डीएनए हिंदी: Elections Results 2023 Latest Updates- चार राज्यों के विधानसभा चुनावों की मतगणना लगभग पूरी हो चुकी है. राज्यों में जीत-हार भी लगभग तय हो चुकी है. भाजपा ने इन चुनावों में जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी. चुनावी जीत पक्का करने के लिए भाजपा ने अपने सांसदों को भी चारों राज्यों में विधायक का चुनाव लड़ने के लिए उतारा हुआ था. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा के चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने 21 सांसदों को टिकट दिया था. इनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, राज्यवर्धन सिंह राठौर, कैलाश विजयवर्गीय आदि प्रमुख नाम हैं. इनमें से अधिकतर को जीत हासिल हुई है. ऐसे में ये सवाल उठने लगा है कि विधायक बनने के बाद इनकी सांसदी का क्या होगा? क्या ये संसद और विधानसभा, दोनों के सदस्य बने रह सकते हैं? दोहरी सदस्यता को लेकर भारतीय संविधान में क्या नियम-कानून हैं? इन सब सवालों का जवाब हम आपको बताने की कोशिश कर रहे हैं.
पहले जान लीजिए कितने सांसदों ने हासिल की है जीत
भाजपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने 7-7 सांसदों को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा था. इनके अलावा छत्तीसगढ़ में चार और तेलंगाना में 3 सांसदों को विधानसभा के चुनावी रण में योद्धा बनाया गया था. खबर लिखने तक राजस्थान की जोतवाड़ा सीट से राज्यवर्धन सिंह राठौड़, विद्याधर नगर सीट से दीया कुमारी, तिजारा सीट से बाबा बालकनाथ, सवाई माधोपुर सीट से किरोड़ीलाल मीणा को जीत मिली है, जबकि मध्य प्रदेश के दिमनी सीट से नरेंद्र सिंह तोमर, इंदौर-1 सीट से कैलाश विजयवर्गीय, नरसिंहपुर सीट से प्रहलाद पटेल, गाडरवाड़ा सीट से उदयराव प्रताप सिंह, सीधी सीट से रीति पाठक, जबलपुर पश्चिम सीट से राकेश सिंह जीत चुके हैं. छत्तीसगढ़ में लोरमी सीट से अरुण साव जीत चुके हैं. बाकी सांसद या तो हार गए हैं या फिर उनका परिणाम अभी नहीं आया है.
क्या होगा जीतने वाले सांसदों की लोकसभा-राज्यसभा सदस्यता का
लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य होने के बावजूद विधानसभा में भी जीत हासिल करने वाले सांसदों का अब क्या होगा, इसे लेकर आपके मन में भी सवाल उठ रहा होगा. PTI ने अपनी रिपोर्ट में संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी के हवाले से बताया है कि इन सांसदों को अगले 14 दिन के अंदर संसद या विधानसभा की सीट से इस्तीफा देना होगा. पीडीटी अचारी ने संविधान के अनुच्छेद 101 के तहत साल 1950 में प्रेजीडेंशियल ऑर्डर (राष्ट्रपति के आदेश) द्वारा जारी किए गए प्रिवेंशन ऑफ साइमलटेनियस मेंबरशिप रूल के हवाले से यह जानकारी दी है.
इस्तीफा नहीं दिया जाएगा तो क्या होगा
अचारी ने यह भी बताया है कि यदि कोई सांसद 14 दिन के अंदर यह तय नहीं करता है कि वह कौन से सदन का सदस्य रहेगा तो उस स्थिति में क्या होगा. उन्होंने कहा कि खुद इस्तीफा नहीं देने पर किसी भी सांसद की विधानसभा सीट के रिजल्ट पर इसका कोई असर नहीं होगा यानी वह विधायक बना रहेगा, लेकिन उसकी संसद सदस्यता खुद ब खुद ही समाप्त मानी जाएगी यानी वह लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य नहीं रहेगा और उसकी सीट खाली घोषित करनी होगी.
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