पहले गाजा और अब लेबनान पर इजरायल की बमबारी के बाद जिस नाम ने इंटरनेट पर सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं, वो हैं ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई. जिनका जीवन समर्थकों के लिए प्रेरणा और विरोधियों के लिए गहरे रहस्य लिए हुए हैं. ईरान की मौजूदा सियासत में अयातुल्ला अली खामेनेई का क्या रुतबा है? इसे हम समझेंगे. लेकिन उससे पहले हमें एक किस्से को समझना होगा. जिसके बाद स्वतः इस बात की तस्दीख हो जाएगी कि खामेनेई को ईरान में एक बड़े मकसद के लिए चुना गया था.

1957 की एक शाम, 18 वर्षीय छात्र सैयद अली खामेनेई ईरान स्थित कुम में अपने मदरसे से निकल रहे थे. उनके शिक्षक ने उन्हें जाते हुए देखा तो वापस अपने पास बुलाया. शिक्षक ने पूछा कि, क्या उन्होंने जाने से पहले अनुमति ली है? इतना सुनते ही खामेनेई वहीं ज़मीन पर बैठ गए. खामेनेई के इस अंदाज ने उनके गुरु को बहुत प्रभावित किया. गुरु ने शिष्य को अपना आशीर्वाद दिया और बाद में इसी छात्र को उस शिक्षक ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया.

इस छात्र यानी अली ख़ामेनेई के गुरु का नाम रूहोल्लाह खोमैनी था. इस किस्से के दो दशक बाद गुरु ने 1979 की इस्लामी क्रांति का नेतृत्व किया और ख़ामेनेई इसका महत्वपूर्व हिस्सा बने.  

अयातुल्ला अली ख़ामेनेई अब ईरान के सर्वोच्च नेता हैं और उन्होंने रूहोल्लाह खोमैनी का स्थान लिया है. उन्होंने बीते शुक्रवार को हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह के अंतिम संस्कार पर 'मुस्लिम' दुनिया को संबोधित किया. अपने खुतबे के दौरान ख़ामेनेई ने दुनिया के तमाम मुसलमानों से अपील की है कि वो अपने दुश्मनों के खिलाफ़ एकजुट रहें.

हिजबुल्लाह नेता, हसन नसरल्लाह की मौत के प्रतिकार में ख़ामेनेई के नेतृत्व में, ईरान ने इज़राइल के ऊपर 180 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं. बताया जा रहा है कि यह इजरायल पर ईरान का सबसे बड़ा और दूसरा प्रत्यक्ष हमला था.

85 साल की उम्र में मौलवी-राजनेता इजरायल के खिलाफ ईरान का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं, यह तब स्पष्ट हो गया जब उन्होंने न केवल बीते 4 अक्टूबर को अपना खुतबा दिया, बल्कि दुनिया को रूस निर्मित ड्रैगुनोव राइफल से रू-ब-रू कराया.

द कन्वर्सेशन में छपी एक रिपोर्ट कि मानें तो ईरान के लिए सीधा हमला एक अलग दृष्टिकोण है, इसलिए उसने हमेशा हिजबुल्लाह और हमास जैसे प्रॉक्सी का इस्तेमाल किया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इज़राइल ने हमास के शीर्ष नेताओं जैसे इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह के शीर्ष नेताओं जैसे नसरल्लाह को मार डाला है.

अपने प्रॉक्सी के शीर्ष नेतृत्व के खात्मे के बाद, ईरान को अपना सतर्क दृष्टिकोण छोड़ना पड़ा और वो खुल कर इजरायल के विरोध में सामने आया.

कहा जा रहा है कि इजरायल ने तेहरान में हनीया को खत्म करके ईरान को शर्मिंदा किया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस समय उसे मारा गया वो ईरान के एक राजकीय समारोह में भाग लेने के लिए आधिकारिक अतिथि के रूप में वहां आया था. ईरान द्वारा इज़राइल पर हाल ही में किया गया हमला और अब तक का सतर्क दृष्टिकोण, दोनों ही इस बात की पुष्टि कर देते हैं कि अयातुल्ला खामेनेई ने न केवल ईरान की सत्ता में अपनी मजबूत पैठ जमाई बल्कि ईरान को दिशा भी दी है.  

संघर्षों से था भरी थी शुरूआती जिंदगी 

1939 में जन्में अली खामेनेई के पिता सैयद जावेद खामेनेई एक इस्लामी विद्वान थे, जो कि अजरबैजान से थे. जबकि इनकी मां फ़ारसी थीं जो कि यज़्द से थीं. खामेनेई, जिन्होंने अपना अधिकांश बचपन एक कमरे और छोटे से घर में बिताया, भले ही आज ईरान के सुप्रीम लीडर हों लेकिन इनका भी बचपन तमाम तरह के संघर्षों में बीता.

बताया जाता है कि अलग अलग शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश लेने के बाद उनके जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये जिसने काफी हद तक उनकी पॉलिटिकल समझ को भी नए आयाम दिए.

महज 4 साल की उम्र में, उन्हें और उनके बड़े भाई को अपनी शिक्षा शुरू करने और कुरान सीखने के लिए पारंपरिक स्कूलों में भेजा गया था. अपनी प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्हें ईरान के मशहद स्थित एक मदरसे में भेजा गया. बाद में भी, उन्होंने इस्लामी थियोलॉजी का अध्ययन किया. फिर खामेनेई अपनी उच्च शिक्षा के लिए इराक के नजफ़ गए.

शाह ईरान के शासन में दिखाई प्रारंभिक राजनीतिक सक्रियता 

कुम में खामेनेई की मुलाक़ात शिक्षक रूहोल्लाह खोमैनी से हुई. जिन्होंने उनका जीवन बदल दिया. कहा जाता है कि खोमैनी और कुम के अन्य शिक्षकों ने उनके राजनीतिक जीवन को शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अयातुल्ला ख़ामेनेई अपनी वेबसाइट पर कहते हैं, 'राजनीतिक और क्रांतिकारी विचारों और इस्लामी न्यायशास्त्र के क्षेत्रों में, मैं निश्चित रूप से इमाम खोमैनी का शिष्य हूं.'

यह 1950 का समय था और ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के नेतृत्व में पहलवी राजवंश सत्ता में था. पहलवी पश्चिमी ब्लॉक के साथ जुड़े हुए थे और उनका अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध था. लेकिन उनके शासन को ईरान के उन क्रांतिकारियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था जो अमेरिका और उसकी नीतियों के विरोधी थे.  

1962 में, सैय्यद अली ख़ामेनेई इमाम खोमैनी के इन क्रांतिकारी अनुयायियों में शामिल हो गए, जिन्होंने शाह शासन की पश्चिमी समर्थक नीतियों का विरोध किया. ख़ामेनेई और बाकी क्रांतिकारियों ने अगले 16 वर्षों तक खोमेनी के मार्ग का अनुसरण किया.

मई 1963 में, मुहर्रम के दौरान, रूहोल्लाह खोमैनी ने युवा मौलवी सैयद अली ख़ामेनेई को एक बेहद मुश्किल काम दिया. इस काम में उन्हें अयातुल्ला मिलानी और मशहद के अन्य मौलवियों को एक ऐसा गुप्त संदेश देना था जिसमें शाह के शासन और उसकी बुराइयों का जिक्र था. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उन्होंने अगले दशक तक सक्रियता जारी रखी.

1972 और 1975 के बीच, खामेनेई ने मशहद की तीन प्रमुख मस्जिदों में कक्षाएं संचालित कीं, जिसमें हजारों राजनीतिक रूप से जागरूक छात्र शामिल हुए. खामेनेई की गतिविधियों के कारण अंततः 1976  में उन्हें तीन सालों के लिए निर्वासित कर दिया गया. यह अवधि 1978 के अंत में समाप्त हुई, जिससे उन्हें इस्लामी क्रांति से ठीक पहले मशहद लौटने का मौका मिला. अंत में, शाह शासन को हटा दिया गया.

किसे पता था कि राजनीतिक सक्रियता का यह हिस्सा खामेनेई के शासन को भी आकार देगा. ऐसा इसलिए क्योंकि वह पश्चिम और अमेरिका की गहन आलोचना पर आधारित आंदोलन का परिणाम थे. वह इजरायल विरोधी गुट का भी हिस्सा थे. खामेनेई और खोमेनी जैसे सदस्यों के साथ एक सरकार विरोधी आंदोलन 1977 में अपने चरम पर था और आखिरकार 1979 में इस्लामी क्रांति हुई और शाह के शासन को उखाड़ फेंका गया.

ईरानी क्रांति और खामेनेई का सत्ता में आना

सैयद अली या खामेनेई ईरानी क्रांति के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे, और वे रूहोल्लाह खोमैनी के करीबी थे. खामेनेई का राजनीतिक करियर वास्तव में ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफसनजानी द्वारा उन्हें खोमेनी के शासन में लाने के बाद शुरू हुआ.

1981 में, मोहम्मद अली राजई की हत्या के बाद, खामेनेई 97% वोट हासिल करके ईरान के राष्ट्रपति बने. खामेनेई पद संभालने वाले पहले मौलवी बने. बताते चलें कि 1985 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें फिर से चुना गया. ये ईरान में वो समय भी था जब खामेनेई के सत्ता संभालने के बाद अमेरिकी-प्रभावित तमाम चीजों को मुल्क में ख़त्म किया गया. 

खामेनेई ईरान-इराक युद्ध के दौरान ईरान के राष्ट्रपति थे, जो आठ साल तक चला, और प्रभावशाली रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के करीबी थे. बताया ये भी जाता है कि रिवोल्यूशनरी गार्ड्स को ये अनुमति थी कि वो उन स्वरों को दबा दे जो खामेनेई के विरोध में उठें. 

1989 में अयातुल्ला खुमैनी ने अयातुल्ला मुंतज़िरी को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के पद से हटा दिया और उनकी जगह खामेनेई को यह पद दे दिया.

ईरान की प्रॉक्सी वॉर के पीछे का इतिहास

खामेनेई शासन ने देश के नागरिकों को सुरक्षा और समृद्धि की शपथ दिलाई. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच सुरक्षा हासिल करना अधिक कठिन था. ईरानी क्रांति में शाह शासन को उखाड़ फेंका गया, जिसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त था. नई ईरानी सरकार ने लोगों, खासकर महिलाओं के दमन के कारण लगातार विरोध प्रदर्शन भी देखे हैं.

द गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट का अवलोकन करें तो मिलता है कि ईरान की प्रॉक्सी वार्स का एक इतिहास रहा है. यह एक ऐसा राष्ट्र है जिसका गठन 'विमुद्रीकरण' के आधार पर हुआ है. ईरान-इराक युद्ध के दौरान देश की धार्मिक सरकार और सैन्य अभियान ईरानी क्षेत्र की 'पवित्र रक्षा' के तहत एक साथ आए.

विनाशकारी युद्ध की समाप्ति के बाद, खामेनेई ने एक प्रमुख सबक ये सीखा कि उनका शासन आम सहमति पर आधारित था, जिसका समय-समय पर बहुत विरोध हुआ. यानी वो कभी सीधे युद्ध का जोखिम नहीं उठा सकते थे. ध्यान रहे ईरान की सियासत में एक समय वो भी आया जब कई प्रमुख नेताओं ने खामेनेई को अयातुल्ला के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

कह सकते हैं कि अपने राजनीतिक उदय के दौरान खामेनेई को इस बात का अंदाजा था कि वह उस शासन में तबाही बर्दाश्त नहीं कर सकता जिसने दमन और रूढ़िवादिता देखी है. उनको महसूस हो गया था कि यह शासन के ताबूत पर आखिरी कील होगी.

कैसे किया खामेनेई ने ईरान पर शासन 

अपने शासन में खामेनेई ने एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी शुरू की, जिसमें वे 'सर्वशक्तिमान पर्यवेक्षक' थे. जॉन्स हॉपकिंस स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के वली नस्र के अनुसार, 'खामेनेई ने राष्ट्रपति पद की कई शक्तियों को अपने साथ ले लिया और सर्वोच्च नेता के कार्यालय को ईरान के राजनीतिक परिदृश्य के सर्वशक्तिमान पर्यवेक्षक में बदल दिया.'

उन्हें पता था कि उनके पास केंद्रीकृत शक्तियां हैं और वे एक ऐसे आंदोलन के माध्यम से सत्ता में आए हैं, जिसने शाह की सुधारवादी नीति की आलोचना की थी। इसलिए, उन्होंने इस्लामिक गणराज्य की विचारधारा पर सख्ती से ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने ईरान को उसके घरेलू और विदेशी दुश्मनों के खिलाफ हथियारबंद करने का भी फैसला किया.

2000 के दशक की शुरुआत में, खामेनेई ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम का पुरजोर समर्थन किया और इसे राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय शक्ति के लिए आवश्यक माना.

एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, उनके इस रुख के कारण अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ ईरान का तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप एक देश के रूप में ईरान पर कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे.

खामेनेई के शासन की एक विशेषता ये भी रही कि उन्होंने अपनी नीतियों से मध्य पूर्व में ईरान के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया. यह 'प्रतिरोध की धुरी' और इराक, सीरिया, लेबनान और यमन में प्रॉक्सी समूहों के लिए ईरान के समर्थन के माध्यम से किया गया है. 

इस रुख ने ईरान को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया है, लेकिन इसने सऊदी अरब और इज़राइल जैसे प्रतिद्वंद्वियों के साथ तनाव को भी बढ़ा दिया है. सीरिया के गृहयुद्ध में शामिल होना और हिजबुल्लाह को समर्थन देना, क्षेत्र में अमेरिकी और इज़राइली प्रभाव का मुकाबला करने के लिए सर्वोच्च नेता के दृष्टिकोण के प्रमुख घटक रहे हैं.

इजरायल से खतरा और प्रॉक्सी वॉर 

खामेनेई जिस राजनीतिक आंदोलन से आते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा अमेरिका विरोधी और पश्चिम विरोधी है. यह इजरायल विरोधी भी है क्योंकि यह इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर कब्जे को अनुचित मानता है.

यह अमेरिका विरोधी और इजरायल विरोधी दृष्टिकोण खामेनेई के नेतृत्व में ईरान की राज्य पहचान का एक बड़ा हिस्सा है. सीएनएन में छपी एक रिपोर्ट पर यकीन करें तो खामेनेई इजरायल राज्य और ज़ायोनीवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं और उन्होंने इजरायल राज्य को 'राज्य का कैंसरकारी ट्यूमर' भी कहा है. खामेनेई का मानना है कि इजरायल को इस क्षेत्र से हटा दिया जाना चाहिए.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 2006 में, खामेनेई ने एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने यहूदियों के नरसंहार की बाद कही थी लेकिन बाद में उनके अधिकारियों ने इसका खंडन किया और कहा कि वो किसी और संदर्भ में ये बातें कह रहे थे. 

2014 में खामेनेई ने  इस बात पर बल दिया कि, 'होलोकॉस्ट एक ऐसी घटना है जिसकी वास्तविकता अनिश्चित है और अगर यह हुआ है, तो यह अनिश्चित है कि यह कैसे हुआ.' इजरायल को मिटाने की चर्चा से लेकर होलोकॉस्ट को नकारने वाले पोस्ट तक, खामेनेई ने पिछले कुछ वर्षों में इजरायल पर सभी मोर्चों पर हमला किया है.

2014 में ही फिलिस्तीनी इंतिफादा के समर्थन में आयोजित छठे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में खामेनेई ने 2000 में लेबनान से तथा 2005 में गाजा से इजरायल की वापसी को उपलब्धियों के रूप में सराहा.

इजरायल को उसके किये का एहसास दिलाना ही खामेनेई का मकसद 

अभी भी, खामेनेई ने गाजा पर इजरायल के हमले की निंदा की है. ध्यान रहे 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल-हमास युद्ध के बाद से ही ईरान ने हिजबुल्लाह के माध्यम से इजरायल के साथ रणनीतिक रूप से लड़ाई लड़ी है.

उत्तरी इजरायल पर हिजबुल्लाह के दैनिक रॉकेट हमलों के कारण उत्तर में लगभग 70,000 इजरायलियों को अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा है. हूती मिसाइल हमलों ने इजरायल के लाल सागर बंदरगाह ईलाट को बंद कर दिया है जिससे साफ़ हो जाता है कि इजरायल पर रिंग ऑफ फायर का खतरा बढ़ गया है और उसपर चौतरफा हमलों की शुरुआत हो गई है.  

बहरहाल नसरल्लाह की मौत के बाद जिस तरह ईरान ने इजरायल पर डायरेक्ट हमला किया उससे इतना तो साफ़ है कि अब वो स चुप बैठने वाला नहीं है. 

बाकी जिस तरह शुक्रवार के अपने भाषण में रूस निर्मित ड्रैगुनोव राइफल के साथ  खामेनेई आए और देश दुनिया के लोगों से संबोधित हुए उससे इस बात का अंदाजा लग जाता है कि वो चिंगारी जिसने पूरे मध्य पूर्व में शोलों का रूप लिया इतनी जल्दी शांत होने वाली नहीं है. 

इन बातों के अलावा जिस तरह खामेनेई ने पूरी दुनिया के मुसलमानों को एकजुट रहने का संदेश दिया. कहीं ऐसा तो नहीं ईरान ने हाथों में राइफल पकड़े 85 साल के खामेनेई के नेतृत्व में अपने को पूरी दुनिया के मुसलमानों का रहनुमा मानना अभी से शुरू कर दिया है?

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85 year old Iran Ayatollah Ali Khamenei Iranian cleric who is ready to lead a direct war against Israel
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Khamenei: 85 साल का वो शख्स जिसने किया है इजरायल की नाक में दम
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ईरान की मौजूदा सियासत में अयातुल्ला अली खामेनेई का बहुत खास रुतबा है
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ईरान की मौजूदा सियासत में अयातुल्ला अली खामेनेई का बहुत खास रुतबा है 

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Khamenei: 85 साल का वो शख्स जो समर्थकों के लिए है प्रेरणा, किया है इजरायल की नाक में दम 

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