कार्यक्रम का शुभारंभ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के मार्गदर्शन में दिल्ली के निजामुद्दीन से किया गया. भाजपा की सौगात-ए-मोदी किट ने विशेषज्ञों को चौंका दिया है और विपक्ष की ओर से तीखी टिप्पणियां सामने आई हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेताओं की ओर से 'वोट जिहाद' की टिप्पणियां देखी गईं, जिसने पहले से ही विभाजित समाज को और अधिक ध्रुवीकृत कर दिया. फिर 'काटेंगे तो बताएंगे' और 'एक है तो सुरक्षित हैं'' के नारे भी लगे.
पीएम मोदी द्वारा मुसलमानों को भेंट की जा रही इस किट पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.
एक्स पर किये गए एक पोस्ट में शमा ने लिखा है कि,'मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने, उनके खिलाफ नफरत भरे भाषण देने, उन्हें निशाना बनाने के लिए प्रचार वीडियो बनाने और उनके घरों को ध्वस्त करने के बाद, भाजपा अब ईद पर 32 लाख मुसलमानों को 'सौगात-ए-मोदी' किट बांटने की योजना बना रही है. यह कितना पाखंडपूर्ण नाटक है.'
उन्होंने सवाल किया कि क्या यह 'तुष्टिकरण' नहीं है, जिसका आरोप भाजपा कांग्रेस पर लगाती रही है.
चूंकि इस्लामिक वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के तरीके में संशोधन के लिए लाया जा रहा वक्फ विधेयक विवाद का ताजा मुद्दा है. इसलिए यह अभियान केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से उत्पन्न सद्भावना को और बढ़ाने का प्रयास हो सकता है.
दिलचस्प ये कि पीएम मोदी के इस अभियान को तमाम राजनीतिक विश्लेषक जीरो लॉस रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं और कहा तो यहां तक जा रहा है कि ये एक ऐसा मौका है जो यदि भाजपा भुना ले गई तो आने वाले वक़्त में उसे इसका बड़ा फायदा मिल सकता है.
कह सकते हैं कि अपनी इस स्कीम से मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि कल्याणकारी लाभ सभी समुदायों के गरीबों तक पहुंचे. ऐसा करके, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने 'लाभार्थी' मतदाताओं का एक नया वर्ग तैयार किया है. ज्ञात हो कि, केंद्र सरकार की योजनाओं के लगभग 35% लाभार्थी मुसलमान हैं.
मुस्लिम वोट और भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए
हो सकता है कि कोई आकर कह दे कि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं करते. यदि ऐसा है तो यह बता देना भी बहुत जरूरी हो जाता है कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि एनडीए को मुस्लिम वोट नहीं मिलते. महाराष्ट्र में 22% मुसलमानों ने भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति को वोट दिया, जबकि गुजरात में भाजपा को दशकों से 20% से ज़्यादा मुस्लिम वोट मिल रहे हैं.
ऊपर हमने भाजपा की जीरो लॉस रणनीति का जिक्र किया था तो बता दें कि, 'एनडीए को 80% हिंदू वोटों में से लगभग आधे मिलते हैं. इसका वोट शेयर लगभग 43% है. अगर यह 20% अल्पसंख्यक वोटों में से 20-30% जोड़ने में सफल हो जाता है, तो वोट शेयर 45-50% तक बढ़ जाता है.'
क्या एनडीए के लिए वोट जुटा पाएगी सौगात ए मोदी?
इस सवाल का जवाब देने के लिए हमें इस बात को समझना होगा कि,'मिठाई और मेवे का पैकेट भेजने जैसे कदमों का जमीनी स्तर पर कोई खास असर नहीं होगा. भाजपा और एनडीए के प्रति अभी भी काफी कड़वाहट है.' जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं वक़्फ़ मामले पर मुसलमानों की एक बड़ी आबादी भाजपा और पीएम मोदी से नाराज है इसलिए तोहफा नाराजगी दूर कर दे अभी कुछ कहना शायद जल्दबाजी होगी.
बाकी बात एनडीए के लिए वोट की हुई है तो हमें इस बात को भी समझना होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का बड़ा एकीकरण उन पार्टियों की ओर हुआ जो भाजपा को हरा सकती थीं.
इसका एक उदाहरण असम में बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाली AIUDF की हार है, जो एक भी सीट नहीं जीत पाई, जबकि कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटों का एकीकरण स्पष्ट रूप से देखा गया.
2019 में अजमल की AIUDF ने 42% वोट शेयर के साथ मुस्लिम बहुल धुबरी सीट जीती थी. हालांकि, 2024 में कांग्रेस उम्मीदवार ने 60% वोट हासिल करके अजमल को हरा दिया. अजमल सिर्फ़ 18% वोट शेयर ही हासिल कर पाए.
विशेषज्ञों का मानना है कि मुसलमानों ने निर्णायक रूप से उन पार्टियों को वोट दिया जो भाजपा को हरा सकती थीं. उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. मालेगांव विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटों के एकजुट होने से भाजपा को 2024 में धुले लोकसभा सीट गंवानी पड़ी.
मुस्लिम वोट और बिहार विधानसभा चुनाव
हालांकि यह अभियान बिहार विधानसभा चुनाव के समय चल रहा है, लेकिन क्या यह इस डर से है कि भाजपा का विरोध बिहार में नीतीश कुमार की जेडी(यू), चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हम (एस) जैसे उसके सहयोगियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है? ध्यान रहे भाजपा की सौगात-ए-मोदी पहल का उद्देश्य बिहार में एनडीए सहयोगियों से मुस्लिम वोटों को दूर जाने से रोकना है.
बिहार की राजनीति को समझने वाले तमाम विचारक ऐसे हैं जो इस बात को मानते हैं कि बिहार में मुस्लिम वोट अभी भी कांग्रेस-आरजेडी-वाम महागठबंधन और कुछ हद तक प्रशांत किशोर की नई जन सुराज पार्टी के बीच विभाजित होंगे.
बहरहाल, सौगात ए मोदी किट से मुसलमानों के बीच पीएम मोदी की छवि सुधरती है या नहीं? इस सवाल का जवाब तो वक़्त देगा. लेकिन जो वर्तमान है उसमें जिस तरह पीएम मोदी बाहें फैलाकर मुसलमानों की तरफ जा रहे हैं, कहा जा सकता है कि वो अपनी तरफ से गिले शिकवे दूर करने का प्रयास जरूर कर रहे हैं.
जिक्र बिहार चुनावों का भी हुआ है. तो भले ही पीएम मोदी की सौगात ए मोदी को बिहार विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा हो. लेकिन इस मुहीम का बिहार चुनावों पर इसलिए भी ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि बिहार में जो जिसका परंपरागत वोटर है, वो उसी को वोट करता और सरकार बनवाता है.
जाते जाते हम उसी बात को दोहराना चाहेंगे कि वक़्फ बिल में संशोधन को लेकर मुसलमान पीएम और सरकार से नाराज हैं. ऐसे में सूखे मेवे, सेवई, कुर्ता पायजामा उनके जख्म सुखा दे, इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी.
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कड़वाहट दूर करने के लिए Eid पर मुसलमानों को सौगात-ए-मोदी, क्या इससे भाजपा को मिलेगा फायदा?