डीएनए हिंदी: सरकार ने महसूस किया है कि कुछ बीमा कंपनियां प्रमुख फसल सुरक्षा योजना, पीएमएफबीवाई (PMFBY) के माध्यम से लाभ कमा रही हैं. इसके जवाब में, केंद्र ने प्रीमियम कॉस्ट को युक्तिसंगत बनाने और बीमाकर्ता भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम के रिस्ट्रक्चर की योजना बनाई है. कैबिनेट की मंजूरी के बाद, योजना में महत्वपूर्ण समायोजन 2023-24 से शुरू होने की उम्मीद है. फरवरी 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Prime Minister Fasal Bima Yojana) का उद्देश्य उन किसानों को पैसा देना है जिनकी फसल को प्राकृतिक आपदाओं के कारण नुकसान हुआ है.
क्या है फसल बीमा योजना
इस योजना के तहत किसानों को अधिकतम प्रीमियम जो खरीफ (गर्मी) के मौसम के दौरान उगाई जाने वाली सभी खाद्य और तिलहन फसलों के लिए 2 फीसदी, रबी (सर्दियों) के दौरान उगाई गई समान फसलों के लिए 1.5 फीसदी और वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए 5 फीसदी है. किसानों द्वारा देय प्रीमियम और बीमा शुल्क की दर के बीच का अंतर केंद्र और राज्यों द्वारा समान रूप से शेयर किया जाता है. किसानों को स्वैच्छिक आधार पर भाग लेने की अनुमति देने और किसी भी आपदा की घटना के 72 घंटों के भीतर फसल के नुकसान की रिपोर्ट करने की अनुमति देने के लिए इस योजना को अंतिम बार 2020 में संशोधित किया गया था.
क्यों पड़ रही है बदलाव की जरुरत
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, योजना को और संशोधित करने की आवश्यकता है क्योंकि पीएमएफबीवाई में बीमा कंपनियों का रिस्क घट रहा था. प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण, मौजूदा बीमाकर्ताओं को अपनी प्रीमियम दरें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा. पॉलिसी के अनुसार, बीमा कंपनियों को तीन फसल वर्षों के लिए निविदा प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त किया जाता है. वर्ष 2019-2020 से 2022-2023 तक कुल 18 बीमा कंपनियों को पैनल में शामिल किया गया था. हालांकि, उनमें से आठ बाहर हो गए और 10 कंपनियां इस समय योजना में हिस्सा ले रही हैं.
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कंपनियों को फायदा किसानों को नुकसान
सूत्रों के अनुसार, हाई क्लेम रेश्यो के बाद महत्वपूर्ण नुकसान के परिणामस्वरूप, सरकारी और निजी क्षेत्रों के चार सहित आठ उद्यमों ने फसल वर्ष 2021-22 के दौरान छोड़ दिया था. हालांकि, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी, इसलिए शेष बीमा कंपनियों ने अपनी दरें बढ़ा दीं. नतीजतन, कुछ कंपनियों ने पिछले फसल वर्ष के दौरान भारी मुनाफा कमाया क्योंकि फसल के नुकसान के दावे कम थे. सूत्रों के अनुसार, इसने कई राज्य सरकारों को यह मानने के लिए प्रेरित किया कि पीएमएफबीवाई से केवल बीमा कंपनियों को फायदा हुआ, किसानों को नहीं.
वर्किंग कमेटी ने सुझाएं हैं दो तरीके
इस मुद्दे को हल करने के लिए 2021 में कृषि मंत्रालय द्वारा स्थापित एक कार्य समिति ने स्थिति को गहराई से देखा और एक रिपोर्ट पेश की. सूत्रों के मुताबिक, कार्यदल ने पीएमएफबीवाई को लागू करने के लिए दो तरीके सुझाए हैं. एक वर्तमान में 'रिस्क ट्रांसफर अप्रोचष् है, जिसमें सभी सिस्क कार्यान्वयन बीमा कंपनियों को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इसमें क्लेम की पूरी जिम्मेदारी लेने वाली बीमा कंपनी शामिल होगी.
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तीन मॉडल बनाने का भी सुझाव
दूसरा 'रिस्क पार्टिसिपेट स्ट्रैटिजी' है, जो राज्यों द्वारा अपनाने के लिए तीन अलग-अलग मॉडल सुझाए गए हैं और क्लेम दावों और सरप्लस प्रीमियम इनकम को एक फॉर्मूले के अनुसार डिवाइड करता है, जिस पर परस्पर सहमति होती है. तीन मॉडल कप एंड कैप मॉडल (60:130), लाभ और हानि शेयर करने वाला मॉडल और कप एंड कैप मॉडल (80-110) हैं. सूत्रों के मुताबिक, लाभ और हानि के बंटवारे के मॉडल के तहत बीमा कंपनियों और सरकार के बीच लाभ और हानि को विभाजित करने के लिए एक स्टेट स्पेसिफिक रिस्क बैंड विकसित किया जाएगा. उदाहरण के लिए, बिहार के लिए बैंड महाराष्ट्र से अलग होगा.
सरकार कब करेगी भुगतान
यदि कप एंड कैप मॉडल (60:130) के तहत दावे ग्रॉस प्रीमियम के 60 फीसदी और 130 प्रतिशत के दायरे में आते हैं तो बीमा कंपनियां भुगतान करेंगी. यदि कुल प्रीमियम के 60 फीसदी से कम का दावा किया जाता है, तो सरकार इसे वापस कर देगी, यदि दावे ग्रॉस प्रीमियम के 130 प्रतिशत से अधिक हैं, तो सरकार बीमा कंपनियों के माध्यम से दावों का भुगतान करेगी.
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तीसरा मॉडल क्या है
सूत्रों के अनुसार, तीसरा मॉडल कप एंड कैप मॉडल (80:110) है, जो पहले दो के समान है, लेकिन बीमा कंपनियां केवल उन दावों का भुगतान करेगी जो ग्रॉस प्रीमियम का 80 से 110 प्रतिशत के बीच हैं. यह मॉडल महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पहले से ही प्रयोग में है. कार्य समूह ने कथित तौर पर नई तकनीक जैसे कि ड्रोन, फसल के नुकसान का त्वरित आकलन करने और किसानों के दावों का तुरंत भुगतान करने के लिए का उपयोग करने की भी सिफारिश की है.
बीते दो सालों के क्लेम और उनका पेमेंट
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2020-21 में, दावा अनुपात ग्रॉस प्रीमियम का 62.3 फीसदी था. रिपोर्ट किए गए दावे 19,022 करोड़ रुपये थे, जिनमें से अब तक 17,676 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है. आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 फसल वर्ष के दौरान, फसल वर्ष 2022-2023 के लिए पीएमएफबीवाई के तहत 9,867 करोड़ रुपये थे, जिसमें से अब तक 8793 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
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