डीएनए हिंदी: भारत के सबसे नए हरित उद्यमी (Green Enterpreneur) आशय भावे (Ashay Bhave) के स्टार्टअप ने 6 महीने से भी कम वक्त में प्लास्टिक के कई टन कचरे को रिसाइकल कर हजारों जोड़ी जूते तैयार किए हैं. आशय भावे की यह पहल पर्यावरण के लिहाज से क्रांतिकारी है. जुलाई 2021 से आशय भावे की कंपनी 'थैली' (Thaely) ने 50000 से ज्यादा प्लास्टिक कैरी बैग और 35000 फेंकी गई प्लास्टिक बोतलों को रिसाइकिल किया है.
23 वर्षीय आशय भावे 2017 में जब बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (बीबीए) की पढ़ाई कर रहे थे तभी उनके दिमाग में यह आइडिया आया. उन्होंने अपने ब्रांड का नाम 'थैली' दिया है. थैली का शाब्दिक अर्थ है झोला. इसे प्लास्टिक का झोला भी कहा जाता है. कुछ जगह इसे पन्नी कहते हैं.
आशय भावे के इस उपक्रम की शुरुआत तब हुई जब वे कॉलेज में थे. इसकी डिजाइनिंग पर उन्होंने तब से ही काम करना सुरू कर दिा था. अब इस युवा उद्यमी ने एक सफल बिजनेस मॉडल के तौर पर अपने प्रयोग को आकार दिया है.
विदेश में सप्लाई करने पर है जोर
नाइक और प्यूमा जैसी कंपनियां जिनका कारोबार अरबों डॉलर में है, उनमें 'थैली' भी एक ब्रांड बनने की कोशिश कर रही है. स्नीकर इंडस्ट्री में भाग्य आजमाने अब यह नया स्टार्टअप उतरने वाला है. थैली कंपनी अपने उद्योंगो को अमेरिका और यूरोपियन रिटेल स्टोर्स में सप्लाई करेगी. अब यह भी कंपनी ग्लोबल बिजनेस के लिए तैयार हो रही है.
पूरी तरह से बेकार प्लास्टिक और रबर से बने, आशय भावे के थैली स्नीकर्स को संभावनाओं का आकाश तब दिखा जब इस प्रोजेक्ट को 2019 में एमिटी यूनिवर्सिटी दुबई द्वारा आयोजित यूरेका स्टार्टअप पिच प्रतियोगिता में जीत मिली. आशय भावे को इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए पहली फंडिंग भी यहीं मिली. थैली का स्नीकर डिजाइन 2000 के दशक में शुरू हुए बास्केटबॉल स्नीकर फैशन से प्रेरित है.
कैसे तैयार होते हैं जूते?
आशय भावे का स्टार्टअप एक वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी से कच्चा माल खरीदता है. प्लास्टिक की थैलियों को गर्मी और दबाव की मदद से थैलेटेक्स नाम के एक फैब्रिक में बदल दिया जाता है. फिर फैब्रिक को जूते के पैटर्न में काटा जाता है.
प्लास्टिक की बोतलों को आरपीईटी (पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट) फैब्रिक में बदल दिया जाता है. इसका इस्तेमाल जूते का स्तर बनाने में, फीता बनाने में, पैकेजिंग के लिए और अन्य हिस्सों को बनाने में किया जाता है. जूते का तलवा रिसाइकिल्ड रबर और इंडस्ट्रियल स्क्रैप से बना होता है जिसे लैंडफिल स्लाइड में फेंका जा सकता है. यह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है. जूतों की एक जोड़ी बनाने के लिए 12 प्लास्टिक की बोतल और 10 प्लास्टिक बैग लगते हैं. इनकी कीमत 7000 रुपये तक रखी गई है जो अलग-अलग 4 वैरिएंट में आते हैं.
विदेश में ब्रांडिंग की तैयारी
इस स्टार्टअप के जरिए कंपनी अगले साल के अंत तक लगभग 25,000 जोड़ी जूते बेचना चाहती है. अगर इतने बड़े स्तर पर जूते बनाए गए तो करीब 200,000 से अधिक प्लास्टिक बैग को रिसाइकिल किया जाएगा. थैली भले ही एक मेड इन इंडिया प्रोडक्ट है लेकिन इसे दुबई, यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बेचने की योजना तैयार की जा रही है.
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